जागरण फिल्म फेस्टिवल: नए दौर के युवा निर्देशकों ने गढ़ा नया सिनेमा, पढ़िए पूरी खबर
युवा निर्देशकों की बदौलत आज के दौर को बॉलीवुड में समानांतर सिनेमा का स्वर्णिम दौर कहा जा रहा है।
देहरादून, दिनेश कुकरेती। अक्सर हिंदी सिनेमा को लेकर बहस सुनने को मिलती है कि आखिर हमें फिल्में क्यों बनानी चाहिए। जवाब होता है समाज की उस तस्वीर को लोगों के सामने लाने के लिए, जिसे व्यावसायिक सिनेमा नहीं दिखाना चाहता। लेकिन, फिर सवाल उठता है कि कला या समानांतर सिनेमा ही कौन-सा समाज का भला कर रहा है। उसे तो कोई देखता भी नहीं। काफी हद तक यह सोच सही भी मानी जा सकती है। क्योंकि, आज आजादी से पूर्व या तत्काल बाद वाली स्थितियां तो रही नहीं, जब सिनेमा कोई न कोई मकसद लिए हुए होता था। आज तो सामाजिक-राजनीतिक घटनाओं और तनावों पर बन रही फिल्मों से भी कुछ सीखने को नहीं मिल रहा।
देखा जाए तो यह एकतरफा सोच है। सच तो यह है कि विषयवस्तु, शैली, प्रस्तुतीकरण और अभिनय में समानांतर सिनेमा जीवन के यथार्थ का आईना है। असल में सिनेमा और समाज के बीच एक अदृश्य-सा रिश्ता है, जो समय-समय पर उजागर और लुप्त होता रहा है। इसीलिए हर पांच-दस साल में सिनेमा की मुख्यधारा में एक नई धारा जुड़ती जाती है, जिसे कभी आधुनिक सिनेमा, कभी कला फिल्म तो कभी समानांतर सिनेमा का नाम दिया जाता रहा है।
सत्तर के दशक में सिनेमा की एक नई धारा निकली, जिसे मृणाल सेन, बासु भट्टाचार्य, बासु चटर्जी और गोविंद निहलानी जैसे फिल्मकारों ने पोषित किया। इसे कला फिल्म या समानांतर सिनेमा का नाम दिया गया। हालांकि, इन फिल्मों में ऐसा कुछ भी कलात्मक नहीं था, जिसे कला फिल्म माना जा सके। न यह मुख्यधारा के समानांतर चलने वाला या उसकी बराबरी कर सकने वाला सिनेमा था। लेकिन, वर्तमान में तस्वीर इससे इतर है।
अब भारत में जिस तरह की फिल्में बन रही हैं, वह निश्चित ही इन्हें समानांतर फिल्मों का ओहदा दिलवाने में इसलिए कामयाब है, क्योंकि यह मुख्यधारा की फिल्मों से हटकर होने के बावजूद किसी भी पैमाने पर उससे कमतर नहीं है। इन फिल्मों के बजट से लेकर सितारे तक मुख्यधारा की फिल्मों की तरह होते हैं। ठीक उसी तरह ये मुख्यधारा की फिल्मों के समानांतर चलते हुए बॉक्स ऑफिस पर उन्हें टक्कर देती हैं।
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चलिए उस दौर में लौटते हैं, जब श्याम बेनेगल ने 'मंथन' जैसी फिल्म से मसाला फिल्मों के निर्देशकों को बता दिया था कि बॉलीवुड में सिर्फ चलताऊ किस्म की कहानी ही नहीं चलती। लेकिन, बात अगर कमाई की करें तो ये फिल्में व्यावसायिक फिल्मों की कमाई से अब भी कोसों पीछे थीं। अस्सी के दशक में जब महेश भट्ट आए तो उन्होंने अपनी सार्थक और विषयपरक फिल्मों से सबका ध्यान खींचा, लेकिन कुछ समय बाद वे भी चकाचौंध का हिस्सा बन गए।
