पर्यावरण संरक्षण पर हाई कोर्ट का अहम आदेश : सड़क किनारे पेड़ों से कील, स्टीकर व तार तत्काल हटाएं NAINITAL NEWS
हाई कोर्ट ने राज्य में वृक्ष संरक्षण अधिनियम को सख्ती से लागू करने का आदेश पारित करते हुए कमिश्नर कुमाऊं व गढ़वाल को दिशा-निर्देश जारी करने के लिए जवाबदेह को बनाया है।
नैनीताल, जेएनएन : उत्तराखंड हाई कोर्ट ने राज्य में वृक्ष संरक्षण अधिनियम को सख्ती से लागू करने का आदेश पारित करते हुए इसके क्रियान्वयन के लिए कमिश्नर कुमाऊं व गढ़वाल को दिशा-निर्देश जारी करने के लिए जवाबदेह बना दिया है। कोर्ट ने मंडलयुक्तों को सार्वजनिक स्थान और सड़क किनारे के पेड़ों पर लगे स्टीकर, कील, तार के अलावा पेड़ों को नुकसान पहुंचा रही वस्तु को तत्काल हटाने को कहा है। कोर्ट के फैसले के बाद सड़क किनारे के पेड़ों पर होर्डिंग्स और बोर्ड लगाकर व्यावसायिक हित साध रहे कारोबारियों को बड़ा झटका लगा है। कोर्ट ने यह भी साफ किया है कि जो भी इस आदेश का उल्लंघन करेगा, उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज किया जाए। हर जिले में जिलाधिकारी को इसकी मॉनिटरिंग की जिम्मेदारी दी गई है। नैनीताल की मालरोड के पेड़ों में पर्यटन सीजन के दौरान लाइटिंग के लिए किए गए इंतजाम भी तत्काल हटाने को कहा गया है।
हल्द्वानी निवासी सामाजिक कार्यकर्ता अमित खोलिया ने जनहित याचिका दायर कर कहा है कि राज्य की सड़कों के किनारे, सार्वजनिक स्थानों पर स्थित पेड़ों में होर्डिंग्स और बोर्ड लगाकर व्यावसायिक हित साधते हुए पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। याचिका में यह भी कहा है कि पेड़ों पर स्टीकर, कील व तार लगाने से पानी व भोजन तैयार करने की प्रक्रिया प्रभावित होती है, अंतत्वोगत्वा पेड़ सूख जाता है। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमेश रंगनाथन और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने मामले को सुनने के बाद कुमाऊं-गढ़वाल के कमिश्नर को आदेश दिया है कि दोनों मंडलों में पेड़ों पर लगे स्टीकर, कील, तार और अन्य जो भी वस्तु पेड़ों को नुकसान पहुंचा रही है, उसे तत्काल हटाने के आदेश जारी करें। सरकारी विभागों को भी कहा है कि किसी भी प्रकार की सरकारी होर्डिंग्स, लाइट, निशान, बोर्ड आदि पेड़ों पर ना लगाएं। यदि इसके बाद भी कोई आदेश का अनुपालन नहीं करने वालों व अपने हितों के लिए पेड़ों को सूखाने वालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने के आदेश पारित किया है। यहां उल्लेखनीय है कि राज्य में वृक्ष संरक्षण एक्ट-1976 लागू है, लेकिन इसके बाद भी पेड़ों पर विज्ञापन के साथ ही कीलें व अन्य प्रकार की वस्तुओं से पेड़ों को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। पंचायती राज एक्ट 2016, नगर निगम एक्ट 1956, भारतीय वन अधिनियम 1927 में प्रावधान है कि निकाय या ग्राम पंचायत अपने क्षेत्र के सार्वजनिक स्थानों व सड़क किनारे के पेड़ों का संरक्षण और संवर्धन करेंगे, लेकिन इसके बाद भी सरकारी महकमे तक खुद पेड़ों को नुकसान पहुंचा रहे हैं।
दो माह के भीतर कराएं लागू
हाई कोर्ट ने वृक्ष संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत पेड़ों पर विज्ञापन लगाना प्रतिबंधित करने के निर्देश भी जिलाधिकारियों को दिए हैं। दो माह के भीतर इस आदेश का अनुपालन सुनिश्चित कराना होगा। साथ ही सरकारी, गैर सरकारी कार्यालयों में पेड़ों पर लगे बोर्ड दो माह में हटाने होंगे।
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