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Jim Corbett Birth Anniversary : प्रकृति और मनुष्य के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करने वाला वह महामानव

Jim Corbett Birth Anniversary शिकारी पर्यावरणविद लेखक फोटोग्राफर और बेहद नेकदिल इंसान...जिम कार्बेट इन सभी खूबियों से भरे अद्भुत इंसान थे।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Sat, 25 Jul 2020 08:29 AM (IST)Updated: Sat, 25 Jul 2020 08:54 AM (IST)
Jim Corbett Birth Anniversary : प्रकृति और मनुष्य के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करने वाला वह महामानव
Jim Corbett Birth Anniversary : प्रकृति और मनुष्य के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करने वाला वह महामानव

नैनीताल, स्कंद शुक्ल। शिकारी, पर्यावरणविद, लेखक, फोटोग्राफर और बेहद नेकदिल इंसान...जिम कार्बेट (Jim Corbatt) इन सभी खूबियों से भरे अद्भुत इंसान थे। उनकी नेकदिली को इस वाकए से भी समझा जा सकता है कि कुमाऊं में जब कोई किसान, मजलूम उनके पास ये गुहार लेकर आता था कि उसका जानवर कोई बाघ या तेंदुआ खींच ले गया तो वो अपना बटुआ मंगाकर किसान को हुए नुकसान का पूरा मुआवजा देते। जिसके नाम पर भारत के सबसे बड़े टाइगर रिजर्व का नाम पड़ा आज उनकी जयंती है । ताउम्र अविवाहित और बहन मैगी के साथ रहने वाले जिम का जीवन खुली किताब है। तो बात उनके जीवन से जुडे़ कुछ ऐसे पहलुओं पर होगी जो उन्हें इतिहास में एक अलग सख्शियत का दर्जा देती है।

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शिकार छोड़ इसलिए करने लगे वन्यजीवों का संरक्षण

जिम (Jim Corbatt) ने अपने जीवन में एक से बढ़कर एक आदमखोरों का शिकार कर पहाड़ से मैदान तक के लोगों को दहशत से निजाज दिलाई। लेकिन कुछ एेसा हुआ कि उन्होंने वन्यजीवों का शिकार करना बंद कर दिया। दरअसल उन्होंने जब एक बाघ का शिकार किया और चीर-फाड़ कर उसकी जांच-परख की तो उन्हें पता चला कि उसके शरीर पर कई जख्म हैं। गोली और तीर के निशान थे। तब उन्हें ये आभास हुआ कि दरअसल वो इसीलिए इंसानों को देखकर भड़क जाते हैं। यह नौबत इंसानों के कारण ही आई। इंसानों की जंगल में दखल बढ़ी तो तो वन्यजीवों ने स्वाभाविक तौर पर शहर का रुख कर लिया। उस घटना के बाद से जिम ने शिकार छोड़कर वन्यजीवों के संरक्षण की दिशा में काम करना शुरू कर दिया।

जिम के खाते से राम सिंह को हर माह मिलते रहे 10 रुपए

जिम के पूर्वज तीन पीढि़यां पहले हिंदुस्तान आए। सब यहीं की मिट्टी में दफ्न हुए। लेकिन जिम (Jim Corbatt) का आखिरी वक्त केन्या के जंगल में गुजरा। वे 16 भाई-बहनों में आठवें नंबर की संतान थे। मार्टिन बूथ ने जिम की आत्मकथा ‘कारपेट साहिब : अ लाइफ आॅफ जिम कॉर्बेट’ में लिखा है कि जिम केन्या जाकर भी ‘अपना देश’ नहीं भुले। जैसे भी वह जुड़ सकते थे यहां से जुड़ा रहना चाहते थे। हिन्दुस्तान छोड़ते वक्त उन्होंने वर्मा परिवार को अपने पुरखों का घर तो बेचा दिया, लेकिन नैनीताल बैंक में अपना खाता न बंद किया। जाते-जाते वह बैंक को लिख कर दे गए कि हर माह खते से उनके नौकर राम सिंह को 10 रुपये महीने निकाल कर दे दिए जाएं। जिम के अपनी आख़िरी सांस लेने तक राम सिंह को यह इमदाद मिलती रही। कालाढूंगी का एक प्लाट भी उन्होंने उसके नाम कर दिया, जिसे जिम के जाने के बाद राम सिंह ने बेच दिया और गढ़वाल के अपने गांव वापस लौट गया। राम सिंह केन्या के लिए निकल रहे जिम और उनकी बहन मैगी को जब लखनऊ तक छोड़ने आया तो फूटफूटकर रो पड़ा। मार्टिन बूथ ने लिखा, ‘राम सिंह रो पड़ा’। क्या जिम कॉर्बेट भी ख़ुद न रोए होंगे!

