जागरूक हो रहे हैं युवा, नए-नए आइडियाज से चमका रहे किस्मत; समाज सेवा में भी आगे
बदलते दौर में युवा हर क्षेत्र में जागरूक हो रहा है। स्वरोजगार से लेकर लोकतंत्र में भागीदारी और समाज सेवा में आगे बढ़ रहे हैं।
देहरादून, विजय जोशी। मेरे बेटा डॉक्टर बनेगा, इंजीनियर बनेगा...ये तो हुई गुजरे जमाने की बात। अब तो युवा डॉक्टर-इंजीनियर से इतर भी करियर को तवज्जो दे रहे हैं। वैसे भी बेटा-बेटी अपनी रुचि के हिसाब से करियर चुनें तो अभिभावक भी खुश हैं। बच्चे बस अच्छा पैसा कमाएं और अपने पैरों पर खड़े हो जाएं और क्या चाहिए। बच्चे भी अब पारंपरिक प्रोफेशन को छोड़ अपने दम पर कुछ करना चाह रहे हैं। इसके लिए छोटे स्तर से ही अपना बिजनेस शुरू करने का चलन भी बढ़ा है। वैसे भी खेल तो बस दिमाग का है। आइडिया अच्छा हो और मेहनत करने का जज्बा हो तो बिजनेस सेट हो ही जाता है। आज अधिकांश युवा यही कोशिश करते हैं कि किसी भी एक क्षेत्र में परंपराओं से हटकर नई सुविधा या उत्पाद तैयार कर दिया जाए। वैसे भी स्वरोजगार में समय और कार्य की कोई बंदिश भी नहीं होती।
लोकतंत्र में भूमिका
वैसे तो अक्सर यह देखा जाता है कि लोग सरकार और जन प्रतिनिधियों को कोसते हैं और लोकतंत्र में अपनी अहमियत को नहीं समझते। मतदान से बचने की प्रवृत्ति अब काफी हद तक बदलती जा रही है। खासकर युवाओं की बात करें तो लोकतंत्र के पर्व को मनाने में वे आगे रहना चाहते हैं। दून समेत पूरे उत्तराखंड में बीते कुछ चुनावों में यह साबित भी हुआ कि युवा मतदान में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने लगे हैं। मतदान का कुल प्रतिशत बढ़ने लगा है, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण योगदान युवाओं का ही है। बालिग होते ही युवाओं को मतदान की जिम्मेदारी अहसास होने लगता है। करीब 60 फीसद मतदान में युवा वर्ग का एक बड़ा हिस्सा शामिल होता है। ऐसा हो भी क्यों न, युवाओं को नया देश भी बनाना है। आगे की जिम्मेदारी भी उन्हीं के कंधों पर है। आप भी मतदान को अपनी जिम्मेदारी समझिए और वोट जरूर कीजिये।
फिटनेस का क्रेज
फिटनेस का क्रेज तो युवा ही नहीं उम्रदराज लोगों में भी कम नहीं है। हो भी क्यों न, हर कोई जवान जो दिखना चाहता है। ऐसे में युवाओं को भी बढ़ती उम्र की चिंता सताती है। तो थोड़ा फैशनेबल स्टाइल और जिम का सहारा लेकर खुद को जवान बनाए रखने की जुगत में रहते हैं। फिजिकली फिट रहने में बुराई ही क्या है। शरीर के लिए समय निकालना तो अच्छी बात है। तभी तो शहर के तमाम जिम सुबह और शाम के समय पैक नजर आते हैं। इसके अलावा योगा और जॉगिंग भी युवाओं की दिनचर्या में शामिल हो रहे हैं। मकसद यह कि 40 की उम्र तक तो कम से कम जवान दिखें हीं। वैसे भी लुक को लेकर तो आजकल हर कोई इतना सेंसिटिव है कि शरीर को तो सुडोल रखना ही चाहता है, साथ ही हेयर स्टाइल, लाइफ स्टाइल और कपड़ों पर भी पूरा ध्यान रहता है।
समाज सेवा जरूरी
पढ़ाई-लिखाई और नौकरी के साथ खाली समय में कुछ समाज सेवा भी हो जाए तो क्या कहने। कुछ नया और अच्छा करें, आजकल के युवा ऐसी ही सोच रखते हैं। छोटे स्तर पर ही सही संस्था बनाकर युवाओं की टोली स्वच्छता से लेकर यातायात नियमों के पालन को जागरूक कर रही हैं। दून में तो आधा दर्जन से अधिक ऐसी संस्थाएं हैं, जिनमें शामिल युवा समाज सेवा कर रहे हैं।
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अनाथ और वृद्ध आश्रमों में जरूरत का सामान देने का कार्य हो या सड़कों के किनारे सोने को मजबूर लोगों को कंबल देना, युवा हर जगह आगे हैं। बात सिर्फ इतनी है कि अपने व्यस्ततम समय से कुछ समय निकालकर समाज की भलाई को कुछ कार्य किया जाए तो इन्सानियत का इससे बड़ा उदाहरण क्या होगा। ऐसा नहीं है कि इन युवाओं को कोई मदद मिल रही हो, बस अपने स्तर से धनराशि जमाकर जरूरतमंदों का सहारा बन रहे हैं।