Move to Jagran APP

हरेला पूजन की तैयारियां शुरू, जानिए क्‍या है अनोखे पर्व की परंपरा NAINITAL NEWS

डीएम सविन बंसल ने शहर में जलभराव का कारण बने नालों नहरों और सड़कों को व्यवस्थित करने के लिए एक सप्ताह की मोहलत दी है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Mon, 15 Jul 2019 12:37 PM (IST)Updated: Tue, 16 Jul 2019 10:07 AM (IST)
हरेला पूजन की तैयारियां शुरू, जानिए क्‍या है अनोखे पर्व की परंपरा  NAINITAL NEWS
हरेला पूजन की तैयारियां शुरू, जानिए क्‍या है अनोखे पर्व की परंपरा NAINITAL NEWS

हल्द्वानी, जेएनएन : हल्द्वानी : 'जी रया जागि रया, यों दिन मास भेटनै रया...।' यानी कि आप जीते-जागते रहें। हर दिन-महीनों से भेंट करते रहें (दीर्घायु हों)...यह आशीष वचन हरेले के दिन परिवार के वरिष्ठ सदस्य परिजनों को हरेला पूजते हुए देंगे। इस दौरान हरेले के तिनकों को सिर में रखने की परंपरा आज भी कायम है। यही है कुमाऊं का धार्मिक व पौराणिक पर्व हरेला। पहाड़ की समृद्ध लोक परंपरा का एहसास कराता हरियाली का यह पर्व इस वर्ष 17 जुलाई को मनाया जाएगा। घर-घर में इसकी तैयारी जोरशोर से चल रही है।

loksabha election banner

हरियाली का प्रतीक है त्योहार
ग्रीष्मकाल में पेड़-पौधों सूख चुके होते हैं। इधर, सावन में रिमझिम बारिश के साथ ही बेजान पेड़-पौधे खिल उठते हैं। चारों ओर हरियाली छा जाती है। पंडित नवीन चंद्र जोशी कहते हैं, यही कारण है कि प्राचीन समय से ही इस मौसम में हरेला मनाने की परंपरा रही है। आज के समय में पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से इस त्योहार की महत्ता और बढ़ गई है।

श्रावण माह के हेरेले का है खास महत्व 
कुमाऊं में हरेला पर्व धार्मिक व पौराणिक महत्व का है। श्रावण मास के प्रथम दिन मनाए जाने वाले इस त्योहार को कर्क संक्रांति के रूप से भी जाना जाता है। इस दिन से सूर्य दक्षिणायन हो जाता है और कर्क रेखा से मकर रेखा की ओर बढऩे लगता है। इसलिए इसे कर्क संक्रांति व श्रावण संक्रांति भी कहा जाता है। वैसे तो कुमाऊं  में हरेला पर्व साल में तीन बार चैत्र, श्रावण व आश्विन माह के अंतिम दिन दशहरे पर मनाया जाता है, लेकिन श्रावण मास के हरेले पर्व का खास महत्व है। 

हरेला के लिए 10 दिन पहले बोये सात अनाज
हरियाली के प्रतीक हरेला पर्व की तैयारी 10 दिन पहले ही शुरू होती है। परिवार के मुखिया एक टोकरी में मिट्टी डालकर और उसे मंदिर के पास रख सात अनाज बोते हैं। इसमें गेहूं, जौ, मक्का, उड़द, गहत, सरसों व चने को शामिल किया जाता है। सुबह-शाम पूजा के समय इन्हें सींचा गया और नौंवे दिन (16 जुलाई) डिकर पूजा यानी गुड़ाई होगी। 

काटा जाएगा हरेला
पंडित डा. नवीन चन्द्र जोशी ने बताया कि हरेला पर्व 17 जुलाई को है। इस दिन संक्राति को 20 से 30 सेंटीमीटर ऊंचे हरे-पीले रंग के पौधे को काटा जाएगा। इसी के साथ संक्रांति की सुबह टोली, अक्षत, फूल, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से पूजा होगी। इन पौधों को देवी-देवताओं को चढ़ाने के बाद घर के सदस्यों के सिर पर रख आशीर्वाद दिया जाएगा।  


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.