महारानी एलिजाबेथ आईं थीं कॉर्बेट के हट में

बहन मैगी के साथ नैनीताल के ‘गर्नी हाउस’ में रह रहने वाले जिम (Jim Corbatt) भारत की आज़ादी के बाद 1947 में जिम केन्या चले हो गए। वो वहां पेड़ों पर झोपड़ी बनाकर रहते थे। उनके उसी हट में एक बार ब्रिटेन की महारानी एलिज़ाबेथ भी घूमने आई थीं। ये बात है साल 1952 की, जिस साल किंग जॉर्ज 6 की मौत हुई थी। जिम के हट में वो दो रात रुकीं। 1928 में जिम ‘कैसर-ए-हिंद’ मेडल से सम्मानित किया गया। उनके जीवन पर ढेरों फ़िल्में बनीं, जिनमें बीबीसी द्वारा बनाई गई डॉक्यूड्रॉमा ‘मैन ईटर्स ऑफ़ इंडिया’ और आईमैक्स मूवी ‘इंडिया- किंगडम ऑफ़ टाइगर’ प्रमुख हैं। उनके पीछे उनकी किताबें, उनकी यादें, उनकी बंदूक, उनका ट्री हाउस, उनके नाम पर बना टाइगर रिज़र्व रह गया।

जिम ने कुल छह किताबें लिखीं, आखिरी केन्या में

जिम (Jim Corbatt) एक बेहतरीन लेखक थे। उन्होंने अपने पूरे जीवनकाल में कुल छह किताबें लिखीं। जिनमें मैन ईटर्स आफ कुमाऊं, मैन ईटिंग लेपर्ड एट रुद्रपयाग, माय इंडिया, जंगल लोर, टेंपल टाइगर और आखिरी किताब ट्री टाॅप्स है, जो उन्होंने केन्या में गुजारे आखिरी दिनों में लिखी। कॉर्बेट की मैन इटर्स ऑफ कुमाऊं को नौ भाषाओं में प्रकाशित कियाग गया। इस किताब को खासी लोकप्रियता मिली। आखिरी और छठी किताब ट्री टॉप्स नाम से आई। उनके आस-पास के लोग बताते हैं कि वो ऐसे जी रहे थे, मानो अपनी किताब ख़त्म करने के लिए जी रहे हों। उन्होंने अपनी इस किताब का नाम अपने पेड़ पर बने घर के नाम पर रखा था।

दुनिया की सबसे खतरनाक बाघिन का कार्बेट ने किया था शिकार

भारत के इतिहास में सबसे बदनाम आदमखोर चंपावत की बाघिन रही है, जिसने कोई एक दो या दस बीस नहीं बल्कि 436 लोगों को मौत के घाट उतारा। पहले इस बाघिन ने नेपाल में लोगों को अपना शिकार बनाया। उसके बाद इसे भारत की ओर खदेड़ दिया गया भारत में उत्तराखंड के चंवापत जिले में इस बाघिन ने आतंक मचाया। बाघिन का खौफ इतना था कि रात अंधेरे में नहीं बल्कि दिन दहाड़े लोगों का शिकार किया। ग्रामीणों ने जब मदद की गुहार जिम (Jim Corbatt) से लगाई तो 1907 में इस आदमखोर का शिकार करके उन्होंने लोगों को इसके दहशत से मुक्ति दिलाई।

आखिर भारत छोड़कर क्यों चले गए जिम

जिम कॉर्बेट (Jim Corbatt) के भारत को छोड़कर चले जाने के पीछे कई कारण थे। ब्रिटिश राज से आज़ादी के बाद पैदा होने वाले हालातों पर कॉर्बेट की अपनी चिंताएं थीं। वह अंततः एक अंग्रेज़ ही थे। वह आज़ादी के बाद के भारत में एक अंग्रेज़ के तौर पर अपने प्रति होने वाली सामाजिक प्रतिक्रियाओं को लेकर संशय में रहने लगे थे। हालांकि वहां के सभी लोग छोटी हल्द्वानी के अपने ‘कारपेट साहिब’ को गोरा साधु कहते थे जिसने अपने प्राणों को दांव पर लगाकर न जाने कितने नरभक्षी बाघों से उन्हें बचाया था। कई दोस्तों ने उन्हें यकीन दिलाया कि उनके शक निर्मूल थे. मैगी भी यहां रहना चाहती थी. लेकिन जिम भारी मन से जाने का फैसला कर चुके थे।


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