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उत्तराखंड: आज भी रोजगार से नहीं जुड़ सका योग, पांच साल पहले की गई थी ये घोषणा

अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पूरे विश्व में धूमधाम से मनाया जाता है। प्रदेश में भी 21 जून को योग कार्यक्रमों की भरमार रहती है। उत्तराखंड की पहचान योग भूमि के रूप में भी रही है। हरिद्वार व ऋषिकेश में कई योग केंद्र हैं जहां देश-विदेश से साधक योग सीखने आते हैं।

By Raksha PanthriEdited By: Published: Fri, 18 Jun 2021 08:23 AM (IST)Updated: Fri, 18 Jun 2021 08:23 AM (IST)
उत्तराखंड: आज भी रोजगार से नहीं जुड़ सका योग, पांच साल पहले की गई थी ये घोषणा
उत्तराखंड: आज भी रोजगार से नहीं जुड़ सका योग, पांच साल पहले की गई थी ये घोषणा।

विकास गुसाईं, देहरादून। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पूरे विश्व में धूमधाम से मनाया जाता है। प्रदेश में भी 21 जून को योग कार्यक्रमों की भरमार रहती है। उत्तराखंड की पहचान योग भूमि के रूप में भी रही है। हरिद्वार व ऋषिकेश में कई योग केंद्र हैं, जहां देश-विदेश से साधक योग सीखने आते हैं। उत्तराखंड में योग के प्रति बढ़ते रुझान को देखते हुए प्रदेश सरकार ने इस क्षेत्र में युवाओं को रोजगार देने की योजना बनाई।

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वर्ष 2016 में तत्कालीन सरकार ने 20 हजार योग प्रशिक्षितों को रोजगार देने की घोषणा की। कहा गया कि स्कूलों में योग को पाठ्यक्रम के रूप में शामिल किया जाएगा। योग में डिप्लोमा व डिग्रीधारकों को इन स्कूलों में रोजगार दिया जाएगा। इसके बाद आई सरकार ने भी योग का खूब प्रचार-प्रसार किया, लेकिन घोषणा को पांच साल पूरे हो चुके हैं और योग साधकों को आज तक सरकार की ओर से रोजगार नहीं मिल पाया है।

17 साल से पुरानी जांच अधूरी

देश में जेट्रोफा (रतनजोत) से बायोफ्यूल बनाने की परियोजना कब दम तोड़ गई, पता ही नहीं चला। 15 साल पहले 22 करोड़ की लागत से शुरू योजना अगर परवान चढ़ती तो आज उत्तराखंड के साथ एक बड़ी उपलब्धि जुड़ी होती। जेट्रोफा से बायोफ्यूल निर्माण को वर्ष 2003 में परियोजना शुरू की गई। इसके लिए उत्तराखंड बायोफ्यूल बोर्ड का गठन किया गया। बोर्ड को प्रदेश में वन पंचायतों, ग्राम पंचायतों के साथ ही बंजर भूमि और वन क्षेत्रों में जेट्राफा रोपण को बढ़ावा देना था।

परियोजना में गड़बड़झाला तब सामने आया, जब जगह-जगह जेट्रोफा के पौधे बरसाती नालों व सड़कों के किनारे पड़े मिले। पता चला कि पौधे लगाए ही नहीं गए। इस बीच वह कंपनी भी गायब हो गई, जिससे बायोफ्यूल बनाने का करार हुआ था। मामले की जांच सतर्कता अधिष्ठान को सौंपी गई, मगर उसे अभिलेख ही मुहैया नहीं कराए गए। नतीजतन, जांच भी मुकाम तक नहीं पहुंच पाई।

कूरियर सेवा को कोरोना का झटका

परिवहन निगम की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए समय-समय पर कई योजनाएं बनाई गईं और नए कदम उठाए जाते रहे हैं। तमाम प्रयासों के बावजूद आज तक परिवहन निगम की आर्थिक स्थिति सुधर नहीं पाई है। कोरोना काल के दौरान निगम की बिगड़ती माली हालत को देखते हुए निगम बोर्ड ने कूरियर सेवा शुरू करने पर सहमति दी। कहा गया कि निगम की बसें विभिन्न राज्यों के प्रमुख जिलों के साथ ही प्रदेश के पर्वतीय जिलों में भी प्रतिदिन आती-जाती हैं। ऐसे में निगम यदि अपनी कूरियर सेवा शुरू करता है तो इससे निगम को अच्छी आय हो सकती है। इसके अलावा निगम की आय को बढ़ाने के लिए निगम की बसों में प्रदेश सरकार के साथ ही निजी कंपनियों के विज्ञापन भी चस्पा करने की बात कही गई। इनसे भी निगम को आय होती। ये योजनाएं परवान चढ़ पाती इससे पहले ही कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर आ गई।

नए बस अड़्डों को अभी इंतजार

मुख्यमंत्री घोषणा के बावजूद प्रदेश में अभी तक नए बस अड्डों का निर्माण नहीं हो पाया है। कहीं वन भूमि का पेच फंस रहा है, तो कहीं एनओसी नहीं मिल रही है। नतीजतन, विभिन्न जिलों में यात्रियों को एक अदद बस अड्डे की राह तकनी पड़ रही है। दरअसल, पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपने मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान 12 स्थानों पर नए बस अड्डों का निर्माण व विस्तार करने की घोषणा की थी।

इनमें से कुछ के निर्माण कार्य का उद्घाटन भी किया गया। इसमें उनकी विधानसभा डोईवाला का बस अड्डा भी शामिल था। इसके अलावा नरेंद्र नगर, भगवानपुर, पिरान कलियर, किच्छा, बनबसा में बस अड्डे बनाने की बात कही गई। मुख्यमंत्री समीक्षा के दौरान विभाग ने इन पर कार्य प्रगति में होने की बात कही। इसके बाद मार्च में कोरोना के कारण लाकडाउन लागू हो गया। इसके बाद से ये बस अड्डे बिसरा से दिए गए हैं।

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