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उत्तराखंड में 1876 में दिखा था Mountain quail, आज भी दीदार की हसरत लिए आते हैं बर्ड वाचर

परिंदों के संसार में रुचि रखने वाले माउंटेन क्वेल Mountain quail के दीदार की हसरत लिए आज भी हिमालयी राज्य उत्तराखंड आते हैं। यह रातों रात सोहरत दिलाने वाला वो पक्षी है जो भारत में सिर्फ उत्तराखंड में दिखा है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Mon, 28 Sep 2020 07:08 PM (IST)Updated: Mon, 28 Sep 2020 07:08 PM (IST)
उत्तराखंड में 1876 में दिखा था Mountain quail, आज भी दीदार की हसरत लिए आते हैं बर्ड वाचर
इस पक्षी को खोजने के लिए 1876 से दुनिया भर से बर्डवाचर नैनीताल, मसूरी आते रहे हैं।

हल्द्वानी, जेएनएन : परिंदों के संसार में रुचि रखने वाले माउंटेन क्वेल Mountain quail के दीदार की हसरत लिए आज भी हिमालयी राज्य उत्तराखंड आते हैं। यह रातों रात सोहरत दिलाने वाला वो पक्षी है जो भारत में सिर्फ उत्तराखंड में दिखा है। माउंटेन क्वेल देखना और उसके बारे में जानकारी जुटाना दुनिया के हर पक्षियों के जानकार का सपना है । इस पक्षी को खोजने के लिए 1876 से दुनिया भर से बर्डवाचर नैनीताल, मसूरी आते रहे हैं। नैनीताल और मसूरी में जो भी पक्षी विशेषज्ञ पक्षियों के बारे में जानकारी जुटाने का प्रयास करता है उनमें सभी की अभिलाषा माउंट  क्वेल खोजने की होती है। 

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माउंटेन क्वेल वह पक्षी है जो किसी भी आम आदमी को दुनिया में प्रसिद्धि की बुलंदी पर पहुंचा सकता है । जानकर हैरानी होगी कि दुनिया में अंतिम बार इस अनोखे पक्षी को नैनीताल के शेर के झंडा क्षेत्र में वर्ष 1876 में देखा गया था। आमतौर पर जोड़े पर रहने वाले इस पक्षी को उस समय स्थानीय निवासी मेजर कारवेथन ने मारा था। बाद में इसकी खाल को ब्रिटिश संग्रहालय लंदन भेजा गया। पक्षी जानकारों के अनुसार दुनिया में तब से इस पक्षी को नहीं देखा गया। फिलहाल इसको लेकर जिज्ञासा में बनी हुई है।

माउंटेन क्वेल बटेर जैसा दिखने वाला पक्षी है । इसे पहाड़ी बटेर नाम से भी जाना जाता है। यह पक्षी बटेर से बड़ा होता है और चकोर की तरह दिखाई देता है। यह सब जानकारियां दुनियाभर में नौ सालों के अध्ययन से जुटाई जा सकी हैं। जानकारी के अनुसार चकोर की गर्दन सफेद होती है और पहाड़ी बटेर की काली। खालो से जुटाई जानकारी के अनुसार यह पक्षी बीज खाते हैं। इनके प्रवास के बारे में भी विश्व में कोई जानकारी नहीं है। 

1876 से पूर्व इस पक्षी को 1865 में 1867 में देखा गया था । 1865 में कैनेथ मैक्नन ने मसूरी में बुद्धि राजा तथा बेकनाग के बीच एक जोड़े को मारा था। मसूरी में ही 1867 में जेवपानी में कैप्टन हटन ने घर के पास करीब एक दर्जन पक्षियों को देखा जिसमें से उन्होंने पांच पक्षियों को मार गिराया और इनकी खाल उतार कर ब्रिटिश संग्रहालय में भेजी ।1876 के बाद यह पक्षी फिर कभी नहीं दिखाई दिया। 

हिमालयन माउंटेन क्वेल

  • 1836 में नैनीताल में दिखी
  • 1876 में मसूरी में हुआ दीदार
  • भारत में सिर्फ इन्हीं दो क्षेत्रों में पर्यावास
  • विश्व में इसके सिर्फ नौ नमूने ही सुरक्षित
  • तमाम कोशिशों के बाद नजर नहीं आया यह परिंदा

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