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World Environment Day: लॉकडाउन में स्वच्छ हुए पर्यावरण को बचाना होगा, चुनौतियों से पार पाना होगा

कोरोना संकट ने दुश्वारियों में इजाफा किया है मगर तस्वीर का दूसरा पहलू भी है। लॉकडाउन के दौरान पर्यावरण की सेहत अप्रत्याशित ढंग से सुधरी है।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Fri, 05 Jun 2020 09:33 AM (IST)Updated: Fri, 05 Jun 2020 09:33 AM (IST)
World Environment Day: लॉकडाउन में स्वच्छ हुए पर्यावरण को बचाना होगा, चुनौतियों से पार पाना होगा
World Environment Day: लॉकडाउन में स्वच्छ हुए पर्यावरण को बचाना होगा, चुनौतियों से पार पाना होगा

देहरादून, राज्य ब्यूरो। यह ठीक है कि कोरोना संकट ने दुश्वारियों में इजाफा किया है, मगर तस्वीर का दूसरा पहलू भी है। लॉकडाउन के दौरान पर्यावरण की सेहत अप्रत्याशित ढंग से सुधरी है। उत्तराखंड भी इससे अछूता नहीं है। शहरों की आबोहवा साफ हुई है तो न सिर्फ परिंदों की आवक और चहचहाहट बढ़ी, बल्कि पर्वत श्रृंखलाएं भी स्पष्ट दिखने लगी हैं। जंगलों, बुग्यालों की हरियाली तो देखते ही बनती है। राष्ट्रीय नदी गंगा समेत अन्य नदियों को प्रदूषण की मार से फिलवक्त मुक्ति मिली है। जाहिर है कि पर्यावरण की इस सुधरी सेहत को संजोए रखने की चुनौती सबके सामने है। इससे पार पाने को बेहतर प्रबंधन की दरकार है और इसमें सरकार के स्तर से तो प्रयास होंगे ही, जनसामान्य को भी अपनी भागीदारी सुनिश्चित करनी ही होगी।

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ज्यादा नहीं, पांच माह पीछे मुड़कर देंखे तो पर्यावरण को लेकर हर स्तर पर चिंता जताई जा रही थी। बढ़ते वायु, जल, ध्वनि प्रदूषण के साथ ही जंगलों की नासाज होती सेहत ने पेशानी पर बल डाले हुए थे। इस बीच कोरोना की दस्तक हुई तो इसने दिक्कतें बढ़ाईं, मगर बड़ा सबक भी दे दिया। लॉकडाउन के दौरान यातायात के साधन, उद्योग आदि नहीं चले तो वातावरण में ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम हुआ। जानकारों के मुताबिक भूजल का स्तर भी बढ़ा है। साथ ही यत्र-तत्र बिखरे रहने वाले कूड़े-कचरे की मात्र भी कम हुई है। लोग सजग हुए तो नदियों की तस्वीर भी बदली। वायु, जल, ध्वनि प्रदूषण में कमी आई है। यही वजह भी है कि शहरों से भी सुदूर पर्वत श्रृंखलाएं स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर हो रही हैं।

पर्यावरण की यह सेहत में जो सुधार है, वह बना रहे और इसमें आगे और सुधार हो, इसके लिए हर स्तर पर कदम उठाने की चुनौती है। वन एवं पर्यावरण मंत्रलय की पीबीआर (पीपुल्स बायोडायवर्सिटी रजिस्टर) मॉनीटरिंग कमेटी (उत्तर भारत) के चेयरमैन और उत्तराखंड के पूर्व प्रमुख मुख्य वन संरक्षक डॉ.आरबीएस रावत भी इससे इत्तेफाक रखते हैं। डॉ.रावत कहते हैं कि जिन कारकों से प्रदूषण कम हुआ है, उसे देखते हुए संबंधित सभी मापदंडों को नियंत्रित करने को बेहतर प्रबंधन की दिशा में कदम बढ़ाने होंगे। फिर चाहे वह जैवविविधता संरक्षण की बात हो, वन एवं वन्यजीव या शहरी क्षेत्रों की बेहतर आबोहवा, सबके लिए नए सिरे विमर्श कर प्रबंधन कर समय के हिसाब से बदलना ही होगा।

