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संस्कृति विभाग की अनूठी पहल, ढोल संस्कृति को सहेजने की कोशिश

हरिद्वार के प्रेमनगर आश्रम में ढोल वादन कार्यशाला नमो नाद का आयोजन किया गया है। उत्तराखंड संस्कृति विभाग ने ढोल संस्कृति के संरक्षण के मकसद से इस कार्यशाला का आयोजन किया है।

By BhanuEdited By: Published: Sun, 06 Aug 2017 02:03 PM (IST)Updated: Sun, 06 Aug 2017 09:28 PM (IST)
संस्कृति विभाग की अनूठी पहल, ढोल संस्कृति को सहेजने की कोशिश
संस्कृति विभाग की अनूठी पहल, ढोल संस्कृति को सहेजने की कोशिश

हरिद्वार, [जेएनएन]: उत्तराखंड संस्कृति विभाग ने की एक अनूठी पहल की है। ढोल वादकों के संरक्षण के लिए विभाग ने हरिद्वार जिले के प्रेमनगर आश्रम में ढोल वादन कार्यशाला नमो नाद का शुभारंभ किया है। इस मौके पर पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने बताया कि इस कार्यशाला के लिए अबतक 1240 ढोल वादकों ने रजिस्ट्रेशन किया है।   

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उत्तराखंड संस्कृति विभाग की पहल पर प्रेमनगर आश्रम में ढोल वादन कार्यशाला का आयोजन किया गया है जो दस अगस्त तक चलेगी। इसका मकसद उत्तराखंड में विलुप्त हो रही ढोल संस्कृति का संरक्षण करना है। इस मौके पर सूबे के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने कहा कि यह सौभाग्य की बात है कि आज 1240 ढोल वादकों ने इसके लिए रजिस्ट्रेशन किया है। इस क्षेत्र में वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने की दिशा में भी कार्य किया जाएगा। उन्होंने कहा कि गिनीज वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड में भी इसे सम्मिलित करना लक्ष्य होगा और वह दिन उत्तराखंड के लिए गौरव का दिन होगा। 

वहीं कार्यशाला में उपस्थित लोक गायक प्रीतम भरतवाण ने  कहा कि यह अद्भुत और सुखद संयोग है और इसकी शुरुआत हरि के द्वार से हुई है। उन्होंने ढोल को शिवपुत्र बताते हुए कहा कि ढोल वादन 16 संस्कारों में होता है, ढोल में विजय सार नाम की धातु से बना संकेत होता है और उंगली के ताल पृथक पृथक होते हैं। इसकी डोरी को नाग वर्ण कहा जाता है और इसकी पुडियो को सूर्य चंद्र कहा जाता है।

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