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वैदिक संस्कृति से परिचित हुए विदेशी, हवन, यज्ञ और यज्ञोपवीत की ली जानकारी

जर्मनी फ्रांस इंग्लैंड ऑस्ट्रिया आस्ट्रेलिया स्विट्जरलैंड आदि देशों के 24 नागरिकों ने एक सप्ताह तक भारतीय वैदिक संस्कृति को करीब से जाना।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Mon, 04 Nov 2019 02:26 PM (IST)Updated: Mon, 04 Nov 2019 02:26 PM (IST)
वैदिक संस्कृति से परिचित हुए विदेशी, हवन, यज्ञ और यज्ञोपवीत की ली जानकारी
वैदिक संस्कृति से परिचित हुए विदेशी, हवन, यज्ञ और यज्ञोपवीत की ली जानकारी

हरिद्वार, जेएनएन। श्री प्राचीन अवधूत मंडल आश्रम में जर्मनी, फ्रांस, इंग्लैंड, ऑस्ट्रिया, आस्ट्रेलिया, स्विट्जरलैंड आदि देशों के 24 नागरिकों ने एक सप्ताह तक भारतीय वैदिक संस्कृति को करीब से जाना। उन्होंने हवन, यज्ञ और यज्ञोपवीत संस्कार की भी जानकारी ली। 

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जर्मनी से आईं इलियाना, जूलिया, सोन्जा, केली, माग्र्रेटा, वेली, अंका और अमूरा, स्विट्रजरलैंड की डाना, वेनिएला आदि ने श्री प्राचीन अवधूत मंडल आश्रम में परमाध्यक्ष महंत स्वामी रूपेंद्र प्रकाश से ध्यान, यज्ञोपवीत, हवन, यज्ञ आदि के बारे में जानकारी हासिल की। परमाध्यक्ष ने बताया कि भारतीय वैदिक संस्कृति के हर कार्य वैज्ञानिक तर्क और विधा पर आधारित हैं। भारतीय धर्म और प्राचीन संस्कृति का मूल मकसद प्राणिमात्र का कल्याण है। प्रशिक्षक आचार्य डॉ. विपुल आर्य, डॉ. संदीप वेदालंकार, विपिन आदि ने विदेशी नागरिकों का यज्ञोपवीत संस्कार भी कराया। 

आचार्य विपुल ने बताया कि आश्रम में दो दशक से अधिक समय से भारतीय वैदिक संस्कृति की कार्यशाला आयोजित की जा रही है। रविवार के दिन आश्रम में वैदिक कर्म आदि सिखाए जाते हैं। जबकि, अन्य दिनों में जिज्ञासुओं को हरिद्वार के विभिन्न मंदिरों आदि में ले जाकर उनका ज्ञानवर्धन किया जाता है। विदेशी नागरिक भारतीय वैदिक संस्कृति व कर्म पर शोध करने भी यहां आते हैं। 

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दाल-चावल सबसे अच्छा भोजन 

आचार्य विपुल आर्य का कहना है कि जर्मनी में एक शोध के अनुसार भारतीय पारंपरिक भोजन दाल-चावल को सबसे अच्छा भोजन माना गया है। इससे बीमारियों का खतरा नहीं रहता। साथ ही हवन-यज्ञ से वातावरण शुद्ध होने के साथ ही मानसिक शांति भी मिलती है। बताया कि आश्रम के परमाध्यक्ष महंत स्वामी रूपेंद्र प्रकाश के साथ कई विदेश यात्राओं में विदेशी नागरिकों को भारतीय वैदिक संस्कृति से परिचित कराया गया। तभी से उनकी ललक इस ओर बढ़ती जा रही है। भारतीय वैदिक संस्कृति के माध्यम से वसुधैव कुटुंबकम की धारणा और प्रबल हो रही है। 

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