साधना में समय का उपयोग कर रहे गायत्री परिवार के प्रमुख, पढ़िए पूरी खबर
अखिल विश्व गायत्री परिवार के प्रमुख और देव संस्कृति विश्वविद्यालय हरिद्वार के कुलाधिपति डॉ. प्रणव पंड्या का कहना है कि लॉकडाउन में मैं भी स्वाध्याय साधना कर रहा हूं।
हरिद्वार, जेएनएन। कोरोना महामारी से लड़ने के लिए किए गए लॉकडाउन के चलते मैं भी इन दिनों एकांत में स्वाध्याय साधना कर रहा हूं। इस बीच चैत्र नवरात्र भी शुरू हो चुके हैं। संकल्प एवं साधना का यह अवसर मानवता के लिए ईश्वर के वरदान से कम नहीं है। सभी लोग इस अवधि का द्विगुणित लाभ ले सकते हैं। यह कहना है अखिल विश्व गायत्री परिवार के प्रमुख और देव संस्कृति विश्वविद्यालय हरिद्वार के कुलाधिपति डॉ. प्रणव पंड्या का।
डॉ. पंड्या बताते हैं कि इस कठिन समय में वह भी खुद को आंतरिक एवं बाह्य रूप से पूरी तरह स्वस्थ रखने के लिए अपनी दिनचर्या की शुरुआत ब्रह्ममुहूर्त से करते हैं। इस समय वायुमंडल में शुद्ध ऑक्सीजन सर्वाधिक मात्र में मौजूद रहती है, जो स्वास्थ्य के लिए अनमोल है। यह ध्यान, साधना, प्राणायाम, योगाभ्यास आदि की दृष्टि से भी सवरेत्तम समय होता है।
वे कहते हैं कि इन दिनों ध्यान-साधना के बाद उनकी दिन की शुरुआत पेय पदार्थ, दूध व अकुंरित चना-मूंग या मौसमी फलों के सेवन से होती है। यह शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में सहायक हैं। दोपहर के भोजन में वह दाल-चावल, रोटी और हरी सब्जी लेते हैं। इससे शरीर को पर्याप्त मात्र में कॉबरेहाइड्रेड और आवश्यक विटामिन मिल जाते हैं। सायंकाल में वह बहुत ही हल्का एवं सुपाच्य भोजन ग्रहण करते हैं और फिर तीन घंटे बाद सोने चले जाते हैं।
संकट की इस घड़ी में धैर्य, संकल्प और अनुशासन जरूरी
डॉ. पंड्या बताते हैं कि उन्होंने जीवन में अनुशासन को सर्वोपरि माना है और इन दिनों भी इसी का पालन कर रहे हैं। कोरोना के खिलाफ यह जंग अनुशासन के साथ संयम, धैर्य, संकल्प, सहयोग और समर्थन के भाव से ही जीती जा सकती है। वे कहते हैं कि सभी लोग ज्यादा से ज्यादा वक्त आइसोलेशन में गुजारने की कोशिश करें। वह स्वयं भी ऐसा ही कर रहे हैं।
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अकेलेपन में स्वाध्याय से बड़ा कोई साथी नहीं
डॉ. पंड्या कहते हैं कि मेरे लिए यह श्रेष्ठ साहित्य यानी जीवन को ऊंचा उठाने में सहायक पुस्तकों के अध्ययन-मनन का समय है। मेरे गुरु पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते थे कि आत्मोद्धारक ज्ञान प्राप्त करने के जिज्ञासु व्यक्तियों को सत्साहित्य एवं युग साहित्य के सिवाय किसी दूसरे अवांछनीय साहित्य को हाथ भी नहीं लगाना चाहिए। मैंने जीवन में इन्हीं सूत्रों को अपनाया है। कोरोना वायरस से लड़ने के लिए पैदा हुआ यह एकांत अन्य साधकों की तरह मेरे लिए भी ध्यान और समाधि का सोपान है।
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