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कोरोना से जंग में आइआइटी रुड़की की रही अहम भूमिका, पढ़िए पूरी खबर

वैश्विक महामारी कोरोनो से जंग लडऩे में आइआइटी रुड़की के वैज्ञानिकों और इंजीनियर्स की अहम भूमिका रही है। आइआइटी के इंजीनियर्स और वैज्ञानिकों ने कोरोना से लडऩे के लिए सस्ता पोर्टेबल वेंटीलेटर बनाया। इसके अलावा फेस शील्ड का फ्रेम 3-डी प्रिंटेड बनाया।

By Sumit KumarEdited By: Published: Thu, 31 Dec 2020 04:10 PM (IST)Updated: Thu, 31 Dec 2020 07:40 PM (IST)
कोरोना से जंग में आइआइटी रुड़की की रही अहम भूमिका, पढ़िए पूरी खबर
आइआइटी के इंजीनियर्स और वैज्ञानिकों ने कोरोना से लडऩे के लिए सस्ता पोर्टेबल वेंटीलेटर बनाया।

रीना डंडरियाल, रुड़की: वैश्विक महामारी कोरोनो से जंग लडऩे में आइआइटी रुड़की के वैज्ञानिकों और इंजीनियर्स की अहम भूमिका रही है। आइआइटी के इंजीनियर्स और वैज्ञानिकों ने कोरोना से लडऩे के लिए सस्ता पोर्टेबल वेंटीलेटर बनाया। इसके अलावा फेस शील्ड का फ्रेम 3-डी प्रिंटेड बनाया। यही नहीं कोरोना के संदिग्ध मरीजों की निगरानी के लिए ट्रैकिंग मोबाइल एप्‍लीकेशन तैयार किया।

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देश में कोरोना के केस मार्च से आने शुरू हो गये थे।कोविड-19 के मरीजों को सांस लेने की समस्या थी। कोविड वायरस सांसों को सबसे अधिक प्रभावित कर रहा है। देश में सस्ता और सुलभ वेंटीलेटर एक समस्या थी। आइआइटी रुड़की के इंजीनियर्स ने कोविड-मरीजों की सुरक्षा के लिए कम लागत वाला पोर्टेबल वेंटिलेटर विकसित किया। प्राण-वायु नाम के इस क्लोज्ड लूप वेंटिलेटर को एम्स, ऋषिकेश के सहयोग से विकसित किया गया था। अत्याधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित यह वेंटिलेटर मरीज को आवश्यक मात्रा में हवा पहुंचाने के लिए प्राइम मूवर के नियंत्रित ऑपरेशन पर आधारित था। स्वचालित प्रक्रिया दबाव और प्रवाह की दर को सांस लेने और छोडऩे के अनुरूप नियंत्रित करती है। इसके अलावा वेंटिलेटर में ऐसी व्यवस्था है जो 'टाइडल' वॉल्यूम और प्रति मिनट सांस को नियंत्रित कर सकती है। वेंटिलेटर सांस नली के विस्तृत प्रकार के अवरोधों में उपयोगी होगा और सभी आयु वर्ग के रोगियों, विशेष रूप से बुजुर्गों के लिए खास लाभदायक है। इस वेंटिलेटर के निर्माण पर लगभग 25 हजार रुपये का खर्च आएगा जो कि सबसे सस्ता माना जा रहा है। इसके अलावा 'इआइटी' रुड़की ने एम्स-ऋषिकेश के हेल्थकेयर पेशेवरों की 'कोविड' -19 से फ्रंटलाइन सुरक्षा के लिए कम लागत वाला फेस शील्ड विकसित किया था। फेस शील्ड का फ्रेम 3-डी प्रिंटेड था।

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कोविड-19 रोगियों के वार्ड में प्रवेश करते समय स्वास्थ्य कर्मी अन्य सुरक्षा उपकरणों के साथ ही इस शील्ड का उपयोग कर सकते थे। शीट की लागत केवल 5 रुपये है। प्रति शील्ड की निर्माण लागत लगभग 45 रुपये हैं। बड़े पैमाने पर निर्माण करने पर प्रति शील्ड लागत केवल 25 रुपये आएगी। इस शील्ड को संस्थान के री थिंक द टिंकरिंग लैब में विकसित किया गया है। कोविड-19 संदिग्धों की निगरानी के सरकार के प्रयास में संस्थान ने एक खास ट्रैकिंग मोबाइल एप्लिकेशन विकसित किया। जो अत्याधुनिक गुणवत्ताओं से संपन्न है। ऐप संदिग्ध व्यक्तियों को ट्रैक कर सकता है और उसके आसपास जियोफेंसिंग का निर्माण भी कर सकता है।

