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जल स्थिरता पर गंभीरतापूर्वक विचार करने पर जोर

वाटर सोर्स सस्टेनेबिलिटी विषय पर आयोजित तीन दिवसीय ई-कांफ्रेंस में जल स्वछता और जलवायु के विषयों पर प्रमुखता से चर्चा की गई। वहीं इसमें 10 देशों के विशेषज्ञों सहित कुल 50 से अधिक संस्थानों के 90 प्रतिभागियों ने अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया।

By JagranEdited By: Published: Mon, 21 Jun 2021 08:12 PM (IST)Updated: Mon, 21 Jun 2021 08:12 PM (IST)
जल स्थिरता पर गंभीरतापूर्वक विचार करने पर जोर
जल स्थिरता पर गंभीरतापूर्वक विचार करने पर जोर

जागरण संवाददाता, रुड़की: वाटर सोर्स सस्टेनेबिलिटी विषय पर आयोजित तीन दिवसीय ई-कांफ्रेंस में जल स्वच्छता और जलवायु के विषयों पर प्रमुखता से चर्चा की गई। वहीं इसमें 10 देशों के विशेषज्ञों सहित कुल 50 से अधिक संस्थानों के 90 प्रतिभागियों ने अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया।

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भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) रुड़की के जल संसाधन विकास एवं प्रबंधन विभाग तथा भारतीय जल संसाधन समिति की ओर से संयुक्त रूप से वाटर सोर्स सस्टेनेबिलिटी विषय पर आयोजित ई-कांफ्रेंस का सोमवार को समापन हुआ। समापन समारोह के मुख्य अतिथि इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ स्पेस टेक्नोलॉजी तिरुअनंतपुरम के निदेशक डा. विनय कुमार दधवाल ने कहा कि जल स्थिरता मानवता के लिए एक अस्तित्वगत चुनौती है और इसे व्यापक रूप से स्वीकार भी किया जाता है। जल आपूर्ति प्रबंधन, जल मांग प्रबंधन, शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में जल स्रोतों की स्थिरता, सतत सिचाई जल प्रबंधन, जल पर्यावरण और स्वास्थ्य, जलवायु परिवर्तन के तहत जल स्रोतों को बनाए रखना, जल प्रशासन और क्षमता निर्माण आदि इस क्षेत्र की प्रमुख चुनौतियां हैं। जिस प्रकार हमने मांग और आपूर्ति दोनों पक्षों पर गंभीरतापूर्वक चिंतन किया है, ठीक उसी प्रकार जल स्थिरता पर भी गंभीरतापूर्वक विचार किए जाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में सबसे बड़ी जरुरत सिचाई जल प्रबंधन के क्षेत्र में काम करने की है। भूजल का दोहन, जलवायु परिवर्तन की चुनौती और अनिश्चितता तथा शासन संबंधी मुद्दे अन्य महत्वपूर्ण विषय हैं। आइआइटी रुड़की के निदेशक प्रो. अजित के चतुर्वेदी ने कहा कि यह निश्चित रूप से बहुत महत्वपूर्ण है कि इस प्रकार के आयोजन नियमित रूप से शैक्षणिक विभागों में आयोजित किए जाते रहें। ताकि एक-दूसरे के विचारों के आदान-प्रदान से हम कुछ सीख सकें। यह महत्वपूर्ण है कि हमें एक-दूसरे के कार्यों से लाभ मिले। यह केवल ऐसे आयोजनों को करने से संभव है, जिनमें तकनीकी कार्य एवं फील्ड डेटा प्रस्तुत किए जाते हैं वैज्ञानिक रिपोर्ट विकसित की जाती है, नए उपकरण एवं प्रौद्योगिकियां जो समय की अवधि में विकसित हुई हैं, उन्हें भी साझा किया जाता है। कहा कि ज्ञान के साझाकरण की प्रक्रिया से ही समस्याओं का समाधान होता है। समापन समारोह का संचालन जल संसाधन विकास एवं प्रबंधन विभाग के प्रो. मोहित प्रकाश मोहंती ने किया। कार्यक्रम में भारतीय जल संसाधन समिति के सदस्यों सहित आइआइटी रुड़की एवं अन्य शिक्षण संस्थानों के विद्यार्थी, प्राध्यापक, वैज्ञानिक सहित विभिन्न संस्थानों से प्रतिभागी शामिल हुए।

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कई महत्वपूर्ण पहलुओं पर हुई चर्चा

रुड़की: भारतीय जल संसाधन समिति के कार्यकारी उपाध्यक्ष तथा जल संसाधन विकास एवं प्रबंधन विभागाध्यक्ष प्रो. आशीष पांडेय ने कहा कि जल स्रोत स्थिरता विषय पर चलने वाले इस तीन दिवसीय सम्मेलन में मानव जाति के भविष्य की स्थिरता को लेकर कई महत्वपूर्ण पहलुओं पर चर्चा हुई, जो आने वाले समय में जलस्रोत स्थिरता के लिए लाभप्रद होगी। राष्ट्रीय गंगा स्वच्छता अभियान के कार्यकारी निदेशक डीपी मथुरिया ने जल शक्ति मंत्रालय, भारत सरकार की ओर से ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल या सिचाई की उपलब्धता के लिए चलाए जा रहे महत्वाकांक्षी कार्यक्रमों के बारे में चर्चा की। अंतरराष्ट्रीय ई-कांफ्रेंस के आयोजन सचिव तथा भारतीय जल संसाधन समिति के सचिव प्रो. बसंत यादव ने बताया कि उत्कृष्ट शोध पत्र प्रस्तुत करने वाले प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय स्थान प्राप्त करने वाले प्रतिभागियों को पुरस्कृत भी किया गया।


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