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संत की कलम से: कुंभ के आयोजन में दूर-दराज से पहुंचते हैं ऋषि-मुनि- स्वामी शिवानंद

सत्य ही अमृत है पृथ्वी सत्य पर टिकी है। सत्य ही अमृत है। जब संसार रूपी समुद्र का मंथन किया जाता है तो पहले विष निकलता है। इसके बाद नाना प्रकार की औषधियां और मणि निकलते हैं। संसार रूपी मंथन से ही लक्ष्मी का प्रादुर्भाव होता है।

By Raksha PanthriEdited By: Published: Sun, 24 Jan 2021 12:14 PM (IST)Updated: Sun, 24 Jan 2021 12:14 PM (IST)
संत की कलम से: कुंभ के आयोजन में दूर-दराज से पहुंचते हैं ऋषि-मुनि- स्वामी शिवानंद
कुंभ के आयोजन में दूर-दराज से पहुंचते हैं ऋषि-मुनि- स्वामी शिवानंद।

Haridwar Kumbh 2021 सत्य ही अमृत है पृथ्वी सत्य पर टिकी है। सत्य ही अमृत है। जब संसार रूपी समुद्र का मंथन किया जाता है तो पहले विष निकलता है। इसके बाद नाना प्रकार की औषधियां और मणि निकलते हैं। संसार रूपी मंथन से ही लक्ष्मी का प्रादुर्भाव होता है। यह लक्ष्मी जब भगवान को समर्पित की जाती है तो अंत में अमृत निकलता है। इसी अमृत को पाने के लिए हमारे भीतर देवासुर संग्राम होता है। परिणाम स्वरूप मनुष्य अपने भीतर संग्राम कर देवत्व को अमृत का पान कराता है।

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जब धन रूपी लक्ष्मी को भगवान के सुपुर्द कर दिया जाता है तो भगवान की कृपा से ही राक्षक अमृत का पान नहीं कर पाते और देवता ही अमृत का पान करते हैं। हमारे भीतर की आंतरिक क्रिया जब बहिर्गत ब्रह्मांड में होती है तो इसी परिणाम कुंभ का आयोजन है। आंतरिक और बहिर्गत समुद्र मंथन का जो समय आता है वह अमूल्य होता है। 

यही कारण है कि कुंभ के आयोजन के समय दूरदराज के ऋषि-मुनि एकत्र होते हैं और वह आंतरिक और बहिर्गत अमृत को एकीभूत कर सर्वसाधारण में वितरण करते हैं। ताकि सत्य रूपी अमृत का प्रकाश दिग्-दिगांतर व्याप्त रहे और समाज सत्य को आधार मानकर सुख और शांति से रहे। संतों के आशीर्वाद से कुंभ मेला दिव्य और भव्य हो। 

कुंभ भले ही 12 वर्षों में आता है, लेकिन यह 12 वर्ष के कालखंड में हर तीन वर्ष में आयोजित होता है। इस दौरान प्रयागराज और हरिद्वार में अर्धकुंभ का आयोजन भी होता है। विशेष ज्योतिषी गणना में आयोजित होने वाला यह देवी आयोजन समस्त देवी-देवताओं की मौजूदगी में होता है। इसलिए इसका विशेष महत्व और प्रभाव है।

[स्वामी शिवानंद, परमाध्यक्ष, मातृ सदन]

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