नंदा देवी में चला रेस्क्यू आपॅरेशन पर्वतारोहण क्षेत्र में चला का सबसे बड़ा अभियान NAINITAL NEWS
नंदा देवी में चलाया गया खोज एवं बचाव का कार्य पर्वतारोहण के क्षेत्र में तकनीकी रू प से अब तक का सबसे बड़ा अभियान था।
पिथौरागढ़, जेएनएन : नंदा देवी में चलाया गया खोज एवं बचाव का कार्य पर्वतारोहण के क्षेत्र में तकनीकी रू प से अब तक का सबसे बड़ा अभियान था। हालांकि एवरेस्ट में भी रेस्क्यू अभियान इससे अधिक ऊंचाई पर चलता है, परंतु तकनीकी रू प से नंदा देवी का अभियान सबसे बड़ा बताया गया है। वहीं मौके पर पर्वतारोहियों के सामान में मिले एक खिलौने ने दल को इतना भावुक कर दिया कि खोज अभियान को अंजाम तक पहुंचाए बिना कोई वापस नहीं लौटना चाहता था।
यहां पर शवों को बीस हजार फीट की ऊंचाई पर ले जाकर ही नीचे ला पाना संभव था। इसमें भी इस ऊंचाई पर शवों को पांच सौ मीटर रस्सी के सहारे उठाना था। बर्फ में दबे होने से शवों का वजन 70 से 80 किलो तक हो गया था। पिथौरागढ़ और मुनस्यारी में लाए जाने पर चार लोग एक शव को उठा पा रहे थे। शवों को 20 हजार फीट की ऊंचाई पर ले जाकर फिर छह किमी ढलान पर 15 हजार फीट की ऊंचाई वाले स्थान पर लाना था। नंदा देवी की प्राकृतिक बनावट के चलते यह रेस्क्यू पर्वतारोहण के क्षेत्र में तकनीकी रू प से सबसे बड़ा बताया जा रहा है।
मृत पर्वतारोहियों के सामान में मिला खिलौना, भावुक हुआ रेस्क्यू दल
रेस्क्यू दल ने नंदा देवी में पर्वतारोहियों द्वारा कई वर्षों से वहां पर फैलाए कूड़े को एकत्रित किया। उसमें जो कूड़ा वहीं पर दबाने योग्य था उसे दबाया गया। शेष अजैविक कूड़ को रेस्क्यू दल अपने साथ लाया है। जिसका निस्तारण पिथौरागढ़ में किया जा रहा है। इसी दौरान पर्वतारोहियों के सामान में एक खिलौना मिला। यह खिलौना देखते ही रेस्क्यू दल के सदस्य भावुक हो गए। यह खिलौना किस पर्वतारोही का था।
नौ दिन तक शवों के साथ रहे रेस्क्यू दल के सदस्य
नंदा देवी में खोज एवं बचाव कार्य के दौरान रेस्क्यू दल के सदस्यों को नौ दिनों तक शवों के साथ रहना पड़ा। नौ दिन पूर्व शव मिल गए थे। इसके बाद इन शवों को निकालने में मौसम बड़ी चुनौती तो बन गया था साथ ही नंदा देवी की दुर्गमता ने इस अधिक चुनौतीपूर्ण बना दिया था।
पंद्रह वर्ष में यह अभियान सबसे कठिन : सोनाल
रेस्क्यू दल के लीडर आइटीबीपी के सहायक सेनानी और दो बार के एवरेस्ट विजेता आरएस सोनाल ने कहा कि यह अभियान उनके पंद्रह वर्षो के अनुभव के आधार पर सबसे अधिक कठिन था। यहां शवों को ढूढंने से अधिक दुष्कर कार्य उन्हें निकाल कर 20 हजार फीट की ऊंचाई पर लिफ्ट करना बेहद कठिन था। इस अभियान के लिए उन्होंने 11 विशेष पर्वतारोहियों का चयन किया। सोनाल ने कहा कि नंदा देवी आस्था की भी प्रतीक है। यहां पर शवों का दबे रहना अच्छा नहीं है। जिसे लेकर शवों को यहां से निकालना आवश्यक था। ऑपरेशन बेहद दुर्गम था। मई व जून का माह होने से बर्फ ठोस हो जाती है। इसी दौरान सबसे अधिक एवलांच आते हैं। रेस्क्यू के दौरान लगातार मौसम खराब रहा और एवलांच आते रहे। खुद को बचाने के अलावा शवों को निकालना भी आवश्यक था। मृतकों के सामान में मिले खिलौना गुड्डे ने तो यह भाव पैदा कर दिया कि शवों को हर हालत में निकाल कर उनके परिजनों तक पहुंचाना आवश्यक है।
वायुसेना के लिए भी कठिन ऑपरेशन
डेयर डेविल्स अभियान में शामिल एयरफोर्स के अधिकारियों ने भी इसे बेहद दुर्गम अभियान था। यह अभियान केवल टीम वर्क से संपन्न हुआ।
डेयर डेविल्स अभियान में शामिल आइटीबीपी के पर्वतारोही
आरएस सोनाल उप सेनानी, टीम लीडर
अनूप कुमार, 13वी बटालियन
हेमंत गोस्वामी, 51वीं बटालियन
देवेंद्र सिंह, 8वी बटालियन
कलम सिंह, 8वीं बटालियन
कपिल देव, औली
प्रदीप पवार, देहरादून
भरत लाल, प्रथम बटालियन
संजय सिंह, 15 बटालियन
जय प्रकाश सिंह, प्रथम बटालियन
सुरेंद्र सिंह, 51 बटालियन
धीरेंद्र प्रताप, 7वीं बटालियन
मंजीत सिंह, 14वीं बटालियन
भाग्यशाली मीना, 14वीं बटालियन
रेस्क्यू अभियान में प्रयुक्त सामग्री
गैस बटन सिलेंडर लार्ज, कैरेबिनियर प्लेन, कैरेबिनियर स्क र्व, स्नो बार, फिक्स रोप, आइस पिटन टबलर, स्टे्रचर इंर्पोटेड फोल्डिं, क्लाइबिंग बूट, हैड टार्च, स्नो बार 2.5 एफटी, विंड प्रूफ जैकेट, विंड प्रूफ लोअर, ईपीआइ बर्नर, रक्सक मिल्ट, सॉक्स हैवी, टेंड अल्पाइन,डफर बैग, स्लीपिंग बैग सियाचिन जैकेट, टाउजर डबल लेयर, जैकेट सियाचिन, सियाचिन मैट्रस, स्नो सावल, टैंड आर्कटिक मीडियम सहित स्टोव, प्रेशर कुकर सहित अन्य सामान।
इसलिए दिया गया डेयर डेविल्स नाम
अभियान का नेतृत्व कर रहे आइटीबीपी के डीआइजी एपीएस निंबाडिया ने बताया कि इस अभियान का नाम डेयर डेविल्स दिया गया। अभियान की दुर्गमता को देखते हुए इसका नाम डेयर डेविल्स दिया गया। जिसका अर्थ इंसान और मशीन से ऊपर का कार्य था। इसी कारण इसे यह नाम दिया गया।