विश्व परिवार दिवस : सब मिले तो और मजबूत हुए संयुक्त परिवार के रिश्ते
शादी विवाह जैसे बड़े आयोजनों में भी जहां पूरा परिवार एकत्र नहीं हो पाता था उसको लॉकडाउन ने कर दिखाया। जिससे विश्व परिवार दिवस को भी बल मिला है।
देहरादून, जेएनएन। लॉकडाउन ने परिवारों को इकट्ठा करने का काम किया है। शादी विवाह जैसे बड़े आयोजनों में भी जहां पूरा परिवार एकत्र नहीं हो पाता था, उसको लॉकडाउन ने कर दिखाया। जिससे विश्व परिवार दिवस को भी बल मिला है। उदाहरण के तौर पर आजकल लॉकडाउन के चलते साहिया के कोठा तारली गांव में टकाण परिवार के 35 लोगों का पूरा समूह आज भी एक ही छत के नीचे है। बच्चों को अपनी दादी से नई नई कहानियां सुनने को मिल रही है। शहरी व्यवस्था से दूर गांव के शुद्ध वातावरण और खेत खलिहान की मस्ती लंबे समय बाद गांव आए बच्चों को खूब सुहा रही है।
देहरादून जिले के जनजातीय क्षेत्र जौनसार बावर के कालसी ब्लॉक के कोठा तारली गांव में टकाण परिवार के 35 लोगों का पूरा परिवार एक छत के नीचे है। परिवार की सबसे बुजुर्ग महिला 85 वर्षीय चंपा देवी बताती हैं कि परिवार के अधिकांश सदस्य नौकरीपेशा व अन्य कार्य के कारण ज्यादातर शहरी क्षेत्रों में ही रहते थे। शादी विवाह जैसे बड़े आयोजनों में भी पूरा परिवार एकत्र नहीं हो पाता था, लेकिन लॉकडाउन के चलते पूरा परिवार गांव में ही है। शहरों में रहने वाले बच्चों को ग्रामीण परिवेश काफी भा रहा है। शहरों में रहने के लिए कम जगह व प्रदूषण के कारण बच्चों को उस तरह से घूमने-फिरने का मौका नहीं मिल पा रहा था, जिस तरह से गांव में मिल रहा है। बच्चे खेत खलिहान में खूब मस्ती कर रहे हैं। बुजुर्ग चंपा देवी बताती हैं कि कोरोना संक्रमण के चलते लागू लॉकडाउन ने एक काम तो अच्छा किया कि परिवारों को एक छत के नीचे ला दिया।
लॉकडाउन में मिला विश्व परिवार दिवस को बल
लॉकडाउन ने कई लोगों को एक साथ लाने का अवसर भी दिया है। ऐसा ही एक पंजाब सिंध क्षेत्र इंटर कॉलेज ऋषिकेश के सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य डॉ. सुरेश चंद शर्मा का परिवार है। इस परिवार की तीन पीढ़ियां लॉकडाउन में 50 दिनों से एक साथ वक्त गुजार रही हैं। सभी के लिए यह एक अलग तरह का अनुभव है जो इनके रिश्तों को और अधिक प्रगाढ़ता प्रदान कर रहा है। निर्मल आनंद निवास हरिद्वार रोड ऋषिकेश निवासी 85 वर्षीय सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य डॉ. सुरेश चंद शर्मा के परिवार में पुत्र बृजेश, राकेश और स्वर्गीय पुत्र संजीव का भरा पूरा परिवार शामिल हैं।
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तीनों पुत्रों की पुत्र वधू के साथ इनके आठ पौत्र और पौत्री आज एक छत के नीचे रह रहे हैं। डॉ. सुरेश बताते हैं कि लॉकडाउन के 50 दिनों में परिवार की तीनों पीढ़ियां घर पर रहकर एक-दूसरे से अपने अनुभव बांट रही हैं। बच्चे कैरम, लूडो और छत पर बैटमिंटन खेलकर समय बिताते हैं। खाली समय में परिवार के वयस्क लोग परिवार की पुरानी यादें और सामाजिक परिस्थिति पर चर्चा करते रहे। इस दौरान जहां बच्चों से नई-नई जानकारियां मिल रही है वहीं बच्चों को बड़ों के अनुभव का मार्गदर्शन भी मिल रहा है। जो भविष्य में उनका सबल बनेगा
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