एक घंटे की बारिश से टल गई एमबीपीजी कॉलेज में नैक की रिहर्सल बैठक NAINITAL NEWS
कुमाऊं के सबसे बड़े एमबीपीजी कॉलेज के कामकाज का तरीका भी अनूठा हो गया है। किसी काम में थोड़ी मेहनत लगे तो उसे टाल देना ही बेहतर समझा जाने लगा है।
हल्द्वानी, जेएनएन : कुमाऊं के सबसे बड़े एमबीपीजी कॉलेज के कामकाज का तरीका भी अनूठा हो गया है। किसी काम में थोड़ी मेहनत लगे, तो उसे टाल देना ही बेहतर समझा जाने लगा है। सोमवार को इसकी बानगी देखने को मिली। एक घंटे की बारिश क्या हुई, नैक (राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद) के निरीक्षण से पहले रखी गई रिहर्सल बैठक ही टाल दी गई। वजह बारिश के कारण जिम्मेदार एक कमरे से दूसरे कमरे में नहीं जा सके, जबकि सभी कैंपस में ही थे। अब यह बैठक 24 जुलाई को निर्धारित की गई है।
प्रभारी प्राचार्य डॉ. नवीन भगत व समन्वयक डॉ. बीआर पंत ने रिहर्सल बैठक का समय दो बजे निर्धारित किया था। सभी विभागाध्यक्षों को कांफ्रेंस हॉल में पहुंचना था। 2013 से अब तक की गतिविधियों का पावर प्वाइंट प्रजेंटेशन देखना था। कुछ की तैयारी बेहतरीन थी तो कुछ का काम आधा-अधूरा। बैठक शुरू होने से ठीक पहले तेज बारिश हो गई। करीब एक घंटे तक बारिश होती रही, इसके चलते शिक्षक कांफ्रेंस हॉल तक नहीं पहुंच सके, जिससे कॉलेज के विकास के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण बैठक ही टाल दी गई। जबकि, बैठक इसलिए भी जरूरी थी, ताकि अगर किसी की तैयारी में कोई कमी हो तो उसे जल्द दुरुस्त करने के लिए निर्देशित किया जाता। खैर, बारिश बहाना बन गई और बैठक टल गई। कुछ यह भी चर्चा करने में लगे थे कि अगर थोड़ा प्रयास किया होता तो कैंपस के अंदर ही तय बैठक हो सकती थी।
वैसे भी कॉलेज का काम ही अधूरा
नैक के निरीक्षण में एमबीपीजी कॉलेज की बेहतर ग्रेडिंग हो पाएगी, ऐसा संभव नहीं नजर आ रहा है। अपने ट्रांसफर और अन्य गतिविधियां के लिए जनप्रतिनिधियों से लेकर उच्चाधिकारियों के चक्कर काटने वाले शिक्षक भी गंभीर नहीं दिख रहे। अगर कोई भी नैक के निरीक्षण के लिए अलर्ट दिखता तो कुछ तो पहल हो रही होती। मैदान खुदा हुआ है, मैदान की जगह मिट्टी का ढेर लगा है। जहां मैदान था, वहां बहुमंजिला इमारत बना दी गई है। विभागों में पर्याप्त संसाधन नहीं है। पहले ही जो संसाधन उपलब्ध कराए गए थे, वे भी रखरखाव के अभाव में खराब हो गए। रही-सही कसर चुनाव आयोग ने पूरी कर दी। चुनाव कार्यालय बनने से कॉलेज का आधा हिस्सा अभी भी अस्त-व्यस्त है।
विवादों में 65 लाख का प्रस्ताव
कॉलेज केवल छात्रनेताओं के लिए ही राजनीति का अड्डा नहीं है, बल्कि तमाम शिक्षकों के लिए भी है। कुछ खुलकर राजनीति करते हैं तो कुछ अंदरूनी स्तर पर राजनीति कर अपना उल्लू सीधा करते हैं। यही कारण रहा कि कॉलेज को 65 लाख रुपये के लिए खर्च करने की अनुमति नहीं मिली। एमबीपीजी कॉलेज ने उच्च शिक्षा निदेशालय को प्रस्ताव भेजा, जो पूर्व के आदेश के तहत था, लेकिन निदेशालय की मनमानी के चलते प्रस्ताव ठंडे बस्ते में डाल दिया गया और अब जिम्मेदारी से बचने के लिए शासन को भेज दिया गया है। जबकि, अगस्त पहले सप्ताह ही नैक टीम निरीक्षण को पहुंच जाएगी। अगर इस मामले में निदेशक से बात करनी की कोशिश की जाती है, तो फोन रिसीव नहीं होता।
अधिकारियों को नहीं चिंता
आठ महीने पहले शासन स्तर पर उच्च शिक्षा विभाग ने नैक के निरीक्षण के लिए सख्त चेतावनी दी थी। कार्यशाला का आयोजन भी हुआ, लेकिन इस समय कोई भी जिम्मेदार अधिकारी 12 हजार से अधिक छात्र-छात्राओं वाले कॉलेज के लिए गंभीर नहीं दिखता। यहां तक कि छात्रनेताओं से लेकर शहर के जनप्रतिनिधियों ने भी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ रखा है।