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कैलाश सत्यार्थी की कोशिश और सोशल मीडिया से मुस्कराया बचपन

बिहार से एक 11 साल का बालक लापता हो गया था। जानकारी होने पर नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी और उनके एनजीओ की टीम हरिद्वार पहुंची।

By Sunil NegiEdited By: Published: Fri, 09 Mar 2018 06:03 PM (IST)Updated: Sat, 10 Mar 2018 11:28 AM (IST)
कैलाश सत्यार्थी की कोशिश और सोशल मीडिया से मुस्कराया बचपन
कैलाश सत्यार्थी की कोशिश और सोशल मीडिया से मुस्कराया बचपन

हरिद्वार, [जेएनएन]: बचपन बचाओ के प्रणेता और नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी की कोशिश और सोशल मीडिया के माध्यम से शुक्रवार को हरिद्वार में बचपन मुस्करा उठा। दो साल पहले लापता बेटे को गले लगा पिता की आंखें छलछला गईं तो सत्यार्थी भी भावुक हो गए। इस मिलन को कराने सत्यार्थी बच्चे के पिता के साथ खुद हरिद्वार आए।

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मूलरूप से कटिहार जिले के रघुरामपुर गांव के रहने वाले सगीर अहमद और उनकी पत्नी दिल्ली में मजदूरी कर गुजर बसर करते हैं। वर्ष 2016 में एक दिन वे काम से घर लौटे तो देखा सोनू वहां नहीं था। काफी तलाश के बाद भी जब कुछ पता नहीं चला उन्होंने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई।

तब सोनू की उम्र नौ वर्ष थी। पिछले दिनों सगीर ने कैलाश सत्याथी के बचपन बचाओ संस्था से संपर्क किया। संस्था भी सोनू की तलाश में जुट गई। संस्था ने अपने वाट्सअप ग्रुप पर बच्चे का फोटो अपलोड कर दिया।

राजकीय बालगृह के अधीक्षक विजय दीक्षित ने बताया कि तीन दिन पहले वाट्सअप ग्रुप पर बच्चे का फोटो देखा। इस पर उन्होंने कैलाश सत्यार्थी से संपर्क साधा। इससे तस्दीक हो गई कि फोटो सोनू का ही है। शुक्रवार को कैलाश सत्यार्थी व बच्चे के पिता संगीर के साथ हरिद्वार पहुंचे। औपचारिकताएं पूरी करने के बाद बच्चे को सगीर को सौंप दिया गया। पिता-पुत्र एक दूसरे से लिपटकर भावुक हो गए।

कैलाश सत्यार्थी ने बाल गृह में बच्चों के साथ कुछ समय बिताया। इस दौरान उन्होंने कहा कि बच्चों से बचपन न छीनें तभी उनका सर्वांगीण विकास संभव है। उन्होंने बाल गृह में मोबाइल रिपेयरिंग, मोमबत्ती, अगरबत्ती बनाने जैसे रोजगारपरक प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जाने की भी सराहना की। 

लक्सर में घूमता मिला था सोनू 

राजकीय बालगृह के अधीक्षक विजय दीक्षित के अनुसार पुलिस को सोनू हरिद्वार के लक्सर क्षेत्र में सड़क पर घूमता हुआ मिला था। पुलिस ने उसे राजकीय बालगृह भेज दिया।  बच्चा ठीक से बोल नहीं पाता था और अन्य शुरुआत में दूसरे बच्चों से भी दूर रहता था। ऐसे में वह अपने घर का पता भी नहीं बता पाया। बाल कल्याण समिति और एंटी ह्यूमन ट्रेफिकिंग सेल बच्चे के माता-पिता की तलाश करने लगे। दीक्षित बताते हैं कि बाल गृह में कई बार काउंसिलिंग के बाद बच्चा कुछ सामान्य हो पाया।

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