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आइआइटी रुड़की ने विकसित किया विशिष्ट बैक्टीरिया बायो सेंसर, इस दिशा में दुनिया की पहली खोज का दावा

आइआइटी रुड़की ने पर्यावरण डिटर्जेट प्रदूषक यानी एसडीएस का पता लगाने के लिए विशिष्ट बैक्टीरिया बायो सेंसर विकसित किया है। संस्थान का ये भी दावा है कि यह इस दिशा में दुनिया की पहली खोज की गई है।

By Edited By: Published: Fri, 30 Oct 2020 08:41 PM (IST)Updated: Sat, 31 Oct 2020 09:25 PM (IST)
आइआइटी रुड़की ने विकसित किया विशिष्ट बैक्टीरिया बायो सेंसर, इस दिशा में दुनिया की पहली खोज का दावा
आइआइटी रुड़की ने विकसित किया विशिष्ट बैक्टीरिया बायो सेंसर।

रुड़की(हरिद्वार), जेएनएन। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) रुड़की ने पर्यावरण डिटर्जेंट प्रदूषक(एसडीएस) का पता लगाने के लिए विशिष्ट बैक्टीरिया बायो सेंसर विकसित किया है। संस्थान का दावा है कि यह इस दिशा में दुनिया की पहली खोज है। आइआइटी रुड़की की पांच सदस्यीय टीम ने सामान्य डिटर्जेंट पर्यावरण प्रदूषक (सोडियम डोडेसिल सल्फेट और सोडियम लॉरिल सल्फेट) की उपस्थिति का पता लगाने के लिए बायोसेंसर विकसित किया है। इनका उपयोग प्रमुख रूप से साबुन, टूथपेस्ट, क्रीम, शैंपू, डिटर्जेंट, कृषि कार्यों और उद्योगों में किया जाता है। इसका विभिन्न जलाशयों और जलस्रोत के जीवों पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है। साथ ही पीने के पानी की गुणवत्ता भी खराब होती है। शोध का उद्देश्य एसडीएस की पहचान के लिए एक उपयुक्त बायो सेंसर विकसित करना था।

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एमएससी अंतिम वर्ष के शोध छात्र सॉरिक डे ने बताया कि अगर एसडीएस का समुचित उपचार नहीं किया जाता तो यह समुद्री जैव विविधता को नुकसान पहुंचाने के साथ भूमि और जल निकायों के प्रदूषण का कारण बन सकता है। उन्होंने बताया कि यह बायो सेंसर पर्यावरण में एसडीएस की न्यूनतम मात्रा की उपस्थिति को लेकर भी संवेदनशील है। यह शोध प्रो. नवानी के निर्देशन में पूरा किया गया। भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने प्रो. नवानी को वित्तीय सहायता भी प्रदान की है। उनकी टीम में शाहनवाज अहमद बाबा, अंकिता भट्ट, रजत ध्यानी शामिल हैं।  

बेहद खतरनाक है एसडीएस 

शोध छात्र सॉरिक डे ने बताया कि औद्योगिक क्षेत्र में एसडीएस का कई प्रकार से प्रयोग होता है। इनमें इमल्सीफायर, फूड प्रोसेसिंग एजेंट, स्टेबलाइजर, लेदर सॉफ्टनिंग, फोमिंग, फ्लोकुलेटिंग और क्लीनिंग एजेंट आदि शामिल हैं। एसडीएस का जलीय पारिस्थितिकी तंत्र में जीवों के अस्तित्व और उनकी प्रजनन क्षमता पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है। इससे त्वचा और नेत्र संबंधी जलन, हृदय विकार, हेमोलिसिस, टैचीकार्डिया, गुर्दे की खराबी और यहां तक कि मृत्यु भी हो सकती है।

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