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ग्लोबल वार्मिग के चलते रुड़की से रुठी बारिश

जागरण संवाददाता, रुड़की: इस साल शिक्षानगरी में बारिश का कुछ अलग ही पैटर्न देखने को मिल र

By JagranEdited By: Published: Tue, 17 Jul 2018 03:01 AM (IST)Updated: Tue, 17 Jul 2018 03:01 AM (IST)
ग्लोबल वार्मिग के चलते रुड़की से रुठी बारिश
ग्लोबल वार्मिग के चलते रुड़की से रुठी बारिश

जागरण संवाददाता, रुड़की: इस साल शिक्षानगरी में बारिश का कुछ अलग ही पैटर्न देखने को मिल रहा है। आलम यह है कि रुड़की में बरसात के लिए अनुकूल परिस्थितियां बनने के बावजूद बादल बिन बरसे लौट रहे हैं। देखने में आया है कि पिछले दिनों जिन-जिन तिथियों में मौसम वैज्ञानिकों ने बरसात की भविष्यवाणी की थी उन-उन दिनों काले घने बादलों ने आसमान में डेरा तो डाला लेकिन अधिकांश बार बिन बरसे ही वापस चले गए या फिर बूंदाबांदी से ही शहरवासियों को संतोष करना पड़ रहा है। उधर, दो सालों की तुलना करें तो जहां वर्ष 2017 में मानसून आने के बाद से लेकर 14 जुलाई तक 483.6 एमएम बरसात हो गई थी। वहीं इस साल अब तक मात्र 135.8 एमएम बारिश ही रेकॉर्ड की गई है।

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वर्ष 2017 में मानसून ने शहर में 26 जून को दस्तक दी थी, जबकि इस वर्ष मानसून दो दिन देरी से शहर में पहुंचा। यहां पर 28 जून को मानसून की बारिश का आगाज हुआ। मानसून आने के बाद एक जुलाई को 41 एमएम, तीन जुलाई को 69.9 एमएम और चार जुलाई को 12 एमएम बारिश रेकॉर्ड हुई। गौर करने वाली बात है कि इसके बाद से लगभग प्रतिदिन ही सुबह से लेकर शाम तक आसमान में काले घने बादल अपना डेरा डाल रहे हैं। इसके बावजूद झमाझम बारिश के लिए लोगों को तरसना पड़ रहा है। बारिश नहीं होने के कारण लोगों को मानसून के सीजन में भी उमस भरी गर्मी झेलनी पड़ रही है। मौसम की इस बेरुखी को आंकड़े भी बयां कर रहे हैं। आइआइटी रुड़की के जल संसाधन विकास एवं प्रबंधन विभाग में संचालित ग्रामीण कृषि मौसम सेवा परियोजना से मिली जानकारी के अनुसार गत वर्ष जहां जून में कुल 441 एमएम बरसात हुई थी। वहीं वर्ष 2018 में जून में मात्र 77.5 एमएम ही बारिश हुई। जबकि गत वर्ष मानसून के दस्तक देने के बाद से लेकर 14 जुलाई तक जहां 483.6 एमएम बरसात हुई थी वहीं इस साल मानसून के आगाज होने से लेकर 14 जुलाई तक केवल 135.8 एमएम ही बारिश हुई है। ऐसे में शहरवासी मानसून के सीजन में भी बरसात के लिए आसमान की ओर टकटकी लगाने को मजबूर हैं। उधर, आइआइटी रुड़की के जल संसाधन विकास एवं प्रबंधन विभाग में संचालित ग्रामीण कृषि मौसम सेवा परियोजना के नोडल अधिकारी डॉ. आशीष पांडेय के अनुसार दिनोंदिन बढ़ते प्रदूषण के चलते संभवत: वातावरण में व्याप्त सामान्य से अधिक गर्मी (वैश्विक तापमान वृद्धि अथवा ग्लोबल वार्मिंग) इसकी वजह हो सकती है। उनके अनुसार शायद बादलों को संघनित होकर बरसने के लिए अनुकूल तापक्रम की अनुपलब्धता के चलते बादल बरस नहीं पा रहे हैं।


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