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साहित्यकारों ने हिंदी की अलख जगाते हुए उत्‍तराखंड को दिलाई अलग पहचान

उत्तराखंड में बेशक गढ़वाली कुमाऊंनी और जौनसारी बोलियां बोली जाती हों लेकिन यह राज्य हिंदी पट्टी का ही हिस्सा है। उत्तराखंड के साहित्यकारों ने हिंदी की अलख जगाते हुए अलग पहचान बनाई और हिंदी साहित्य लेखन के जरिये भाषा की सेवा कर रहे हैं।

By Sunil NegiEdited By: Published: Thu, 27 Jan 2022 07:05 AM (IST)Updated: Thu, 27 Jan 2022 07:05 AM (IST)
साहित्यकारों ने हिंदी की अलख जगाते हुए उत्‍तराखंड को दिलाई अलग पहचान
साहित्यकारों ने हिंदी की अलख जगाते हुए उत्‍तराखंड को दिलाई अलग पहचान।

जागरण संवाददाता, देहरादून : उत्तराखंड में बेशक गढ़वाली, कुमाऊंनी और जौनसारी बोलियां बोली जाती हों, लेकिन यह राज्य हिंदी पट्टी का ही हिस्सा है। उत्तराखंड के साहित्यकारों ने हिंदी की अलख जगाते हुए अलग पहचान बनाई और हिंदी साहित्य लेखन के जरिये भाषा की सेवा कर रहे हैं। उनकी उपलब्धियों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया है। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बना चुके पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी, बीना बेंजवाल, डा. सुनीता चौहान आज भी साहित्य के क्षेत्र में निरंतर प्रयासरत हैं।

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पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी ने साहित्य के जरिये दिलाई पहचान

पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी ने कविता संग्रह, नाटक, गद्य के जरिये देश ही नहीं विदेशों में भी उत्तराखंड की अलग पहचान बनाई। उन्होंनेलेख, कहानी, कविताएं आदि में विधाओं का अंतर नहीं रहने दिया और समन्वय बनाने पर जोर दिया। यही वजह है कि आज भी उनकीलिखी पुस्तकों को उत्तराखंड के लोग विदेशों में रह रहकर भी पढ़ते हैं और नई पुस्तक को लेकर आतुर रहते हैं।

एक जुलाई 1944 को धनगढ़ टिहरी गढ़वाल में जन्मे पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी के जीवन में भी कई बदलाव आए। बचपन से ही उनका साहित्य को लेकर लगाव रहा। सेना में सेवा देने से लेकर अध्यापन और उसके बाद उत्तर प्रदेश सूचना विभाग में अधिकारी रहे। इस दौरान भी वे साहित्य के क्षेत्र में लगातार कार्य करते रहे। वर्ष 1964 में बनारस में छात्र जीवन के दौरान पहली पुस्तक 'शंखमुखी शिखरों पर' प्रकाशित हुई। इसके बाद 'नाटक जारी है' (1972), 'इस यात्रा में' (1974), 'रात अभी मौजूद है' (1976), 'बची हुई पृथ्वी' (1977), 'घबराये हुए शब्द' (1981) प्रकाशित हुए। पद्मश्री जगूड़ी अबतक 15 कविता संग्रह, पांच गद्य और चार कहानी प्रकाशित कर चुके हैं। वर्ष 2004 में उन्हें पद्मश्री, 2018 में व्यास सम्मान, साहित्य अकादमी पुरस्कार, रघुवीर सहाय सम्मान समेत कई सम्मान से नवाजा गया। वर्ष 1984 में नाटक 'पांच बेटे' ने अखिल भारतीय नाटक प्रतियोगिता में प्रथम स्थान हासिल किया। अब उनकी पुस्तक 'प्रश्नव्यूह में प्रज्ञा' जल्द ही प्रकाशित होगी, जिसमें उनके 20-22 इंटरव्यू प्रकाशित किए गए हैं।

