कम बर्फबारी व तापमान वृद्धि से टूटा था गोमुख ग्लेशियर बड़ा हिस्सा
राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान (एनआइएच) की रिपोर्ट में गोमुख ग्लेशियर के बड़े हिस्से के टूटने के कारणों का खुलासा हुआ है। इसमें कम बर्फबारी और तापमान में वृद्धि को कारण बताया है।
रुड़की, [रीना डंडरियाल]: इस साल गोमुख ग्लेशियर समय से पहले तो टूटा ही साथ ही उसके टूटने का औसत भी काफी अधिक था। इसकी पुष्टि राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान (एनआइएच) रुड़की की रिपोर्ट से हुई है। एनआइएच के वैज्ञानिकों के अनुसार गोमुख ग्लेशियर से तीन से साढ़े तीन फीट तक के टुकड़े गंगोत्री धाम तक भागीरथी नदी में बहकर आए। इन टुकड़ों के आकार से अनुमान लगाया जा रहा है कि इस सीजन में ग्लेशियर के टूटने की मात्रा अधिक रही। अध्ययन में यह भी सामने आया है कि साल कम बर्फबारी का ग्लेशियर पर प्रतिकूल असर पड़ा है।
हालांकि, गोमुख ग्लेशियर की दरारों की वस्तुस्थिति को लेकर वैज्ञानिक अभी किसी नतीजे पर नहीं पहुचे हैं। फिलहाल वैज्ञानिकों का एक दल गोमुख में डटा हुआ है। वैज्ञानिकों की रिपोर्ट के बाद ही यह पता चल पाएगा कि गोमुख ग्लेशियर का कितना हिस्सा टूटा है। एनआइएच रुड़की के वैज्ञानिकों की टीम वर्ष 2000 से गोमुख ग्लेशियर पर अध्ययन कर रही है। इसी प्रोजेक्ट को लेकर संस्थान के विशेषज्ञों की एक टीम भोजबासा (उत्तरकाशी) में इन दिनों मौजूद है। दो जुलाई को जब गोमुख ग्लेशियर का एक हिस्सा टूटकर भागीरथी नदी में गिरा, तब भी टीम वहां तैनात थी।
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इसके बाद वास्तविक स्थिति का जायजा लेने संस्थान की एक और टीम वहां पहुंची। टीम में शामिल एनआइएच के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. मनोहर अरोड़ा के अनुसार इस साल गोमुख ग्लेशियर अधिक मात्रा में टूटा है। ग्लेशियर के तीन से साढ़े तीन फीट तक के कई टुकड़े नदी में बहकर गंगोत्री धाम तक पहुंचे।
PICS: गोमुख ग्लेशियर का एक हिस्सा टूटा
इतना ही नहीं गोमुख में बर्फ के टुकड़े भी काफी मात्रा में इकट्ठा हो रखे थे। डॉ. अरोड़ा के अनुसार यह अनुमान लगाना कठिन है कि अभी ग्लेशियर के अंदर और कितनी दरारें हैं। आमतौर पर ग्लेशियर जुलाई के अंतिम सप्ताह या फिर अगस्त के प्रथम सप्ताह तक टूटते हैं, लेकिन इस साल जुलाई के प्रथम सप्ताह में ही ग्लेशियर टूट गए। इस साल कम बर्फबारी होना और तापमान में वृद्धि इसका मुख्य कारण माना जा सकता है।
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ग्लेशियर टूटने पर हुई तेज आवाज
ग्लेशियर टूटने के दौरान भोजबासा में मौजूद रहे एनआइएच के ड्राफ्ट्समैन तकनीकी सहायक एनके वाष्र्णेय के अनुसार दो जुलाई को जब ग्लेशियर का एक हिस्सा टूटा तो उस वक्त बहुत तेज आवाज हुई थी। इसे सुनकर कुछ देर के लिए तो वह भी भयभीत हो गए। नदी में पानी का बहाव आमतौर पर 25 से 30 क्यूबिक मीटर प्रति सेकंड होता है, लेकिन ग्लेशियर टूटने से इसके बहाव में तीन से चार गुना बढ़ोत्तरी देखने को मिली।