उधार के बंजर खेतों में हरियाली का मंजर, प्रवासियों की उजाड़ पड़ी जमीन को आबाद कर बदल दी तस्वीर
एक जुनूनी किसान है जो प्रवासियों के बंजर पड़े खेतों को आबाद करने में जुटा है। वर्षों से ऊसर कृषि भूमि का सीना परंपरागत हल न चीर सका तो आधुनिक तकनीक से पसीना बहाया। जुताई कर बोआई की।
अल्मोड़ा, दीप सिंह बोरा। पहाड़ की सबसे बड़ी पीड़ा पलायन। जिसने गांवों को वीरान कर दिया तो उजाड़ पड़े खेतों की उदासी को आपदा में बदल दिया है। मगर एक जुनूनी किसान है जो प्रवासियों के बंजर पड़े खेतों को आबाद करने में जुटा है। वर्षों से ऊसर कृषि भूमि का सीना परंपरागत हल न चीर सका तो आधुनिक तकनीक से पसीना बहाया। जुताई कर बोआई की। नतीजा, खालिस घास मैदान बने खेतों में अब फसलों के अंकुरण सुनहरे भविष्य की तस्वीर देने लगे हैं।
वैश्विक महासंकट की दस्तक के बाद लाकडाउन में कारोबार ठप पडऩे व रोजगार छिनने से बड़ी संख्या में प्रवासी पहाड़ लौटे। तब उम्मीद जगी थी कि पलायन से बेजार गांवों की तस्वीर बदलेगी। मगर बहुत ज्यादा बदलाव नहीं आया। कागजों में सिमटी सरकारी योजनाओं से मायूस कई प्रवासी वापस महानगर लौट गए। ऐसे में उजाड़ पड़े खेतों के संवरने की हसरत भी मानो अधूरी रह गई।
पावर टिलर व विडर का सहारा
मगर जिला मुख्यालय से 10 किमी दूर कोसी घाटी स्थित मटेला गांव के प्रयोगधर्मी किसान गोपाल सिंह बिष्टï की पहल मिसाल से कम नहीं। उसने गांव में प्रवासियों की बंजर जमीन का खुद के बूते श्रंगार का बीड़ा उठाया है। शुरूआत में गोपाल ने रुद्रपुर, दिल्ली व हरियाणा में बस चुके चार-पांच प्रवासियों के खेत उधार लिए। सालों से हल न लगने से पत्थर जैसी कृषि भूमि पर पावर टिलर व विडर चला वहीं पुराना उर्वर शक्ल दे डाली।
जज्बा देख विज्ञानियों ने दी मदद
उसका हौसला देख जीबी पंत राष्टï्रीय हिमालयी पर्यावरण शोध संस्थान के विज्ञानियों ने मदद को हाथ बढ़ाया। उन्नत किस्म के गेहूं की बोआई को हैंड सीड ड्रिल मशीन दी। इसकी मदद से गोपाल ने करीब दस नाली में सरसों व गेहूं बोया है। हालांकि शरदकालीन वर्षा न होने से दो माह देरी से बोआई की। लेकिन परिणाम सुखद अनुभूति दे रहे।
जंगली सूअरों से बचाव का भी जुगाड़
जुनूनी गोपाल ने तीन-चार नाली खेत को जाली से बंद कर जंगली सूअरों से फसल बचाने की तरकीब बनाई है। यह खेत बीते दो दशक से बंजर पड़े थे। अब प्याज, मटर, धनिया, लाही आदि सीजनल सब्जियों के पौधों से सजे यही खेत गांवों को आबाद करने का संदेश दे रहे।
प्रगतिशील किसान गोपाल सिंह बिष्ट ने बताया कि गांव में जहां तहां वीरान पड़े खेत देख बड़ी तकलीफ होती थी। महानगरों में बस चुके प्रवासियों से संपर्क साधा। उनकी काफी जमीन बेकार पड़ी है। उनके बंजर खेतों में फसल उगाने का प्रस्ताव दिया। सभी ने हामी भर दी। 10 से 15 नाली भूमि आबाद कर दी है। धीरे धीरे रकबा बढ़ा माडल स्वरूप देने की योजना है। इसमें जीबी पंत संस्थान के विज्ञानी भी मदद देने लगे हैं।
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