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धर्मनगरी में गुमनामी के कफन में दफन हो गईं 600 जिंदगियां

धर्मनगरी हरिद्वार में आस्था की भीड़ में सैकड़ों अनजान जिंदगियां हमेशा के लिए गुमनामी के कफन में दफन हो गईं। लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करने वाली समिति के आंकड़े यह बयां कर रहे।

By BhanuEdited By: Published: Wed, 02 May 2018 09:24 AM (IST)Updated: Fri, 04 May 2018 05:08 PM (IST)
धर्मनगरी में गुमनामी के कफन में दफन हो गईं 600 जिंदगियां
धर्मनगरी में गुमनामी के कफन में दफन हो गईं 600 जिंदगियां

हरिद्वार, [मेहताब आलम]: हर साल की तरह वर्ष 2017 में भी देश-विदेश से करोड़ों लोग मोक्ष की कामना लेकर उत्तराखंड के हरिद्वार पहुंचे। लेकिन, आस्था की इसी भीड़ में सैकड़ों अनजान जिंदगियां हमेशा के लिए गुमनामी के कफन में दफन हो गईं। हालांकि, पुलिस के रिकॉर्ड में सिर्फ 98 शव ही दर्ज हैं, जबकि लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करने वाली संस्था सेवा समिति के आंकड़े चौंका देने वाले हैं। 

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समिति ने इस साल 600 से अधिक लावारिस शवों का अंतिम संस्कार किया। ऐसे में सवाल उठने लाजिमी हैं कि इतनी बड़ी तादाद में शव के रूप में मिले ये लोग कौन थे? हरिद्वार क्यों आए और उनकी मौत कैसे हुई? यह तमाम सवाल इन लावारिस शवों की तरह ही पुलिस के लिए भी पहेली बने हुए हैं। हरिद्वार में लावारिश लाशों का मिलना लगातार जारी है। चालू वर्ष भी अप्रैल माह तक अनेक लावारिश शव मिले हैं।

पतित पावनी गंगा हर साल करोड़ों लोगों को हरिद्वार खींच लाती है। लेकिन, यहां हर साल बड़ी तादाद में मिल रहे शव अपने पीछे कई सवाल भी छोड़ जा रहे हैं। पुलिस के अनुसार वर्ष 2017 में कुल 98 लावारिस शव हरिद्वार, कनखल और आसपास के थाना क्षेत्रों में मिले। 

इनमें बच्चों से लेकर महिलाएं व बुजुर्ग तक शामिल हैं, मगर 99 साल से लावारिस शवों का अंतिम संस्कार कर रही सेवा समिति के अध्यक्ष हरिराम कुमार बताते हैं कि हर माह औसतन 50 लावारिस शव अंतिम संस्कार के लिए पहुंच रहे हैं। समिति ने वर्ष 2017 में 600 से अधिक शवों का अंतिम संस्कार किया। 

लेकिन, बड़ा सवाल यह है कि आखिर ये कौन लोग थे? इन्होंने मोक्ष प्राप्ति के लिए खुद गंगा की गोद को चुना या फिर कोई संयोग इन्हें यहां खींच लाया? इन सवालों के जवाब शवों की शिनाख्त के पीछे छिपे हैं, मगर अफसोस! शिनाख्त न होने चलते इन शवों का परिजनों के हाथों अंतिम संस्कार भी नहीं हो पाया। लावारिस के रूप में सिर्फ उनका हुलिया पुलिस की फाइलों में कैद होकर रह गया। 

सामाजिक संस्थाएं कमा रहीं पुण्य 

अधिकांश लावारिस शवों की गुत्थी सुलझाने में पुलिस भले ही कामयाब नहीं हो पा रही है, लेकिन सामाजिक संस्थाओं के लिए यह लावारिस शव ही पुण्य कमाने का माध्यम बन रहे हैं। वर्ष 2018 में स्थापना के सौ साल पूरे करने जा रही सेवा समिति की ओर से खड़खड़ी श्मशान घाट पर लावारिस शवों का अपने खर्च से अंतिम संस्कार किया जाता है। सेवा समिति के अध्यक्ष हरिराम कुमार के मुताबिक प्रतिमाह औसतन 50 लावारिस शवों का अंतिम संस्कार किया जा रहा है। 

बताया कि 11 मार्च 2016 से 28 फरवरी 2017 तक कुल 447 लावारिस शवों का अंतिम संस्कार किया, 326 शवों के अंतिम संस्कार में संस्था ने लकड़ी आदि की मदद की। वहीं, हर रविवार को गंगा के अलग-अलग घाटों की सफाई करने वाले स्पर्श गंगा अभियान के संयोजक शिखर पालीवाल एवं उनकी टीम ने 14 शव गंगा से निकाले। 

लावारिस शवों के आंकड़े 

थाना------------संख्या 

हरिद्वार कोतवाली, 23 

च्वालापुर कोतवाली, 27 

कनखल थाना, 17 

श्यामपुर थाना, 15 

बहादराबाद थाना, 08 

रानीपुर कोतवाली, 06 

सिडकुल थाना, 02 

कुल---------- 98 

गठित होगी अलग सेल

एसएसपी हरिद्वार कृष्ण कुमार वीके के मुताबिक गंगा और अन्य स्थानों से मिलने वाले लावारिस शवों की शिनाख्त के सभी संभव प्रयास किए जाते हैं। इसके लिए आसपास के राज्यों में भी पंफ्लेट भेजे जाते हैं। हालिया दिनों में कई शवों की शिनाख्त कराने का प्रयास भी किया गया, लेकिन सफलता नहीं मिली। शिनाख्त के लिए जल्द अलग से सेल गठित की जाएगी, ताकि मौत के कारणों का पता चल सके।

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