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धर्मनगरी में बढ़ा बहरेपन-दिमागी बीमारियों का खतरा

अनूप कुमार, हरिद्वार धर्मनगरी में बढ़ता शोर (ध्वनि प्रदूषण) बहरेपन और दिमागी बीमारियों क

By JagranEdited By: Published: Tue, 13 Nov 2018 03:01 AM (IST)Updated: Tue, 13 Nov 2018 03:01 AM (IST)
धर्मनगरी में बढ़ा बहरेपन-दिमागी बीमारियों का खतरा
धर्मनगरी में बढ़ा बहरेपन-दिमागी बीमारियों का खतरा

अनूप कुमार, हरिद्वार

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धर्मनगरी में बढ़ता शोर (ध्वनि प्रदूषण) बहरेपन और दिमागी बीमारियों का खतरा पैदा कर रहा है। ध्वनि प्रदूषण तय मानकों की सीमा को लांघ गया। इस दीपावली पटाखों के शोर ने इसमें और इजाफा कर दिया। 'पीक आवर्स' (सुबह 9 से 11 और शाम 6 से 8 बजे तक) में यह तय मानकों से पांच गुना अधिक तक पहुंच जा रहा है, जबकि सामान्य समय में भी यह तय मानकों से 15 से 20 फीसद अधिक रहता है, यहां तक कि शांत घोषित क्षेत्र स्कूल व अस्पताल भी इसके चलते अशांत हो गए हैं। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीसीबी) की जांच में इसका पता चलने पर हड़कंप मचा हुआ है।

जांच में पता चला कि ऐसा फैक्ट्रियों के शोर, ध्वनि विस्तारक यंत्रों, प्रेशर हार्न के बढ़ते इस्तेमाल, वाहनों-जनरेटरों के बढ़ते इस्तेमाल से हो रहा। हालात किस कदर बिगड़ चुके हैं, इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि सामान्य दिनों और सामान्य समय (दिन) में भी ध्वनि प्रदूषण निर्धारित मानक 55 डेसीबल से 15 से 20 फीसद अधिक 75-76 डेसीबल हमेशा बना रहता है। इसी दौरान व्यस्ततम क्षेत्र, चौराहे आदि पर यह 115 से 120 डेसीबल तक पहुंच जाता है। पीक आवर्स यानि सुबह 9 से 11 और शाम 6 से 8 बजे के दौरान यह मात्रा कई बार 250 डेसीबल तक पहुंच रही है, जोकि बेहद खतरनाक है। विशेषज्ञों के अनुसार ज्यादा देर तक इतने शोर में रहने से व्यक्ति मानसिक संतुलन तक खो सकता है। रात के समय शोर का स्तर निर्धारित मानक 45 डेसीबल की जगह 64 डेसीबल तक पहुंच जा रहा है।

बढ़ते ध्वनि प्रदूषण का शोर शांत क्षेत्र माने जाने वाले अस्पताल और शिक्षण संस्थानों में घुस गया है और इसने उन्हें भी अशांत कर दिया है। शांत क्षेत्र में यह दिन के समय निर्धारित मानक 50 डेसीबल की सीमा लांघकर 53 डेसीबल पहुंच गया है। आश्चर्यजनक तथ्य तो यह है कि शांत क्षेत्र में रात के समय दिन की अपेक्षा अधिक शोर हो रहा है। रात में यहां पर ध्वनि प्रदूषण की मात्रा निर्धारित मानक 40 डेसीबल की जगह 49 डेसीबल मापा गया है। पीसीबी के क्षेत्रीय अधिकारी प्रदीप कुमार जोशी ने भी इस पर आश्चर्य व्यक्त किया और इसका कारण पता लगाने को अलग से इन इलाकों की मानीट¨रग करने के आदेश दिए। उन्होंने बताया कि 200 डेसीबल से अधिक शोर को सेहत के लिए खतरनाक माना गया है। अधिक समय तक इतने शोर में रहने से सुनने की क्षमता प्रभावित होती है। कहा कि बढ़ते ध्वनि प्रदूषण के कारणों की जांच कर उस पर अंकुश लगाने की कार्रवाई शुरू कर दी गई है, इसके लिए जन-जागरूकता अभियान भी चलाया जाएगा।


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