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बेहतर माहौल बना साथी तो उत्तराखंड में बढ़े हाथी

हाथ‍ियों के संरक्षण को लेकर उत्‍तराखंड से अच्‍छी खबर है। दक्षिण राज्‍यों में जहां संख्‍या घटी है तो वहीं हिमालयी राज्‍य में पिछले साल की अपेक्षा 206 हाथी बढ़ गए हैं। यह सब वन विभाग के प्रयास व लोगों की हाथ‍ियों को लेकर संवदेनशील होने से हो सका है।

By Prashant MishraEdited By: Published: Tue, 23 Feb 2021 02:00 PM (IST)Updated: Tue, 23 Feb 2021 06:35 PM (IST)
बेहतर माहौल बना साथी तो उत्तराखंड में बढ़े हाथी
जंगल में हाथी की उम्र का औसत 60 साल व चिडिय़ाघर में 80 साल माना जाता है।

हल्द्वानी से गोविंद बिष्ट। वन्यजीवों के संरक्षण के मामले में उत्तराखंड अन्य राज्यों की अपेक्षा काफी संवदेनशील है। एक ओर जहां दक्षिण भारत के राज्यों में हाथियों की संख्या लगातार घटती जा रही है। वहीं, देवभूमि में बेहतर माहौल के चलते संख्‍या बढ़ रही है। पिछले साल प्रदेश में हाथियों की संख्या 1017 थी, जो कि इस समय बढ़कर 1223 पहुंच गई है। हाथियों की संख्या में बढ़ोतरी उनके संरक्षण को लेकर एक सुखद संकेत है।

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उत्तराखंड का अधिकांश हिस्सा पर्वतीय है। हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर को तराई क्षेत्र माना जाता है। इसके अलावा नैनीताल जिले का आधा हिस्सा भी मैदान में आता है। वन्यजीवों की विविधता को लेकर कार्बेट पार्क भी विश्व प्रसिद्ध है। मैदानी हिस्सा कम होने के बावजूद पिछले साल जून में हुई गिनती के बाद 206 हाथी राज्य में बढ़ गए। वन विभाग की मेहनत के कारण तस्करों की सक्रियता क्षेत्र में कम हुई और हाथियों का कुनबा बढ़ता चला गया।

वहीं, दो माह पूर्व हाथियों के व्यवहार में आ रहे बदलाव पर विस्तृत अध्ययन करने के लिए वन विभाग ने दो हाथियों पर रेडियो कालर भी लगाया है। लगातार इनकी मानीटरिंग की जा रही है। फिलहाल आबादी क्षेत्र में इनके द्वारा कोई नुकसान नहीं किया गया। वन विभाग के अफसरों का कहना है कि राज्य में युवा हाथियों व नर-मादा का अनुपात भी ठीक है। जंगल में हाथी की उम्र का औसत 60 साल व चिडिय़ाघर में 80 साल माना जाता है।

हथिनी होती है कुनबे की मुखिया

हाथियों में पितृ सत्ता नहीं बल्कि मातृ सत्ता व्यवस्था चलती है। यानी कुनबे में मुखिया का किरदार हथिनी निभाती है। हल्द्वानी वन प्रभाग के डीएफओ कुंदन कुमार सिंह बताते हैं कि कुनबे के सभी सदस्यों में एक भावानात्मक लगाव भी होता है। हाथी को जंगल का इंजीनियर भी कहा जाता है। क्योंकि वह अपने तरीके से पुराने जंगल को कम कर नए जंगल को पनपाने में सहयोग करता है।

इसल‍िए हाथी है जंगल का इंजीनियर

भारी भरकम शरीर वाला हाथी जंगल को हल्का करता है। मदमस्त चाल में चलते हुए वह टहनियों के अलावा पुराने पेड़ों को भी धराशायी कर देता है। हाथी के मल में जैविक खाद के गुण होते हैं। नीचे गिरे पेड़ व टहनियों में मल का मिश्रण होने पर यह तेजी से बढ़ते हैं। जिससे नया जंगल तैयार होता है। इसलिए जंगल के पारिस्थतिक तंत्र में हाथी का रोल एक इंजीनियर की तरह माना जाता है। यही काम चिडिय़ा भी करती हैं। वह अपनी बीट के द्वारा नेचुरल बीज तैयार करती है।

साथी को ढूंढ़ते हुए घटनास्थल तक पहुंच गए

पिछले साल दिसंबर में हल्द्वानी के जंगल क्षेत्र से सटे हल्दूचौड़ की आबादी में एक हाथी घूमते-घूमते हुए खेतों तक पहुंच गया। जहां करंट लगने से उसकी मौत हो गई। अगले दिन उसका साथी हाथी उसे ढूंढ़ते हुए घटनास्थल तक पहुंच गए। वन विभाग को उन्हेंं जंगल तक मोड़ में काफी मशक्कत करनी पड़ी थी। यह घटना हाथियों के आपसी लगाव के बारे में बताती है।

कामर्शियल सर्किल में 127 हाथी

कुमाऊं की वेस्टर्न सर्किल को कामर्शियल सर्किल कहा जाता है। जिसके पीछे की वजह सर्किल में आने वाली पांच फारेस्ट डिवीजन हैं। यहां खनन व लकड़ी कटान का काम बड़े पैमाने पर होते हैं। उसके बावजूद जून 2020 में हुई गणना के दौरान इन पांच डिवीजनों में 127 हाथी पाए गए। इसमें सबसे ज्यादा 66 हाथी अव्यस्क है। इनकी उम्र 15 साल के अंदर है।

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