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संत की कलम से: सनातन संस्कृति का शिखर उत्सव है कुंभ- स्वामी प्रज्ञानानंद

Haridwar Kumbh 2021 कुंभ भारतीय सनातन संस्कृति का शिखर उत्सव है। इसकी कोई तुलना नहीं यह अतुलनीय है। सनातन धर्म और कुंभ एक-दूसरे के पूरक हैं। इनका आपसी संयोग धार्मिक आस्था विश्वास की पराकाष्ठा है। कुंभ सनातन धर्म-संस्कृति का एक ऐसा दैवीय आयोजन है।

By Raksha PanthriEdited By: Published: Sat, 23 Jan 2021 10:09 AM (IST)Updated: Sat, 23 Jan 2021 10:09 AM (IST)
संत की कलम से: सनातन संस्कृति का शिखर उत्सव है कुंभ- स्वामी प्रज्ञानानंद
स्वामी प्रज्ञानानंद, निवर्तमान आचार्य महामंडलेश्वर, निरंजनी। जागरण

Haridwar Kumbh 2021 कुंभ भारतीय सनातन संस्कृति का शिखर उत्सव है। इसकी कोई तुलना नहीं, यह अतुलनीय है। सनातन धर्म और कुंभ एक-दूसरे के पूरक हैं। इनका आपसी संयोग, धार्मिक आस्था, विश्वास की पराकाष्ठा है। कुंभ सनातन धर्म-संस्कृति का एक ऐसा दैवीय आयोजन है, जिसमें समस्त देवी देवताओं का वास होता है। इसे कभी टाला नहीं जा सकता। 

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समुद्र मंथन से निकले अमृत के लिए देवताओं और असुरों में हुए संग्राम से ही इसका उदय हुआ। इस कारण ही यह देवताओं को भी उतना ही प्रिय है, जितना मनुष्यों को। विशेष ज्योतिष गणना और नक्षत्रीय संयोग में स्थापित होने वाले कुंभ के विशेष पर्व पर सभी देवी-देवताओं की उपस्थिति रहती है। गंगाजल अमृत स्वरूप में प्रवाहित होता है। सभी कुंभ में हरिद्वार कुंभ का  अपना अलग स्थान और महत्व है। इस बार यह हरिद्वार कुंभ का विशेष योग 12 वर्षों की बजाय 11 वर्ष में पड़ रहा है। यह विशेष स्थिति कई साल में एक या दो बार ही बनती हैं।

नक्षत्रों का यह विशेष संयोग मोक्षदायिनी पतित पावनी गंगा के पावन और औषधियगुण युक्त जल को अमृतमयी बना देता है। पावन स्थितियों में गंगा के पवित्र जल के पूजन और स्नान मात्र से ही व्यक्ति मृत्यु लोक की तरह स्वर्ग लोक की प्राप्ति का भी हकदार बन जाता है। मान्यता है कि कुंभ में स्नान मात्र से ही पाप और कष्ट दूर हो जाते हैं। आत्मा का परमात्मा से साक्षात्कार हो जाता है। एक कालखंड में 12 कुंभ का आयोजन होता है, 3 देवलोक में और 4 धरती लोक में।

[स्वामी प्रज्ञानानंद, निवर्तमान आचार्य महामंडलेश्वर, निरंजनी]

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