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श्रावण मास शुरू, मंदिरों में जलाभिषेक को उमड़े श्रद्धालु

हिंदुओं के विशेष धार्मिक महत्व के माह सावन की उत्तराखंड में आज से शुरुआत हो गई। पहले सोमवार का व्रत रखकर शिवभक्तों की भीड़ सुबह से ही शिवालयों में जलाभिषेक को उमड़ने लगी।

By BhanuEdited By: Published: Mon, 16 Jul 2018 08:47 AM (IST)Updated: Tue, 17 Jul 2018 06:00 AM (IST)
श्रावण मास शुरू, मंदिरों में जलाभिषेक को उमड़े श्रद्धालु
श्रावण मास शुरू, मंदिरों में जलाभिषेक को उमड़े श्रद्धालु

देहरादून, [जेएनएन]: हिंदुओं के विशेष धार्मिक महत्व के माह सावन की उत्तराखंड में आज से शुरुआत हो गई। पहले सोमवार का व्रत रखकर शिवभक्तों की भीड़ सुबह से ही शिवालयों में जलाभिषेक को उमड़ने लगी। 

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हालांकि, अन्य राज्यों में सावन हिंदू पंचांग के अनुसार 28 जुलाई से शुरू होगा। मगर पर्वतीय क्षेत्रों में कर्क संक्रांति से इसकी शुरुआत होती है। सावन के पहले सोमवार पर दून के शिवालयों व अन्य मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन किया गया। शिव भक्त भी रविवार मध्य रात्रि से ही शिवालयों का रुख करने लगे।

ऋषिपर्णा घाट स्थित मंदिर महादेव महाकालेश्वर के आचार्य कन्हैया चमोली ने बताया कि उत्तराखंड में प्राचीन काल से ही माह की शुरुआत शुक्ल पक्ष में सूर्य की नक्षत्र स्थिति से मानी जाती है। जबकि अन्य क्षेत्रों में कृष्ण पक्ष में चंद्रमा की नक्षत्र स्थिति से इसकी शुरुआत होती है।

उन्होंने बताया कि इस बार सावन में पांच सोमवार पड़ रहे हैं, जो बेहद शुभ संयोग है। इन दिनों शिवालयों में पूजा-अर्चना करने से मनोकामना पूरी होती है। दून के टपकेश्वर महादेव, पलटन बाजार के जंगम शिवालय, सहारनपुर चौक स्थित पृथ्वीनाथ महादेव मंदिर, श्याम सुंदर मंदिर पटेलनगर, गीता भवन मंदिर दर्शनी गेट, राजपुर रोड स्थित शिव मंदिर आदि में श्रावण सोमवार को सुबह से ही भक्तों का जलाभिषेक को तांता लगा रहा। 

शिव को सावन में मिलती है शीतलता

सावन भगवान शिव का प्रिय महीना है। ऐसी मान्यता है कि सावन में चारों ओर मेघवर्षा होती है और तापमान में गिरावट आती है, जिससे शिव का चित्त शांत रहता है और उन्हें शीतलता प्राप्त होती है। 

ऐसे करें भोले को प्रसन्न

आचार्य कन्हैया चमोली ने बताया कि भगवान शिव का गंगाजल या दूध से अभिषेक कर विल्व पत्र के साथ ही पंच फल व पंच फूल चढ़ाएं। विशेष मनोकामना के लिए दही, घी, शहद, चने की दाल, सरसों तेल, तिल आदि कई सामग्रियों से भी अभिषेक की विधि प्रचलित है। 

तिल के तेल का दीपक जलाकर भोले की आराधना करें। पंचाक्षरी और गायत्री मंत्र का पाठ भी कर सकते हैं। शिव चालीसा और महामृत्युंजय का पाठ करना सबसे उत्तम माना जाता है। 

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