- संस्कृत के ग्रंथ विश्व के लिये अमूल्य निधि: शास्त्री
जागरण संवाददाता, हरिद्वार:उत्तराखंड संस्कृत अकादमी की ओर से आयोजित अखिल भारतीय संस्कृत श्
जागरण संवाददाता, हरिद्वार:उत्तराखंड संस्कृत अकादमी की ओर से आयोजित अखिल भारतीय संस्कृत शोध सम्मेलन का शनिवार को समापन हो गया है। इस मौके पर बतौर मुख्य अतिथि गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के पूर्व उपकुलपति प्रो. वेदप्रकाश शास्त्री ने कहा कि वाल्मीकी रामायण संस्कृत साहित्य इतिहास का प्रथम ग्रंथ है। रामायण के बाद ही अन्य काव्यों का लेखन हुआ। इसलिए रामायण में भारतीय ¨चतन और विचार समृद्ध रूप से प्रतिपादित है।
कार्यक्रम अध्यक्ष उत्तराखंड संस्कृत अकादमी के उपाध्यक्ष प्रो प्रेमचंद्र शास्त्री ने कहा कि हमारे संस्कृत के ग्रंथ विश्व के लिए अमूल्य निधि है। संस्कृत में ही हमारी ऋषियों और मुनियों का विचार निहित है। शास्त्री ने कहा कि राम की तरह मनुष्य को आचरण करना चाहिए रावण की तरह नहीं। यही संदेश रामायण महाकाव्य देता है। विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रो मान¨सह ने कहा कि वाल्मीकि रामायण में अनुसंधान के अनेक अवसर हैं, हमको अपनी अनुसंधान प्रक्रिया को प्रामणिक बनाना चाहिए। कार्यक्रम संयोजक डॉ हरीश गुरुरानी ने कहा कि 10 सत्रों में 80 शोध पत्रों का वाचन किया गया। सम्मेलन में केरल, तमिलनाडु, बिहार, मध्यप्रदेश, राजस्थान, हिमाचल, गुजरात, हरियाणा, नई दिल्ली, उत्तरप्रदेश, पंजाब, जम्मू कश्मीर, उत्तराखंड सहित 14 राज्यों के विद्वानों और शोध छात्रों ने प्रतिभाग किया। सभी सत्रों के अध्यक्ष के रूप में डॉ निरंजन मिश्र, भगवानदास आदर्श संस्कृत महाविद्यालय, हरिद्वार, डॉ. द्वारिका नाथ त्रिपाठी, धर्म समाज स्नातक महाविद्यालय, डॉ. जेएन जोशी, कुमायूं विश्वविद्यालय, नैनीताल, प्रो. राधेश्याम चतुर्वेदी, हरिद्वार, डॉ. सुनीता जयसवाल रामपुर, उत्तरप्रदेश, प्रो. सोमदेव शंताशु, गुरुकुल विवि हरिद्वार, प्रो. वेदप्रकाश शास्त्री, डॉ. अर¨वद मिश्र हरिद्वार, आचार्य मान¨सह द्वारा सत्रों का संचालन किया गया। मुख्य वक्ता के रूप में सत्यप्रसाद खंडूड़ी, डॉ. सुजाता राधवन, डॉ. विमलेश कुमार ठाकुर, सत्यवती महाविद्यालय, दिल्ली, प्रो. मनुदेव बंधु, वेद विभाग, गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, हरिद्वार, प्रो. ब्रह्मदेव, गुरुकुल कांगड़ी विवि हरिद्वार आदि रहे।