क्वारंटाइन किये गए व्यक्ति की ओर से जियोफेंसिंग का उल्लंघन करने पर ऐप के जरिये सिस्टम को एक अलर्ट प्राप्त होता है। अगर किसी भी वजह से जीपीएस डेटा प्राप्त नहीं होता है तो लोकेशन का पता स्वचालित रूप से मोबाइल टावरों के ट्राईन्ग्युलेशन से प्राप्त किया जा सकेगा। यदि किसी खास जगह पर इंटरनेट काम नहीं कर रहा है तो उस जगह का पता एसएमएस के माध्यम से प्राप्त किया जाएगा। ऐप के बंद होने की स्थिति में शीघ्र ही अलर्ट प्राप्त होगा। डिवाइस पर एसएमएस भेजकर व्यक्ति के जगह का पता प्राप्त किया जा सकता है। कोविड-19 के प्रसार को कम करने के उद्देश्य से आम उपयोग की वस्तुओं को सेनीटाइज्ड करने के लिए अनूठा स्टेरिलाइजेशन सिस्टम विकसित किया है। इस मशीन का उपयोग आम उपयोग की वस्तुएं जैसे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स (मोबाइल, घड़ी, वायरलेस गैजेट्स, मेटल व प्लास्टिक के सामान (पर्स, चाबी, चश्मा, बैग)) को सैनिटाइज करने के लिए किया जा सकता है। डिजाइन किए गए इस उत्पाद का उपयोग सरकारी और निजी दफ्तरों के अलावा हवाई अड्डों, शैक्षणिक संस्थानों, शॉपिंग मॉल और अन्य जगहों पर भी आम उपयोग की वस्तुओं को सैनिटाइज करने के लिए किया जा सकता है। इसके उपयोग के लिए स्टेरिलाइजेशन सिस्टम का एक नमूना हरिद्वार नगर निगम को सौंपा गया था। आइआइटी रुड़की के शोधकर्ताओं ने डिसिन्फेक्शन बॉक्स विकसित किया है। जिसका उपयोग कोरोना वायरस से बचाव हेतु चिकित्सा उपकरण, व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण और परिधानों समेत कई प्रकार के व्यक्तिगत सामानों के सैनिटाइजेशन के लिए किया जा सकता है।

'यूनिसेव्यर' नामक इस बॉक्स में मेटल कोटेड विशेष रूप से डिजाइन किए हाईली रिफलेक्टिव जियोमेट्री लगे हैं जो यूवीसी लाइट के अंशशोधित निकास से व्यक्तिगत सामानों को सैनिटाइज करेगा। इस बॉक्स में स्वदेशीय विकसित मेटल ऑक्साइड के साथ-साथ हर्बल एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-वायरल परतों की सूक्ष्म कोङ्क्षटग की गई है जो यूवीसी लाइट के उपयोग में नहीं होने पर सूक्ष्मजीवों के विकास को रोकता है।

आइआइटी रुड़की के छात्रों ने बनाया हर्बल हैंड सैनिटाइजर

रुड़की: आइआइटी रुड़की के छात्रों ने फुट ऑपरेटेड हैंडवाश वेंडिंग मशीन (एफएचवीएम) लॉंच किया है। जिसका उद्देश्य महामारी के दौरान छात्रों के बीच व्यतिगत संपर्क को पूरी तरह खत्म करते हुए स्वच्छता को सुनिश्चित करना है। वहीं कोरोनाओवेन नामक उत्पाद भी बनाया है। यह स्वास्थ्य संस्थानों और घरों में नियमित उपयोग के उत्पादों- वस्तुओं की सतहों को प्रभावी ढंग से साफ करने के लिए विशेष डिजाइन मापदंडों के साथ ही यूवी-सी प्रकाश का उपयोग करता है, और इस प्रकार यह वायरस (कोविड -19 वायरस पैदा करने वाले) का सतह से मानव में संचरण रोकता है।

छह भाषाओं में बनाई इंटरेक्टिव कामिक्स

रुड़की: लॉकडाउन के दौरान बच्चों के मनोरंजन के लिए आइआइटी रुड़की - टेक्नोलॉजी इन्क्यूबेशन एंड इंटरप्रेन्योर डेवलपमेंट सोसाइटी (टीआईईडीएस) और इनक्यूबेटेड स्टार्टअप टीबीएस प्लानेट कॉमिक्स स्टूडियो ने मिलकर नि:शुल्क इंटरेक्टिव कॉमिक्स की व्यवस्था की। कॉमिक्स छह भाषाओं ङ्क्षहदी, अंग्रेजी, तेलुगु, कन्नड़, बंगला, मराठी में उपलब्ध है, जो बच्चों को उनके भाषाई कौशल को बेहतर बनाने में मदद कर रही है। वहीं लॉकडाउन के दौरान युवाओं के कौशल विकास और ई-लर्निंग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से आइआइटी रुड़की ने क्लाउड एक्सलैब डॉट कॉम पर डीप लर्निंग का एडवांस सर्टिफिकेशन कोर्स शुरू किया है। इसकी शुरुआत आइआइटी रुड़की और अमेरिका स्थित एड-टेक कंपनी क्लाउड एक्सलैब डॉट कॉम के बीच करार के बाद हुई है। इसके बाद से इंस्ट्रक्टर-लेड और सेल्फ-पेस्ड एग्जीक्यूटिव ऑनलाइन कोर्स की सीरीज चलाई जा रही है। इस कोर्स को पूर्व से मौजूद कोर्स जैसे कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग, डेटा साइंसआदि कोर्सों के साथ जोड़ा गया है। इसे आइआइटी रुड़की के प्राध्यापक और अन्य विशेषज्ञों की ओर पढ़ाया जाएगा। लाइव वीडियो के माध्यम से कक्षाओं को ऑनलाइन स्ट्रीम किया गया। कोर्स पूरा होने पर यूजर्स को आइआइटी रुड़की की ओर से एक प्रमाण पत्र भी दिया जाएगा।

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