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मकर संक्रांति पर आस्था का सैलाब, श्रद्धालुओं ने गंगा में लगाई डुबकी

मकर संक्रांति पर्व पर हरिद्वार के साथ ही ऋषिकेश के गंगाघाटों और नदी तट पर आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा। श्रद्धालुओं ने गंगा स्नान के साथ ही पूजा अर्चना दान कर पुण्य अर्जित किया।

By BhanuEdited By: Published: Tue, 14 Jan 2020 10:20 AM (IST)Updated: Tue, 14 Jan 2020 08:34 PM (IST)
मकर संक्रांति पर आस्था का सैलाब, श्रद्धालुओं ने गंगा में लगाई डुबकी
मकर संक्रांति पर आस्था का सैलाब, श्रद्धालुओं ने गंगा में लगाई डुबकी

हरिद्वार, जेएनएन। मकर संक्रांति पर्व पर हरिद्वार के साथ ही ऋषिकेश के गंगाघाटों और नदी तट पर आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा। श्रद्धालुओं ने गंगा स्नान के साथ ही पूजा अर्चना, दान कर पुण्य अर्जित किया। हरिद्वार में हर की पैड़ी पर पुलिस ने कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की हुई थी। 

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सूर्य देवता के दक्षिणायन से उत्तरायण होने पर होने वाले मकर संक्रांति स्नान को सभी गंगा स्नान में प्रमुख माना जाता है। इस बार कई स्थानों पर यह पर्व 15 जनवरी को भी मनाया जाएगा। इसके बावजूद हरिद्वार और ऋषिकेश में सुबह से ही स्थान करने वालों की भीड़ गंगा तटों पर उमड़ने लगी। 

भारी ठंड होने के बावजूद इस स्नान पर सबसे अधिक भीड़ जुटती है। यही कारण यहा कि मंगलवार तड़के से ही घने कोहरे और ठंड के बावजूद हरिद्वार के गंगा घंटों पर आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा। 

ज्योतिषाचार्य पंडित शक्ति धर शर्मा शास्त्री के अनुसार मंगलवार सुबह 7 बज कर 25 मिनट से ही पुण्य काल शुरू हो गया। जो रात 1:20 तक चलेगा। इसलिए  सोमवार से ही लोग हरिद्वार पहुंचने लगे थे। रात भर से लोगों के डग हरकी पैड़ी की ओर बढ़ते रहे। 

तमाम लोगों ने तो पुण्य काल का इंतजार किए बिना ही ब्रह्म मुहूर्त से स्नान शुरू  कर दिया था। दिन चढ़ने के साथ भीड़ बढ़ने लगी। स्नान के चलते हरकी पैड़ी, सर्वानंद घाट, बिरला घाट, लवकुश घाट, विश्वकर्मा घाट, प्रेमनगर आश्रम घाट आदि घाटों पर श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ा रहा। 

सनातनी मान्यता के अनुसार श्रद्धालुओं ने गंगा पूजन और गंगा अभिषेक भी किया। स्नान के बाद हरिद्वार के मंदिरों के दर्शन और पूजन के लिए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुटी रही। स्नान के बाद श्रद्धालुओं ने तिल गुड़ वस्त्र आदि का दान किया। साथ में खिचड़ी भोग भी लगाया।  

मकर संक्रांति पर्व के साथ ही हिंदुओं में मांगलिक और शुभ कार्यों की शुरुआत भी हो गई। ज्योतिषाचार्य की मान्यता के अनुसार मकर संक्रांति स्नान का पुण्य काल बुधवार को होने के कारण मकर संक्रांति स्नान बुधवार को भी होगा। 

कोहरा छंटने के बाद बढ़ती गई भीड़ 

ऋषिकेश के त्रिवेणी घाट और आसपास क्षेत्र में सुबह घना कोहरा होने के कारण कम श्रद्धालु  त्रिवेणी घाट पहुंचे। नौ बजे बाद हल्का कोहरा छटने के पश्चात श्रद्धालु गंगा स्नान को पहुंचने लगे। मकर सक्रांति को लेकर मंगलवार को यहां भीड़ अब तक कम नजर आई है। विशेष रुप से ऋषिकेश और पर्वतीय क्षेत्र के श्रद्धालु यहां आते हैं। ऐसे श्रद्धालु बुधवार को स्नान के लिए यहां पहुंचेंगे। 

पर्वतीय समाज में मकर सक्रांति और उत्तरायणी पर्व बुधवार को मनाया जाएगा। ज्योतिषाचार्य पंडित राजेंद्र प्रसाद उनियाल के अनुसार 14 और 15 जनवरी की मध्य रात्रि 2:07 बजे सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेगा। इसलिए मकर सक्रांति पुण्य काल 15 अप्रैल को ही शुभ माना जाएगा। 15 जनवरी को पुण्य काल सुबह 7:19 से शाम 5:46 बजे तक बताया गया है। ऋषिकेश गंगा सभा के महामंत्री राहुल शर्मा ने बताया कि त्रिवेणी घाट पर स्नान की तैयारी बुधवार के लिए की गई है।

दून में कल मनाई जाएगी मकर संक्रांति

मकर संक्रांति का त्योहार 15 जनवरी को मनाया जाएगा। आचार्य सुशांत राज के अनुसार 14 जनवरी को रात दो बजकर सात मिनट पर सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेगा। इसलिए संक्रांति 15 जनवरी को मनाई जाएगी। इस दिन लोग सुबह स्नान करने के बाद अग्निदेव व सूर्यदेव की पूजा करते हैं। मंदिरों में ब्राह्मणों और गरीबों को दान देते हैं। इसके बाद तिल के लड्डू, खिचड़ी और पकवानों की मिठास के साथ मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है। 

क्या है मकर संक्रांति  

आचार्य सुशांत राज के अनुसार मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। एक राशि को छोड़कर दूसरे राशि में प्रवेश करने की इस विस्थापन क्रिया को सक्रांति कहा जाता है। ज्योतिषगणना के अनुसार मकर सक्रांति से ही सूर्य उत्तरायण होंगे। पौराणिक कथाओं के अनुसार मकर संक्रांति के दिन गंगा नदी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होते हुई सागर में जा मिली थी। इसीलिए मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान का भी विशेष महत्व है। 

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मकर संक्रांति मौसम में बदलाव का सूचक  

आचार्य सुशांत राज के अनुसार मकर संक्रांति को मौसम में बदलाव का सूचक भी माना जाता है। मकर संक्रांति से वातावरण में कुछ गर्मी आने लगती है और फिर बसंत ऋतु के बाद ग्रीष्म ऋतु का आगमन होता है। ऐसा भी माना जाता है इस दिन सूर्य देव नाराजगी भूलकर अपने पुत्र शनिदेव के घर गए थे। 

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