स्वच्छ-निर्मल हुई नदी

लॉकडाउन के दरम्यान राष्ट्रीय गंगा में भी प्रदूषण का बोझ कम हुआ है। उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीसीबी) ने देवप्रयाग से लेकर हरिद्वार तक गंगा के जल की जांच की तो पता चला कि ऋषिकेश से लेकर हरिद्वार गंगाजल की गुणवत्ता में सुधार हुआ है। ऋषिकेश तक तो गंगा जल की गुणवत्ता पहले ही ए श्रेणी में थी, जबकि अब हरिद्वार में हर की पैड़ी में गंगा जल की गुणवत्ता में सुधार हुआ है। हरिद्वार में गंगा जल में फीकल कॉलीफार्म आदि की मात्र नाममात्र को रह गई है।

पीसीबी कसेगा शिकंजा

पर्यावरण की सेहत न बिगड़े, इसे देखते हुए पीसीबी भी सक्रिय हो गया है। पीसीबी के सदस्य सचिव एसपी सुबुद्धि बताते हैं कि आने वाले दिनों में सभी उद्योग, होटल, आश्रम-धर्मशाला व अस्पतालों का संचालन तेज होना है। ऐसे में सभी को नोटिस देकर आगाह किया जा रहा कि वे पर्यावरणीय मानकों का पूरी तरह से अनुपालन सुनिश्चित करें। इसकी अनदेखी करने पर बंदी की चेतावनी भी दी गई है।

दैनिक जागरण राउंड टेबल में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री) प्रकाश जावडेकर ने कहा कि वाहन न चलें, उद्योग न चलें ऐसा तो हो नहीं सकता। हां, हर स्तर पर पर्यावरण को लेकर सामंजस्य बनाने की जरूरत है। लॉकडाउन के दौरान पर्यावरण की सेहत सुधरी है। यह ऐसे ही बनी रहे और इसमें और सुधार हो, इसके राज्य सरकारों को पर्यावरणीय मानकों का कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित कराना होगा।

बूंदें सहेजी तो चहक उठी छोटी आसन नदी

राजधानी देहरादून में वर्षाजल संरक्षण का मॉडल देखना हो तो सीधे चले आइये शुक्लापुर। यहां हेस्को संस्था व वन विभाग ने मिलकर बूंदों को सहेजने के प्रयास किए तो वहां वीरान जंगल हरा-भरा हो गया और छोटी आसन नदी भी चहक उठी। जिस छोटी आसन में वर्ष 2010 में पानी का बहाव घटकर 90 एलपीएम (लीटर प्रति मिनट) पर आ गया था, उसमें अब 12-13 सौ एलपीएम पानी का बहाव रहता है।

देहरादून वन प्रभाग की आशारोड़ी रेंज के अंतर्गत शुक्लापुर का जंगल पूर्व में वीरान हो चला था। साथ ही वहां से निकलने वाली छोटी आसन नदी भी तिल-तिल कर मरणासन्न अवस्था की ओर बढऩे लगी। गर्मियों यह सूखने भी लगी और अन्य दिनों में भी पानी का बहाव बेहद कम हो गया। इसे देखते हुए हेस्को के संस्थापक डॉ. अनिल प्रकाश जोशी ने छोटी आसन नदी को पुनर्जीवित करने के लिए इसके कैचमेंट एरिया यानी शुक्लापुर के जंगल में वर्षा जल संरक्षण की पहल की। इसके तहत कैचमेंट एरिया में बड़ी संख्या में छोटे-छोटे तालाबनुमा गड्ढे खोदे गए, जिसके अच्छे नतीजे सामने आए।

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वर्ष 2010 में हेस्को की तकनीकी सहायता से 44 हेक्टयेर क्षेत्र में फैले इस जंगल में वृहद स्तर पर मुहिम शुरू की गई। बड़ी संख्या में तालाब, चेकडैम आदि बनाकर वर्षा जल संचय किया गया। पांच-छह साल के भीतर यहां की तस्वीर बदलने लगी। शुक्लापुर के जंगल में नई प्रजातियां उग आईं तो वर्षा जल संरक्षण के चलते छोटी आसन नदी का पानी भी निरंतर बढऩे लगा। आज इस नदी में वर्षभर पानी रहता है और बहाव भी 12 से 13 सौ एलपीएम। हेस्को के इस मॉडल से जहां शुक्लापुर का जंगल विकसित हुआ, वहीं एक नदी भी जी उठी। 

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