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--फोटो-20, 21,,, कूड़ा निस्तारण के नाम पर सरकार को करोड़ों का चूना

जागरण संवाददाता हरिद्वार धर्मनगरी हरिद्वार के शहरी क्षेत्र से रोजाना निकलने वाले कूड़े क

By JagranEdited By: Published: Sun, 14 Jul 2019 03:03 AM (IST)Updated: Sun, 14 Jul 2019 06:39 AM (IST)
--फोटो-20, 21,,, कूड़ा निस्तारण के नाम पर सरकार को करोड़ों का चूना
--फोटो-20, 21,,, कूड़ा निस्तारण के नाम पर सरकार को करोड़ों का चूना

जागरण संवाददाता, हरिद्वार: धर्मनगरी हरिद्वार के शहरी क्षेत्र से रोजाना निकलने वाले कूड़े के उठान, उसकी मात्रा और कूड़े के अंतिम निस्तारण को लेकर नगर निगम हरिद्वार और कूड़ा प्रबंधन कंपनी केआरएल के दावों में झोल ही झोल है। इसे लेकर दोनों के किए जा रहे अलग-अलग दावों ने उनके झूठ की पोल खोल दी है। निगम और केआरएल दोनों मिलकर सरकार को करोड़ों के राजस्व का चूना लगा रहे हैं, जबकि आम जनता और बाहर से आने वाले श्रद्धालु भारी गंदगी के बीच जीने को मजबूर है।

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नगर निगम प्रशासन के अनुसार नगर निगम सीमा क्षेत्र और 50 वार्ड से रोजाना 225 से 250 मीट्रिक टन तक कूड़ा निकलता है और उसमें से 6 से 8 मीट्रिक टन कूड़ा का कंपोस्ट प्लांट में कंपोस्ट बनाया जा रहा है और इसी के हिसाब से उसे भुगतान किया जा रहा है। इसके विपरीत केआरएल कंपनी का दावा है कि नगर निगम सीमा क्षेत्र और 50 वार्ड से वह रोजाना 326 मीट्रिक टन कूड़ा एकत्र कर रही है और इसी हिसाब से निगम उसे भुगतान कर रहा है। केआरएल का यह भी उसका कहना है कि कूड़े की यह वह मात्रा जिसे वह उठा है। इसके अलावा 8 से 10 मीट्रिक टन कूड़ा और निकलता है, जिसे वह नहीं उठा पाता।

केआरएल निदेशक सुखबीर सिंह का दावा है कि एकत्र किए जाने वाले 326 मीट्रिक टन कूड़े में से 50 मीट्रिक टन (50 हजार किलो) कूड़े के अंतिम निस्तारण को वह अपने कंपोस्ट प्लांट में रोजाना कंपोस्ट बना रहे हैं, बाकी कूड़े को खुले में डंप करने की उनकी मजबूरी है, जबकि नगर निगम की प्रभारी नगर आयुक्त नुपुर वर्मा का कहना है कि यह मात्रा 6 से 8 मीट्रिक टन ही है। सवाल उठता है कि कौन सच बोल रहा है और कौन झूठ। केआरएल के अनुसार वह शहरी क्षेत्र के 40 कूड़ा पीकिग प्वाइंट, जहां उन्होंने 3 मीट्रिक टन की क्षमता वाले अपने 50 डस्टबिन रखे हुए हैं, से कूड़ा एकत्र करने के साथ-साथ 50 वार्ड से घर-घर कूड़ा उठाने का काम करता है। केआरएल का दावा है कि वह अपने 40 कूड़ा पीकिग प्वाइंट से अंदाजन रोजाना तकरीबन 150 मीट्रिक टन कूड़ा उठाता है। पर, उसके पास इस बात की कोई जानकारी नहीं कि बाकी का 176 मीट्रिक टन कूड़ा वह कहां से उठाता है और नगर निगम उसे क्यों और किस तरह इसका भुगतान कर रहा।

ताज्जुब इस बात का भी कि केआरएल के पास इसकी भी कोई जानकारी नहीं कि वह नगर निगम के 50 वार्ड के कुल कितने घरों से कितना कूड़ा रोजाना एकत्र करता है, जबकि इसके लिए हर वार्ड में अलग कूड़ा पीकिग प्वाइंट बना हुआ है और एकत्र किए जाने वाले कूड़े की तौल के बाद ही उसका अंतिम निस्तारण किया जाता है। इसी तौल के आधार पर निगम प्रशासन केआरएल को 347 प्रति मीट्रिक के हिसाब से भुगतान करता है, इसमें कूड़ा उठाना और उसका अंतिम निस्तारण करना शामिल है। यहां सवाल यह कि जब कूड़े का अंतिम निस्तारण नहीं हो रहा, तो निगम प्रशासन उसे क्यों और कैसे भुगतान कर रहा है। इसका जवाब किसी के पास नहीं। केआरएल हर घर से कूड़ा उठाने के साथ-साथ खुद पैसा भी कलेक्ट करता है पर, उसे यह नहीं पता कि वह कितने घरों से कूड़ा उठाता, उठाने वाले कूड़े की कुल मात्रा कितनी है। केआरएल के निदेशक सुखबीर का कहना है कि उन्हें इसकी कोई जानकारी नहीं। पर, वह यह मानते हैं कि उन्हें नगर निगम 326 मीट्रिक टन कूड़े का भुगतान करता है।

प्रभारी नगर आयुक्त के पास नहीं जवाब

प्रभारी नगर आयुक्त नुपुर वर्मा का कहना है कि नगर निगम सीमा क्षेत्र से रोजाना 250 मीट्रिक टन के आसपास ही कूड़ा निकलता है, जिसे केआरएल उठाता है। इसमें से 6 से 8 मीट्रिक टन कूड़े को ही कंपोस्ट में तब्दील किया जाता है। बाकी का कूड़ा खुले में डंप हो रहा है। पर, उनके पास इस बात का कोई जवाब नहीं कि निगम के अनुसार जब 250 मीट्रिक टन ही कूड़ा निकलता है और उसमें वह 6 से 8 मीट्रिक टन कूड़े का कंपोस्ट बना रहा है तो केआरएल को 326 मीट्रिक टन कूड़े का भुगतान क्यों और कैसे हो रहा है। उनका कहना है कि उन्हें चार्ज लिए एक सप्ताह ही हुआ है, वह जानकारी करने के बाद ही इस सवाल का जवाब दे सकेंगी। साफ है कि कूड़े के मामले में नगर निगम और केआरएल की मिलीभगत एक ओर जहां सरकार को करोड़ों के राजस्व का चूना लगा रही, वहीं, दूसरी ओर जनता को संक्रामक रोग फैलने के खतरे में कूड़े के बीच रहने को मजबूर कर रही।


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