संत की कलम से: कुंभ दुनिया में भारतीय संस्कृति की अद्भुत और अलौकिक पहचान- श्रीमहंत हरिगिरि
Haridwar Kumbh 2021 कुंभ मेला दुनिया में भारतीय संस्कृति की अद्भुत और अलौकिक पहचान है। संत परंपरा ही कुंभ मेले की मुख्य धरोहर है जो विश्व पटल पर भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म को अनोखे रूप में संजोती है।
Haridwar Kumbh 2021 कुंभ मेला दुनिया में भारतीय संस्कृति की अद्भुत और अलौकिक पहचान है। संत परंपरा ही कुंभ मेले की मुख्य धरोहर है, जो विश्व पटल पर भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म को अनोखे रूप में संजोती है। मेले के दौरान देश भर से संत गंगा स्नान के लिए हरिद्वार आते हैं। यह सनातन संस्कृति की वाहक है। विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन व सनातन धर्म का सबसे बड़ा पर्व कुंभ मेला करोड़ों श्रद्धालु भक्तों की आस्था का प्रतीक है। इससे समाज को धार्मिक ऊर्जा प्राप्त होती है।
यही धार्मिक ऊर्जा समाज में श्रद्धालुओं में धर्म और आस्था का निर्माण करती है। एक स्थान पर कुंभ पर्व भले ही 12 वर्षों में आता हो पर यह 12 वर्ष के कालखंड में हर 3 वर्ष में आयोजित होता है। इस बीच में प्रयागराज और हरिद्वार में अर्ध कुंभ का आयोजन भी होता है। सनातन संस्कृति और धार्मिक आस्था का यह पर्व देश-दुनिया में अपने विविधता और धार्मिक छटा के लिए प्रसिद्ध हैं। उनका आकर्षण अधार्मिक और नास्तिक को भी धर्म आस्था में विश्वास करने को मजबूर कर देता है।
विशेष ज्योतिषी गणना में आयोजित होने वाला यह देवी आयोजन समस्त देवी-देवताओं की मौजूदगी और उपस्थिति में होता है। कुंभ में चर अचर समस्त प्राणी देवी-देवताओं के आशीर्वाद और पतित पावनी गंगा के अमृतमय जल में पावन डुबकी लगाकर उसका पान कर समस्त कष्टों से मुक्ति पा जाते।
पौराणिक विश्वास और ज्योतिषी गणना के लिहाज से हरिद्वार कुंभ का असाधारण महत्व बृहस्पति के कुंभ और सूर्य के मेष राशि में प्रवेश के कारण है। ग्रहों की यह असाधारण स्थिति और दैवीय संयोग गंगा के किनारे स्थित हरिद्वार में पतित पावनी गंगा के जल को इस कदर औषधिकृत कर देता है कि वह कुंभ पर्व के विशेष दिनों में अमृतमय हो जाता है। यह संयोग इस दौरान गंगा में स्नान करने वाली करोड़ों जीवात्माओं का उद्धार कर धरती पर सनातन धर्म की स्थापना और रक्षा करता है।
[श्रीमहंत हरि गिरि, अंतरराष्ट्रीय संरक्षक श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा और राष्ट्रीय महामंत्री अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद]
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