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जन्म लेने वाला चेतन तत्व जीव है: सत्यजीत मुनि

गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग की ओर से आयोजित संस्कृत महोत्सव के तीसरे दिन शोध कार्यशाला में वेदांत दर्शन के गूढ़ तत्वों की व्याख्या आचार्य सत्यजीत मुनि (रोजड-गुजरात) ने सप्रमाण की।

By JagranEdited By: Published: Tue, 28 Sep 2021 08:48 PM (IST)Updated: Tue, 28 Sep 2021 08:48 PM (IST)
जन्म लेने वाला चेतन तत्व जीव है: सत्यजीत मुनि
जन्म लेने वाला चेतन तत्व जीव है: सत्यजीत मुनि

जागरण संवाददाता, हरिद्वार: गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग की ओर से आयोजित संस्कृत महोत्सव के तीसरे दिन शोध कार्यशाला में 'वेदांत दर्शन' के गूढ़ तत्वों की व्याख्या आचार्य सत्यजीत मुनि (रोजड-गुजरात) ने सप्रमाण की। उन्होंने महर्षि बादरायण रचित वेदांत दर्शन के सूत्रों की व्याख्या करते हुए कहा कि वेदांत के मूल सूत्रों में ईश्वर (ब्रह्म) जीव (आत्मा) और प्रकृति (उपादान कारण) की पृथक-पृथक चर्चा उपलब्ध होती है।

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वेदांत के सूत्रों में जगत का निमित्त कारण ब्रह्म अर्थात ईश्वर है और जन्म लेने वाला चेतन तत्व जीव (आत्मा) है और जगत का उपादान कारण प्रकृति तत्व है, जो जड़ है, जिसकी मूल इकाई परमाणु है, जिसे वर्तमान विज्ञान भी मानता है।

वेदांत के भाष्यकारों ने अपने-अपने मत प्रस्तुत किए हैं, जिनमें जगद्गुरु शंकराचार्य ने अद्वैत मत की स्थापना की, जिसमें 'ब्रह्मं सत्यं जगत मिथ्या' कहा गया है। आचार्य शंकर केवल ब्रह्म की सत्ता को ही नित्य मानते हैं। जीव और जगत केवल माया या विवर्त है। रामानुजाचार्य ने विशिष्टाद्वैत मत की स्थापना की, जिसमें ईश्वर और जीव को पृथक मानते हुए ब्रह्म को सर्वोपरि माना है। वल्लभाचार्य ने शुद्धाद्वैतमत की स्थापना की जो 'वेदांत दर्शन' के आधार पर ही की है। मध्वाचार्य ने द्वैताद्वैत मत की स्थापना भी वेदांत दर्शन के अलोक में की है। कार्यशाला में वेदांत के वैदिक मत को प्रस्तुत करते हुए ईश्वर, जीव और प्रकृति तीन तत्वों को त्रैतवाद कहा जाता है, जिसकी व्याख्या की गई।

कार्यशाला में दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. ओमनाथ विमली ने आचार्य शंकर और अन्य अद्वैतवादी आचार्यों के मत पर विशिष्ट व्याख्यान दिया। ऑनलाइन चलने वाली कार्यशाला में देशभर से सैकड़ों प्राध्यापक और शोधार्थी जुड़े। आस्ट्रेलिया आदि देशों से भी दर्शन में रुचि रखने वाले चितक जुड़े। संस्कृत विभाग के प्रो. सोमदेव शतांशु, प्रो. ब्रह्मदेव विद्यालंकार, प्रो. संगीता विद्यालंकार, प्रो. विनय विद्यालंकार, डा. वीना विश्नोई, डा. मौहर सिंह, डा. वेदव्रत, डा. सुनीति आर्या ने किया। कार्यशाला में शोध छात्रा प्रीति आर्या, राधा आर्या, नीरज, गौतम, अंकित आदि उपस्थित रहे।


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