लकड़बग्घों के संरक्षण पर राजाजी टाइगर रिजर्व प्रशासन ढुलमुल
जंगल के प्राकृतिक सफाई कर्मी कहे जाने वाले दुर्लभ प्रजाति के लकड़बग्घा (हायना) के संरक्षण को राजाजी टाइगर रिजर्व प्रशासन गंभीर नजर नहीं आ रहा।
हरिद्वार, अनूप कुमार। जंगल के प्राकृतिक सफाई कर्मी कहे जाने वाले दुर्लभ प्रजाति के लकड़बग्घा (हायना) के संरक्षण को राजाजी टाइगर रिजर्व प्रशासन गंभीर नजर नहीं आ रहा। वर्ष 2013 में उत्तराखंड में आई आपदा के बाद राजाजी के जंगलों में लकड़बग्घा की मौजूदगी के प्रमाण मिले थे। तब लकड़बग्घा न सिर्फ कैमरा ट्रैप में कैद हुआ था, बल्कि कुछ पर्यटकों और पार्क कर्मियों को भी दिखाई दिया था। बाद में लकड़बग्घों की तादाद बढऩे की जानकारी सामने आने पर राजाजी टाइगर रिजर्व के तत्कालीन निदेशक सनातन सोनकर ने इसे संरक्षित किए जाने की बात भी कही थी। लेकिन, जमीनी स्तर पर आज तक इस दिशा में कोई पहल नहीं हुई।
शेड्यूल-वन के प्राणियों में शामिल लकड़बग्घा की पार्क में मौजूदगी के बावजूद इसके संरक्षण को लेकर राजाजी पार्क प्रशासन का रवैया नकारात्मक ही रहा। पार्क के वर्तमान निदेशक पीके पात्रो तो यह जानकारी होने से भी साफ इन्कार करते हैं कि पूर्व निदेशक सनातन सोनकर की ओर से लकड़बग्घा के संरक्षण की बात कही गई थी। जबकि, प्रभागीय वनाधिकारी आकाश वर्मा इस वर्ष बाघों के साथ लकड़बग्घों की भी गिनती किए जाने की बात कह रहे हैं।
वास्तविकता यह है कि राजाजी पार्क प्रशासन का सारा ध्यान बाघ व गुलदार पर केंद्रित होने के कारण लकड़बग्घा उसकी प्राथमिकता में नहीं है। हालांकि, विभागीय कर्मी लकड़बग्घा के संरक्षण में हो रही हीला-हवाली को जंगल के ईको सिस्टम के लिए खतरा मानते हैं। वह कहते हैं कि वर्षों पहले पार्क में लकड़बग्घों की अच्छी-खासी मौजूदगी रही है, लेकिन अनदेखी के चलते वर्तमान में इनकी संख्या ना के बराबर रह गई है।
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नहीं करा सके अन्य रेंजों में लकड़बग्घों की आमद
राजाजी टाइगर रिजर्व की चीला रेंज को छोड़ दें तो पार्क की बाकी अन्य आठ रेंजों में लकड़बग्घा की मौजूदगी के कोई प्रमाण नहीं मिले हैं। इससे साफ है कि बीते छह वर्षों के दौरान इन रेंजों में लकड़बग्घा की आमद दर्ज कराने के कोई प्रयास नहीं हुए। जबकि, दावा किया गया था कि हर रेंज में लकड़बग्घा के संरक्षण को वृहद योजना तैयार की जाएगी।
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