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अच्युतानंद व राजराजेश्वराश्रम को शास्त्रार्थ की चुनौती

जागरण संवाददाता हरिद्वार शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के शिष्य स्वामी गोविंदानंद सरस्वती ने स्

By JagranEdited By: Published: Mon, 17 Jun 2019 08:56 PM (IST)Updated: Mon, 17 Jun 2019 08:56 PM (IST)
अच्युतानंद व राजराजेश्वराश्रम को शास्त्रार्थ की चुनौती
अच्युतानंद व राजराजेश्वराश्रम को शास्त्रार्थ की चुनौती

जागरण संवाददाता, हरिद्वार: शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के शिष्य स्वामी गोविंदानंद सरस्वती ने स्वामी अच्युतानंद तीर्थ और जगदगुरू राजराजेश्वराश्रम को शास्त्रार्थ की चुनौती दी है। दोनों संतों को बकायदा रजिस्टर्ड डाक से चिट्ठी भेजी गई है, जिसमें एक सप्ताह का अल्टीमेटम दिया गया है। प्रेस क्लब में पत्रकारों से वार्ता करते हुए स्वामी गोविदानंद सरस्वती ने दोनों संतों के खुद को जगद्गुरु व शंकराचार्य कहने पर भी सवाल उठाए हैं।

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पत्रकारों से वार्ता करते स्वामी गोविंदानंद सरस्वती ने कहा कि देश में चार शंकराचार्य पीठ हैं, लेकिन दर्जनों लोग खुद को शंकराचार्य घोषित कर श्रद्धालु भक्तों को गुमराह कर रहे हैं। अपूज्य लोगों की पूजा होने से धर्म को हानि पहुंच रही है। उन्होंने पंपलेट जारी करते हुए स्वामी अच्युतानंद तीर्थ और जगदगुरू राज राजेश्वराश्रम को शास्त्रार्थ की चुनौती दी और कहा कि दोनों संत आकर अपना ज्ञान सिद्ध करें, वरना चारों पीठों के वास्तविक शंकराचार्यो से माफी मांगे। कहा कि शंकराचार्य का पद पीठासीन आचार्यो की योग्यता के कारण सम्मानीय पद है। आचार्य परमात्मा का स्वरूप है। इनसे सामान्य मनुष्य की भांति व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए। समाज को भी जागरूक रहकर ऐसे शंकराचार्यो की पहचान करनी होगी। जोकि स्वयं को शंकराचार्य घोषित कर इस पद का भी दुरूपयोग कर रहे हैं। धर्मनगरी में भी कई अखाड़े आश्रमों में स्वयंभू शंकराचार्य घोषित कर देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालु भक्तों को धर्म की गलत जानकारी देकर धन अर्जित करने में लगे हुए हैं। समाज में विघटन का माहौल भी बन रहा है। इसके लिए हिदू समाज को जागरूक होना पड़ेगा।

ऐसे शंकराचार्यो को बेनकाब किया जाएगा। निरंतर इनके खिलाफ अभियान चलाकर देश भर में जनजागरूकता भी पैदा की जाएगी। उन्होंने प्रदेश सरकार व अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद से मांग की कि हरिद्वार में होने वाले महाकुंभ में केवल वास्तविक शंकराचार्यो को ही प्रवेश दिया। फर्जी तौर पर खुद को शंकराचार्य घोषित करने वालों को शंकराचार्य के तौर पर मान्यता न दी जाए।

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