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2 दिन, 3 आत्महत्या : शौक के लिए जीवन से नाता तोड़ रहे युवा

पहले उम्रदराज में ही इस तरह की प्रवृत्ति देखने को मिलती थी, वहीं अब इस तरह का व्यवहार किशोरों व युवाओं में आम होने लगा है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Mon, 11 Feb 2019 11:27 AM (IST)Updated: Tue, 12 Feb 2019 01:32 AM (IST)
2 दिन, 3 आत्महत्या : शौक के लिए जीवन से नाता तोड़ रहे युवा
2 दिन, 3 आत्महत्या : शौक के लिए जीवन से नाता तोड़ रहे युवा

गणेश जोशी, नैनीताल। कुमाऊं में दो दिन में तीन विद्यार्थियों ने आत्महत्या कर ली। समाज के लिए घातक यह समस्या अब तेजी से बढ़ रही है। जहां पहले उम्रदराज में ही इस तरह की प्रवृत्ति देखने को मिलती थी, वहीं अब इस तरह का व्यवहार किशोरों व युवाओं में आम होने लगा है। मनोचिकित्सक भी इससे हैरान हैं। वह कहते हैं कि समाज में जिस तरीके का माहौल हो गया है, शौक बढ़ते जा रहे हैं, उसका सीधा असर व्यवहार पर पडऩे लगा है। बच्चे भी उम्र से पहले ही जरूरत से ज्यादा चीजों की प्रत्याशा रखने लगे हैं। सहनशीलता कम हो गई है। इसकी वजह से वह आत्मघाती कदम उठा रहे हैं।

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केस-1

राजकीय इंटर कॉलेज मुवानी पिथौरागढ़ के 12वीं के छात्र राहुल ने नौ फरवरी को पेड़ से लटककर आत्महत्या कर ली थी। परिजनों ने शिक्षकों पर प्रताडऩा का आरोप लगाया है।

केस-2

काशीपुर में भी नौ फरवरी को ही 18 साल की छात्रा मानसी ने आत्महत्या कर ली। कारण बताया गया कि वह खेल किट उपलब्ध कराने की जिद कर ही थी।

केस-3

नैनीताल में 10 फरवरी को 17 वर्षीय अमन ने अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। 11वीं के छात्र को पिता की डांट सहन नहीं हो सकी।

ये हैं आत्महत्या के मुख्य कारण :

- सोशल मीडिया एडिक्शन

- जरूरत से ज्यादा फ्रीडम की इच्छा

- माता-पिता का अपने में व्यस्त रहना

- परिवार में अक्सर झगड़ा होना

- किसी मानसिक बीमारी से ग्रस्त होना

- इंपल्सिव बिहेवियर यानी इमोशन पर कंट्रोल न होना

बचने के लिए अपनाएं ये उपाय :

- माता-पिता अपने बच्चे की गलती स्वीकार करें।

- व्यवहार में बदलाव होने पर काउंसलिंग कराएं

- बच्चों की जिज्ञासा का समाधान करें।

- बच्चों के लिए क्वालिटी टाइम निकालें

- मनोरंजन के अन्य साधनों में लगाएं

- दिन में एक बार खाना एक बार बच्चों के साथ खाएं।

- बच्चे के व्यवहार पर नजर रखें।

- किसी न किसी स्पोट्र्स या म्यूजिक एक्टिविटी में लगाएं।

मोबाइल, स्कूटी, फ्रीडम की बढ़ रही समस्या : मनोवैज्ञानिक डॉ. युवराज पंत ने कहा कि छात्राएं भी अपने घर में मोबाइल, स्कूटी व फ्रीडम को लेकर जिद करने लगी हैं। जब उनकी यह जिद पूरी नहीं तो उनके व्यवहार में बदलाव आने लगता है। प्रति सप्ताह पांच सात किशोर व युवा एसटीएच के मनोरोग विभाग में पहुंचते हैं।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ : बीडी पांडे अस्पताल के मनोचिकित्सक डॉ. गिरीश पांडे ने बताया कि मौजूदा दौर में अभिभावकों का पाल्यों के प्रति ध्यान कम देना, बच्चों के साथ समय व्यतीत न करना, टीवी- मोबाइल में ही चिपके रहना अवसाद की वजह बन रहा है। इससे बच्चे व किशोरों में धैर्य की कमी हो रही है और वह आत्मघाती कदम उठा रहे हैं। वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. मनोज त्रिवेदी का कहना है कि माता-पिता को अपने बच्चों पर नजर रखनी चाहिए। इंपल्सिव बिहेवियर को समझने पर तुरंत काउंसलिंग करा लेनी चाहिए। जरूरत पडऩे पर दवाइयां भी देनी पड़ती है। समय रहते चेत जाने से बड़े नुकसान से बचा जा सकता है। एसटीएच के मनोवैज्ञानिक डॉ. युवराज पंत ने बताया कि किशोर व युवाओं की जरूरत से ज्यादा अपेक्षाएं बढ़ गई हैं। हर बात को मनवाने की जिद करने लगे हैं। यही जिद मुसीबत बन रही है। इस नुकसान से बचने के लिए बच्चों को पढ़ाई के अलावा खेल व संगीत गतिविधियों में व्यस्त करना चाहिए।

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