बीना का गढ़वाली, हिंदी, अंग्रेजी शब्दकोश विदेश तक पहुंचा

गढ़वाल के साहित्य की बात करें तो केंद्रीय विद्यालय श्रीनगर गढ़वाल से सेवानिवृत्त शिक्षिका बीना बेंजवाल ने गढ़वाली- हिंदी साहित्य को उत्तराखंड ही नहीं अन्य राज्यों के मंचों पर प्रदर्शित किया। आज उनकी कविताएं और गढ़वाली, हिंदी, अंग्रेजी शब्दकोश देश ही नहीं विदेशों में भी लोग उत्सुकता से पढ़ रहे हैं।

रुद्रप्रयाग के देवशाल निवासी बीना बेंजवाल ने 1987 में पहली कविता 'जिंदगी' लिखी। 1995 में हिंदी कविता संग्रह 'मुट्ठी भर बर्फ', 1996 में गढ़वाली कविता संग्रह 'कमेड़ा आखर', 2007 में अरविंद पुरोहित के साथ उनका 'गढ़वाली- हिंदी शब्दकोष' प्रकाशित हुआ। 2018 में 'हिंदी, गढ़वाली, अंग्रेजी शब्दकोश' पति डा. रमाकांत बेंजवाल के साथ लिखे। वर्ष 2021 में बीना ने देश, विदेश की 54 महिलाओं की कविताओं का गढ़वाली अनुवाद कर 'मिसेज रावत' के नाम से पुस्तक रिलीज हुई। इसके अलावा उनका आकाशवाणी और दूरदर्शन पर चर्चा और काव्यपाठ का नियमित प्रसारण हुआ। उन्हें लोक साहित्य, लोकभाषा के क्षेत्र में 10 से अधिक सम्मान मिले हैं। इनमें 1996 में आदित्यराम नवानी भाषा प्रोत्साहन सम्मान, उत्तराखंड भाषा संस्थान ने 2011-12 का पीतांबर दत्त बड़थ्वाल भाषा सम्मान, 2018 में कन्हैयालाल डंडरियाल लोकभाषा सम्मान, जबकि 2021 में देवभूमि प्रतिभा सम्मान प्रमुख हैं।

लेखन के जरिये महिलाओं में ऊर्जा का संचार कर रहीं सुनीता

गृहणी की जिम्मेदारी निभाने के साथ ही जौनसार-बावर क्षेत्र के समाया गांव निवासी सुनीता चौहान लेखन के माध्यम से पहाड़ की महिलाओं में सामाजिक जागरूकता लाने और उनमें नई ऊर्जा का संचार कर रही हैं। सुनीता की 12 से अधिक कविता, कहानी, बाल कहानी प्रकाशित हो चुकी हैं।

श्रीनगर गढ़वाल से एमए हिंदी, बीएड करने के बाद सुनीता का पहला काव्य संग्रह 'मौन की अनूभूतियां' वर्ष 2013 में प्रकाशित हुआ। इसमें जीवन से जुड़ी कविताएं शामिल हैं। 2015 में 'आईना' (कहानी संग्रह), 2017 में बालमन के कोने कोने में समाया प्यार, चंचलता की नमी एवं वक्त के खुरदरे अहसासों को पिरोती कहानियां 'अलबेली चमेली' (बाल कहानी संग्रह), 2017 में 'उनके हिस्से की धूप' (कहानी संग्रह), 2022 में स्त्री विमर्श, मानवीय रिश्तों से उतार चढ़ाव पर आधारित 'मन के धागे' (काव्य संग्रह), 2020 में पहाड़ की बालिका की संघर्ष की दास्तां को दर्शाता 'पहाड़ के उस पार' (उपन्यास), 2022 में बरखा रानी (बाल कहानी संग्रह) प्रकाशित हुआ। महिलाओं को लेखन के जरिये आगे बढ़ाने और प्रेरित करने को लेकर उन्हें वर्ष 2016 में मुख्यमंत्री महिला सम्मान से नवाजा गया।


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