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लाइब्रेरी से निकल मोबाइल पर पहुंचीं किताबें, लेकिन नहीं छूटा साथ

किताबें हमारी सच्ची दोस्त होती हैं। यही वजह है कि डिजिटल होते युग में किताबें आज भले ही लाइब्रेरी से निकलकर मोबाइल पर आ गई हों। पर साथ नहीं छूूटा।

By Edited By: Published: Mon, 22 Apr 2019 09:11 PM (IST)Updated: Tue, 23 Apr 2019 08:08 PM (IST)
लाइब्रेरी से निकल मोबाइल पर पहुंचीं किताबें, लेकिन नहीं छूटा साथ
लाइब्रेरी से निकल मोबाइल पर पहुंचीं किताबें, लेकिन नहीं छूटा साथ

देहरादून, जेएनएन। 'प्यार हो या खुशी का पल, दुख हो या फिर उदासी का क्षण, किताबें हमेशा साथ रहती हैं। दोस्त भले ही साथ छोड़ दें, लेकिन किताबें हमेशा सच्ची दोस्त होती हैं।' डिजिटल होते युग में किताबें आज लाइब्रेरी से निकलकर मोबाइल पर आ गई हैं। शायद यही कारण है कि लाइब्रेरियों में किताबों के शौकीनों की संख्या में कमी आई है। पर इस सच झुठलाया नहीं जा सकता कि किताबें हमेशा इन्सान की सच्ची साथी रहेंगीं। 

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दून के पुस्तकालयों का हाल भी कुछ ऐसा ही है। पहले जहां इन पुस्तकालयों में बैठने के लिए जगह नहीं मिलती थी, वहां आज इन लाइब्रेरियों में खाली पड़ी कुर्सियां और ढेरों किताबें अपने पाठक का इंतजार कर रही हैं। यहां आजादी से अब तक के लेखकों की बेशुमार किताबें हैं, मगर इन्हें पढ़ने वाले चुनिंदा लोग ही हैं। एक समय बड़ी संख्या में बौद्धिक वर्ग के लोग यहां किताबें पढ़ने आते थे। वे इन किताबों को पढ़कर अपनी भावनाओं और लेखकों के तर्क पर सवाल-जवाब भी करते थे। 

बेशक अब भी यहां कुछेक पाठक पुराने उपन्यास, अखबार और मासिक पत्रिका पढ़ने आते हैं। गांधी रोड स्थित महात्मा खुशी राम पुस्तकालय में हिंदी, अंग्रेजी साहित्य समेत कई भाषाओं की पुस्तकें यहां मौजूद हैं। वर्ष 1914 में महावीर प्रसाद द्विवेदी के संपादन वाली सरस्वती पत्रिका आज भी यहां मौजूद है। लाइब्रेरियन पीतांबर जोशी बताते हैं कि रिटायर्ड पोस्टमास्टर खुशीराम ने इस लाइब्रेरी की स्थापना की थी। 

पुस्तकालय में करीब 50 हजार से अधिक पुस्तकें हैं। वहीं, उनके सापेक्ष 450 सदस्य रजिस्टर्ड हैं। इनमें 40 से 50 लोग रोजाना आते हैं। पुस्तकालय के अध्यक्ष विजय बंसल का कहना है कि यह प्रदेश का सबसे पुराना पुस्तकालय है। यहां चारों वेद के साथ ही श्रीमद्भागवत गीता भी उपलब्ध है। यहां अधिकतर युवा प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी के लिए आते हैं। पुस्तकालयों में रखीं पुरानी किताबें धूल फांक रही हैं। परेड ग्राउंड स्थित दून पुस्तकालय वर्ष 2006 में स्थापित हुआ था। यहां करीब 25 हजार किताबें होने के साथ ही चार हजार सदस्य लाइब्रेरी में रजिस्टर्ड हैं। 

उन्होंने बताया कि गांधी युग, नेहरू के खास संस्करण से लेकर आर्कियोलॉजी, चर्चित बायोग्राफी, हिमालय से जुड़ी कई किताबें यहां हैं। किताबें रखने के लिए रैक में जगह कम पड़ गई, लेकिन पढ़ने वालों की संख्या में इजाफा नहीं हुआ। युवाओं का कहना है कि उन्हें कोर्स के अलावा अन्य किताबें पढ़ने का मौका ही नहीं मिलता है। 

दून लाइब्रेरी के रिसर्च एसोसिएट मनोज पंजानी बताते हैं कि यहां अलग-अलग साहित्य, विषय विशेष, पत्रिकाओं का भंडार है। हमारी कोशिश रहती है पाठकों को उनकी पसंद की किताबें मिलें। शोधार्थियों के लिए यहा कई किताबें हैं। 

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