भवाली रोड पर संचालित 20 दुकानदारों की रोजी रोटी पर गहरा संकट, नए सिरे से नीलाम होंगी दुकानें
भवाली रोड स्थित छावनी परिषद सीमा में संचालित 20 दुकानदारों की रोजी रोटी पर संकट गहरा गया है। कैंट बोर्ड ने दुकानों की नए सिरे से नीलामी करने पर सहमति जता दी है।
नैनीताल, जेएनएन : भवाली रोड स्थित छावनी परिषद सीमा में संचालित 20 दुकानदारों की रोजी रोटी पर संकट गहरा गया है। कैंट बोर्ड ने दुकानों की नए सिरे से नीलामी करने और पुराने लोगों को बेदखल करने के प्रस्ताव पर सहमति जता दी है। छावनी परिषद ने दुकानदारों को अंतिम प्रयास करने के लिए एक माह का समय दिया गया है। इस समयावधि में बोर्ड अध्यक्ष कारोबारियों के साथ रानीखेत में एक और बैठक करेंगे। जिसके बाद अंतिम निर्णय लेकर नोटिस देने की कार्रवाई की जाएगी।
छावनी परिषद की बोर्ड बैठक में उठा नीलामी का मुद्दा
शनिवार को छावनी परिषद की बोर्ड बैठक हुई, जिसमें लंबे समय से कैंट परिसर में संचालित दुकानों के वर्तमान दुकानदारों को बेदखल कर नीलामी करने का मुद्दा जोरशोर से उठा। इस बीच दुकानदार भी कार्यालय के बाहर जमे रहे। कारोबारियों की बोर्ड से हुई चर्चा भी मुद्दे का समाधान नहीं निकाल पाई। बोर्ड सचिव व कैंट सीईओ आकांक्षा तिवारी ने बताया कि दुकानदारों को एक माह का समय दिया गया है। इस समयावधि में रक्षा मंत्रालय अथवा किसी उच्चस्तर से बेदखली रोकने के आदेश यदि उनके द्वारा प्रस्तुत कर दिए गए तो उन्हें फिलहाल यथावत रखा जाएगा। साथ ही 24 जनवरी को कैंट अध्यक्ष रानीखेत में कारोबारियों के साथ बैठक करेंगे। जिसके बाद ही अंतिम निर्णय लिया जाएगा।
तीन से पांच साल में नीलामी अनिवार्य
बकौल सीईओ छावनी परिषद एक्ट 2006 की धारा 267 के तहत हर तीन से पांच साल में सरकारी संपत्ति की नीलामी अनिवार्य है। नियमों के कारण कैंट प्रबंधन भी बंधा हुआ है। एक माह का समय समाप्त होने पर मार्च प्रथम सप्ताह में पीपीई एक्ट 1971 के तहत दुकानदारों को नोटिस दिए जाएंगे। साथ ही पुरानी रकम की रिकवरी कोर्ट के माध्यम से की जाएगी। बैठक में बोर्ड अध्यक्ष ब्रिगेडियर जीएस राठौर, सीईओ आकांक्षा तिवारी, उपाध्यक्ष बहादुर सिंह रौतेला, सदस्य तुलसी बिष्ट, कुंवर सिंह कबडोला, आरएस पंवार, सुरेश चंद्र आर्य मौजूद थे।
33 वर्ष पुराना है विवाद
भवाली रोड स्थित कैंट की 20 दुकानों का विवाद 33 साल से चला आ रहा है। 1987 में पहली बार दुकानदारों को बेदखली का नोटिस दिया गया था। मामला सिविल कोर्ट से हाई कोर्ट और यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट तक भी गया। कोर्ट के निर्णय के संबंध में दुकानदारी और कैंट प्रबंधन एकमत नहीं है। दुकानदार सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को अपने पक्ष में बता रहे है। वहीं कैंट सीईओ ने बताया कि सभी न्यायालयों से प्रत्यक्ष तौर पर दुकानें खाली कराने का आदेश नहीं है, लेकिन निर्णय में उल्लेख है कि उक्त लोग किरायेदार नहीं बल्कि लाइसेंस धारक है जिनकों छावनी परिषद के नियमों के आधार पर निकाला जा सकता है।
रुपए वसूली को कोर्ट जाएगा कैंट प्रबंधन
सीईओ आकांक्षा तिवारी ने बताया कि 2008-09 से कुछ दुकानदारों ने सालाना शुल्क देना बंद कर दिया। कुछ समय बाद शुल्क देना शुरू किया, लेकिन 2013 के बाद छह दुकानदारों को छोड़ अन्य ने सालाना शुल्क जमा नही किया है। जो कि सभी 20 दुकानदारों पर करीब 70-80 लाख बनता है।
...तो छिन जाएगी रोजी रोटी
एक तरफ छावनी परिषद के नियम है, तो दूसरी ओर 20 परिवारों की करीब चार पीढि़यों से चली आ रही रोजी रोटी जुड़ी है। जहां कैंट प्रबंधन नियमों का हवाला देकर दुकानदारों को बेदखल कर नए सिरे से दुकानों की नीलामी करना चाहता है। वहीं दूसरी ओर दुकानदारों को अपने रोजगार व परिवार के पालन पोषण की चिंता सता रही है। कुछ दुकानदारों का तो कहना है कि दुकानें छिनी तो वह परिवार सहित कैंट कार्यालय के सामने धरना देंगे।
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