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खेतों में ही जंगली सुअरों को मारना होगा, मुख्य वन्य जीव प्रतिपालक ने जारी किया आदेश

उत्तराखंड में जंगली सुअर व अन्य जानवरों द्वारा लगातार फसलों को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। राष्ट्रीय वन्य जीव सलाहकार परिषद ने निर्देश दिए हैं कि वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 व संशोधित 2006 के प्रावधानों के अनुसार कार्रवाई करें।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Fri, 27 Nov 2020 07:32 AM (IST)Updated: Fri, 27 Nov 2020 07:32 AM (IST)
खेतों में ही जंगली सुअरों को मारना होगा, मुख्य वन्य जीव प्रतिपालक ने जारी किया आदेश
खेतों में ही जंगली सुअरों को मारना होगा, मुख्य वन्य जीव प्रतिपालक ने जारी किया आदेश

किशोर जोशी, नैनीताल : उत्तराखंड में जंगली सुअर व अन्य जानवरों द्वारा लगातार फसलों को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। राष्ट्रीय वन्य जीव सलाहकार परिषद ने निर्देश दिए हैं कि वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 व संशोधित 2006 के प्रावधानों के अनुसार कार्रवाई करें। भारत सरकार की हरी झंडी के बाद मुख्य वन्य जीव प्रतिपालक उत्तराखंड ने राज्य में शर्तों के साथ जंगली सुअर को संरक्षित या आरक्षित वन क्षेत्रों से बाहर मारने की अनुमति प्रदान कर दी है।

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फसलों को नुकासन पहुंचाने वाले जानवरों को मारने की अनुमति अपर मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक, क्षेत्रीय वन संरक्षक, उप मुख्य वन्य जीव प्रतिपालक या प्रभागीय वनाधिकारी, वन्य जीव प्रतिपालक या सहायक वन संरक्षक, सहायक वन्य जीव प्रतिपालक या वन क्षेत्राधिकारी, डिप्टी रेंजर, वन दारोगा के स्तर से शर्तों व प्रतिबंध के साथ दी जाएगी। मुख्य वन्य जीव प्रतिपालक का आदेश मुख्य वन संरक्षक कुमाऊं के पास पहुंच चुका है।

यह करनी औपचारिकताएं पूरी करनी होंगी

  • जंगली सुअर मारने को विधिवत आवेदन करना होगा।
  • आवेदन पत्र पर ग्राम प्रधान की संस्तुति अनिवार्य होगी
  • अनुमति के अधीन जंगली आखेट की कार्रवाई वन क्षेत्रों से बाहर की जाएगी
  • चोट लगने से घायल वन्य जीव का पीछा वन क्षेत्रों से भीतर नहीं किया जाएगा
  • आखेट केवल गैर वन भूमि में ही किया जाएगा
  • आखेट बंदूक या राइफल से किया जाएगा।
  • वन्य जीव संरक्षण अधिनियम का पूरी तरह पालन किया जाएगा
  • मारे गए जंगली सुअरों के शव को वन रक्षक व स्थानीय जनप्रतिनिधि की मौजूदगी में नष्ट किया जाएगा।

जंगली सुअरों के आतंक से छोड़ी खेती

पर्वतीय इलाकों में बढ़ते जंगली सुअर के आतंक की वजह से किसान खेती छोड़ रहे हैं। जंगली सुअर द्वारा किए जा रहे नुकसान की वजह से पहाड़ में आलू की पैदावार कम हो गई है। किसानों ने सुअर द्वारा हर साल किए जा रहे नुकसान की वजह से आलू की खेती ही बंद कर दी है। यही वजह है कि पिछली बार वन विभाग ने जंगली सुअर मारने की अनुमति चुनिंदा तहसीलों को दी थी, सख्ती की वजह से कुमाऊं में एक भी व्यक्ति द्वारा आवेदन नहीं किया गया था


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