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कुंभ के बहाने प्राकृतिक जलस्रोत के संरक्षण की कवायद

कुंभ के बहाने कुंभ मेला अधिष्ठान मेला क्षेत्र खासकर हरिद्वार के प्राकृतिक जलस्रोत के संरक्षण का काम कर रहा है। इसके तहत कुंभ मेला अधिष्ठान पौराणिक और धार्मिक महत्व के जलस्रोत को चिह़्िनत कर उनके रखरखाव और साफ-सफाई कराने के बाद उनका सौंदर्यीकरण कराया जाएगा। साथ ही यह व्यवस्था भी सुनिश्चित कराई जाएगी कि इन कुंओं और कुंड का प्राकृतिक जलस्रोत बरकरार रहे और इनका पानी पहले की ही तरह प्यास बुझाने में भी इस्तेमाल हो।

By JagranEdited By: Published: Thu, 29 Oct 2020 03:00 AM (IST)Updated: Thu, 29 Oct 2020 03:00 AM (IST)
कुंभ के बहाने प्राकृतिक जलस्रोत के संरक्षण की कवायद
कुंभ के बहाने प्राकृतिक जलस्रोत के संरक्षण की कवायद

अनूप कुमार, हरिद्वार: कुंभ के बहाने कुंभ मेला अधिष्ठान मेला क्षेत्र खासकर हरिद्वार के प्राकृतिक जलस्रोत के संरक्षण का काम कर रहा है। इसके तहत कुंभ मेला अधिष्ठान पौराणिक और धार्मिक महत्व के जलस्रोत को चिह़्िनत कर उनके रखरखाव और साफ-सफाई कराने के बाद उनका सौंदर्यीकरण कराया जाएगा। साथ ही यह व्यवस्था भी सुनिश्चित कराई जाएगी कि इन कुंओं और कुंड का प्राकृतिक जलस्रोत बरकरार रहे और इनका पानी पहले की ही तरह प्यास बुझाने में भी इस्तेमाल हो। अभी तक कुंभ मेला अधिष्ठान ने इस तरह के तीन जलस्रोत की पहचान की है। पौराणिक और धार्मिक महत्व रखने के साथ ही हरिद्वार या इलाके विशेष की पहचान बने हुए हैं। बताया कि इसमें से दो तो अति प्राचीन हैं। पौराणिक और धार्मिक महत्व भी काफी ज्यादा है।

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पर्यावरण सुरक्षा और जल संरक्षण की दिशा में कुंभ मेला अधिष्ठान की इस पहल की अगुवाई मेला अधिकारी दीपक रावत कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि अपने इस अभियान में मेला अधिष्ठान ने अभी तक कनखल के होली चौक स्थित प्राचीन कुंआ और मोतीबाजार स्थित ठंडा कुंआ को चिह्नित किया है। इसके अलावा अपर रोड स्थित कुंए के बारे में जानकारी एकत्र की जा रही है। कनखल के होली चौक स्थित कुंए के बारे में कहा जाता है कि यह करीब दो वर्ष पुराना कुंआ है पर, इन दिनों इसका कोई इस्तेमाल नहीं हो रहा है। पहले धार्मिक तीज-त्यौहारों और शुभ मौके पर यहां पूजा-पाठ किया जाता था। इसे छतरी वाला कुंआ भी कहा जाता है, इन दिनों यह उपेक्षित पड़ा हुआ है। कुंभ मेला अधिष्ठान अब इसके कायाकल्प करने की तैयारी में है। पिछले दिनों मेला अधिष्ठान की टीम ने यहां का दौरा कर कुंए की स्थिति को जांचा-परखा है।

इसी तरह हरकी पैड़ी क्षेत्र के मोती बाजार स्थिति ठंडे कुंए का भी कायाकल्प किए जाने की तैयारी की है। ठंडे कुंए के तौर पर प्रसिद्ध इस कुंए के बारे में मोती बाजार में अपने कांजी बड़ों के प्रसिद्ध जैन चाट भंडार के मालिक नीरज जैन बताते हैं कि यह चार सौ वर्ष से भी अधिक पुराना और मुगलों के जमाने का है। हर मौसम में इसका पानी फ्रिज के पानी से भी ज्यादा ठंडा और मीठा रहता है, इसलिए इसका नाम ही ठंडा कुंआ पड़ गया। लोग दूर-दूर से इसके शीतल और मीठे जल से अपनी प्यास बुझाने यहां आते थे। इसके ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए बाजार और प्रशासन ने इसके चारों ओर दीवार खड़ी कर छतरी लगा दी है। जाली और छतरी लगे होने के कारण कोई इसे गंदा नहीं कर पाता। मेला अधिकारी दीपक रावत ने बताया कि शुरुआती दौर में मेला अधिष्ठान ने दो कुंड और इन दो कुंओं के कायाकल्प का जिम्मा लिया है। कुछ और कुंए भी संज्ञान में लाए गए हैं, जिसमें सती घाट का कुंआ और भूपतवाला का कुंआ के बारे में जानकारी दी गई है। उनके बारे में तथ्य जुटाये जा रहे हैं। अगर क्राइटेरिया पर फिट पाए गए तो उनके संरक्षण व सुधार के प्रयास किए जायेंगे।

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पौराणिक और ऐतिहासिक भीमगोड़ा और सती कुंड के कायाकल्प का हो चुका है काम शुरु

हरिद्वार: प्राकृतिक, पौराणिक और ऐतिहासिक जल स्रोत के संरक्षण, सुधारीकरण और सौंदर्यीकरण को कुंभ मेला अधिष्ठान के अभियान के तहत धार्मिक, पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व के सती कुंड और भीमगोड़ा कुंड के कायाकल्प की कवायद पहले ही शुरू की जा चुकी है। सती कुंड के बारे में धार्मिक मान्यता है कि माता सती ने अपने पिता राजा दक्ष के यज्ञ के दौरान अपने पति महादेव भोले शंकर का अपमान होने पर यज्ञ के हवन कुंड में कूद कर प्राणोत्सर्ग कर दिया था। इसी तरह भीमगोड़ा कुंड के बारे में मान्यता है कि महाभारत युद्ध के बाद अपनी स्वर्गारोहण यात्रा के दौरान यहीं पर माता कुंती और पांडव पत्नी द्रौपदी की प्यास बुझाने को महाबली भीम ने अपने पैर (गोड़) से धरती पर प्रहार कर जल स्रोत पैदा किया था।

----------------------- 'पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व के प्राकृतिक जलस्रोत के संरक्षण, सौंदर्यीकरण और सुधारीकरण को मेला अधिष्ठान उनके बारे में वर्णित तथ्यों की जानकारी कर सुधार की कवायद में लगा है। कुछ का सुधारीकरण शुरू हो गया है, बाकी की प्रक्रिया चल रही है।'

दीपक रावत, कुंभ मेलाधिकारी


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