चुनाव पैकेज,,,, बसपा प्रत्याशी से दोगुने मत तो खराब हो गए
जागरण संवाददाता, हरिद्वार: धर्मनगरी में अधिकाधिक मतदान के लिए जोरशोर से अभियान चलाया ग
जागरण संवाददाता, हरिद्वार: धर्मनगरी में अधिकाधिक मतदान के लिए जोरशोर से अभियान चलाया गया, लेकिन, चुनाव में यह झलक नजर नहीं आई। स्थिति यह रही कि यहां मतदाताओं ने 12 हजार मत खराब कर दिए। बसपा की महापौर पद की उम्मीदवार को पड़े मतों से दोगुने मत गलत निशान लगाने के चलते रद हुए। महापौर पद के लिए 7,287 मत जबकि शेष मत सभासदों के चुनाव में रद हुए।
हरिद्वार नगर निगम महापौर पद के चुनाव में खारिज हुए इन मतपत्रों की संख्या इतनी अधिक है, महापौर के चुनाव में मतों के लिहाज से वह कांग्रेस-भाजपा के बाद तीसरे स्थान पर है। मतों के लिहाज से चुनाव में तीसरे नंबर पर रहने वाली बहुजन समाज पार्टी की निर्मला देवी को 3720 मत हासिल हुए जबकि उसके दोगुने के करीब 7287 मत गलत निशान लगाने, अंगूठा लगाने, एक से अधिक जगह पर मोहर लगाने, गलत जगह पर मोहर लगाने, मोहर को पट कर लगाने आदि मामलों में खारिज किए गए। कुल साठ वार्ड में सभासद प्रत्याशियों के हुए निर्वाचन को डाले गए मतों में से इस तरह खारिज किए गए मतों की कुल संख्या कितनी है, इसका अंतिम आंकलन अभी जारी है पर, मतगणना में लगे कर्मियों के अनुमान के अनुसार इसकी संख्या पांच हजार से कहीं अधिक है।
खाली भी छोड़ दिया मतपत्र
हरिद्वार नगर निगम चुनाव में तमाम मतदाताओं ने अपने मतपत्र को खाली ही छोड़ दिया। उन्होंने मतपत्र में दिए विकल्पों में पार्टी प्रत्याशी या नोटा किसी पर भी मोहर नहीं लगाई। इसका कारण मतदान कर्मी द्वारा मतपत्र को फोल्ड करके देना माना जा रहा है, हालांकि मतदान कर्मी फोल्ड मतपत्र के साथ मोहर भी दे रहे थे पर, तमाम मतदाताओं ने इसके बावजूद बिना मोहर लगाए ही खाली मतपत्र ही मतपेटी में डाल दिया। इसकी वजह समझ से बाहर है, क्योंकि अगर उन्हें किसी भी प्रत्याशी को वोट नहीं देना था, तो वे नोटा का प्रयोग कर सकते थे पर, उन्होंने ऐसा नहीं किया।
विपक्षी की स्लिप फाड़ ले गए साथ
मतपत्र से हुए हरिद्वार नगर निगम के चुनाव में कुछ मतदाताओं ने बड़ा ही अजीब काम किया। उन्होंने अपने चहेते प्रत्याशी को मत देने के बाद अन्य या फिर मुख्य मुकाबले में शामिल विपक्षी प्रत्याशी के नाम और चुनाव चिह्न वाला हिस्सा (स्लिप) फाड़ कर अपने साथ ले गए। ऐसे मतपत्रों को भी खारिज मतपत्रों में शामिल किया गया। इसलिए उनकी सही संख्या का पता नहीं चल सका पर, लगभग हर वार्ड में दो-तीन ऐसे मामले आमने आए।