तब फिल्म विधा से जुड़े काफी लोग यह धारण बना चुके थे कि नब्बे के दशक और उसके बाद शायद बॉलीवुड में कला फिल्में बननी ही बंद हो जाएं। लेकिन, इसी कालखंड में श्याम बेनेगल, प्रकाश झा, सुधीर मिश्रा जैसे कुछ निर्देशकों ने सिनेमा की एक नई शैली विकसित की, जिसे समानांतर सिनेमा कहा गया। यह शैली काफी हद तक कला और मसाला फिल्मों का मिश्रण थी। सिलसिला आगे बढ़ता रहा और 21वीं सदी में आकर समानांतर सिनेमा ने मजबूत पकड़ बना ली। इस दौर के कम उम्र के निर्देशक हर उस विषय को अपनी फिल्मों में दिखाना चाहते थे, जिसे किन्हीं कारणों से बॉलीवुड में अब तक दिखा पाना मुश्किल था।
रामगोपाल वर्मा, श्रीराम राघवन व सुधीर मिश्रा जैसे निर्देशकों ने अलग सोच और विषयों पर अपनी पकड़ से इन समानांतर फिल्मों को मुख्यधारा की फिल्मों की टक्कर में लाकर खड़ा कर दिया। रामगोपाल वर्मा इस शैली के सबसे सफल निर्देशक साबित हुए। 'सत्या' जैसी व्यावसायिक फिल्म इसका उदाहरण है। धीरे-धीरे अन्य नए निर्देशक भी इस धारा में शामिल हो गए। इनमें सबसे ज्यादा प्रभावित अनुराग कश्यप ने किया। उन्होंने 'ब्लैक फ्राइडे' और 'गुलाल' जैसी फिल्मों के जरिये दुनिया को बता दिया कि कम बजट में भी कैसे बेहतरीन सिनेमा बनाया जा सकता है। इसके अलावा इम्तियाज अली और दिवाकर बनर्जी जैसे युवा निर्देशकों ने भी 'हाईवे' और 'लव सेक्स और धोखा' जैसी फिल्में बनाकर खुद को लंबी रेस का घोड़ा साबित किया। ऐसे ही निर्देशकों की बदौलत आज के दौर को बॉलीवुड में समानांतर सिनेमा का स्वर्णिम दौर कहा जा रहा है।
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जागरण फिल्म फेस्टिवल का शेड्यूल
30 अगस्त
जेएफएफ का आगाज : शाम 6.30 बजे
अभिनेत्री दिव्या दत्ता से बातचीत : शाम 7.00 बजे
हिंदी फीचर फिल्म 'तुंबाड': रात 8.00 बजे से
31 अगस्त
स्पेनिश फीचर फिल्म : 'द आयरिश प्रिजनर': सुबह 11.00 बजे से
मास्टर क्लॉस : दोपहर 12.30 बजे से
हिंदी फिल्म 'राम-लखन' : दोपहर 2.20 बजे से
हिंदी शॉर्ट फिल्म 'आपके आ जाने से' : शाम 5.30 बजे
हिंदी शॉर्ट फिल्म 'द वॉल' (दीवार) : शाम 5.48 बजे
हिंदी-अंग्रेजी शॉर्ट फिल्म 'लेटर्स' : शाम 6.01 बजे
बांग्ला-हिंदी शॉर्ट फिल्म 'मील' : शाम 6.29 बजे
हिंदी फीचर फिल्म 'चिंटू का बर्थडे' : शाम 6.55 बजे
हिंदी फीचर फिल्म 'बंकर' : रात 8.30 बजे
एक सितंबर
हिंदी फीचर फिल्म 'होमेज टू कादरखान-कर्मा' : सुबह 10.45 बजे
हिंदी फीचर फिल्म 'नक्काश' : दोपहर 2.10 बजे
अभिनेता इनामुलहक से बातचीत : 3.50 बजे
हिंदी फीचर फिल्म 'सूरमा' : शाम 4.55 बजे
हिंदी फीचर फिल्म 'ताशकंत फाइल्स' : शाम 7.20 बजे
ऐसे मिलेगा जेएफएफ में प्रवेश
जेएफएफ में पहले दिन प्रवेश उन्हीं सिने प्रेमियों को मिल सकेगा, जिन्हें 'दैनिक जागरण' की ओर से निमंत्रण पत्र मिला हो। जबकि, दूसरे और तीसरे दिन प्रवेश पाने के लिए सिने प्रेमियों को 'बुक माय शो' की वेबसाइट या मोबाइल एप 'बुक माय शो' पर रजिस्ट्रेशन कराना होगा। रजिस्ट्रेशन के बाद मोबाइल पर मैसेज आएगा, जिसे दिखाकर वे 'सिल्वर सिटी मल्टीप्लेक्स' में जेएफएफ के काउंटर से अपने पास ले सकते हैं। सिने प्रेमी दूसरे व तीसरे दिन का रजिस्ट्रेशन एक साथ भी करा सकते हैं। लेकिन, तीनों ही दिन प्रवेश 'पहले आओ-पहले पाओ' के आधार पर ही मिल पाएगा। इस संबंध में अधिक जानकारी के लिए मो.नंबर 7080102046 पर संपर्क किया जा सकता है।
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