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निर्भया को न्याय से मिली राहत, देरी से दून की महिलाओं ने जताई चिंता

सर्वोच्च न्यायालय ने निर्भया के दोषियों को फांसी की सजा सुना दी। दून में भी महिलाओं ने अदालत के फैसले की सराहना की मगर न्याय में हुई देरी पर चिंतित भी नजर आईं।

By BhanuEdited By: Published: Wed, 08 Jan 2020 08:45 AM (IST)Updated: Wed, 08 Jan 2020 08:45 AM (IST)
निर्भया को न्याय से मिली राहत, देरी से दून की महिलाओं ने जताई चिंता
निर्भया को न्याय से मिली राहत, देरी से दून की महिलाओं ने जताई चिंता

देहरादून, जेएनएन। 16 दिसंबर 2012 की रात देश के लिए किसी काले अध्याय से कम नहीं थी। यह वही रात थी, जब दिल्ली की सड़कों पर निर्भया गैंगरेप जैसा जघन्य अपराध हुआ। इस घटना के बाद हर बेटी के मां-बाप सदमे में थे। अगली सुबह इस घटना की जानकारी मिलने के साथ ही लोग निर्भया के लिए इंसाफ की दुआ करने लगे थे। जो अब जाकर कबूल हुई है। मंगलवार को आखिरकार सर्वोच्च न्यायालय ने निर्भया के दोषियों को फांसी की सजा सुना दी। इस फैसले को लेकर देशभर में मिली-जुली प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। दून में भी महिलाओं ने अदालत के फैसले की सराहना की, मगर न्याय में हुई देरी पर चिंतित भी नजर आईं। 

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फैसले पर देरी से अफसोस 

दून संस्कृति लेडीड क्लब की अध्यक्ष रमा गोयल इस फैसले से बहुत खुश हैं। साथ ही कहती हैं कि इस बात का अफसोस भी है कि अन्य देशों में जहां ऐसे अपराधों में जल्द और सख्त फैसला सुनाया जाता है। वहीं, अपने देश में इस फैसले के लिए सात साल इंतजार करना पड़ा। 

फैसले का स्वागत 

उत्तराखंड बाल आयोग करी अध्यक्ष उषा नेगी के मुताबिक, सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का हम स्वागत करते हैं। इससे लोगों को सबक मिलेगा और वह ऐसे जघन्य अपराध करने से पहले कई बार सोचेंगे। हमें न्यायप्रणाली पर पूरा विश्वास है। 

फैसले से मिली शांति 

महिला कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष आशा मनोरमा डोबरियाल के अनुसार, निर्भया कांड के बाद से दिल में अजीब-सी बेचैनी थी, जो आज खत्म हो गई। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से आत्मिक शांति का अनुभव हुआ है। इससे न्यायपालिका पर विश्वास बढ़ गया है। 

ऐसे हर अपराध के लिए हो सख्त कार्रवाई 

अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति की उपाध्यक्ष इंदु नौडियाल के अनुसार, न्याय में देरी नहीं होनी चाहिए। फिर चाहे निर्भया केस हो या उन्नाव का मामला। इन मामलों में बहादुर बच्चियां बहुत लड़ीं और जान तक गंवा दी। मैं आज भी रोज कई ऐसी बेटियों को देखती हूं, जो न्याय के लिए वर्षों से रोज कचहरी के चक्कर काट रही हैं। न्याय प्रणाली को ऐसे अपराध के विरुद्ध सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। 

सुप्रीम कोर्ट से मिला इंसाफ 

उत्तराखंड महिला आयोग की उपाध्यक्ष कामिनी गुप्ता के मुताबिक, फैसला आने में देरी जरूर लगी, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय से इंसाफ मिला। अगर यही फैसले जल्द सुनाए जाएं तो अभिभावक और बेटियां चैन की सांस ले पाएंगी। यह फैसला स्वागत योग्य है और मैं इसकी सराहना करती हूं। 

राहत पहुंचाने वाला है फैसला 

अधिवक्ता अंजना साहनी के अनुसार, दूसरे मामलों से तुलना की जाए तो इसमें न्याय प्रणाली ने बहुत जल्द कार्रवाई की है। निर्भया भले ही हमारे बीच नहीं है पर न्याय से मिलने वाली खुशी हर बेटी के चेहरे पर नजर आ रही है। खासकर यह फैसला निर्भया के अभिभावकों को बहुत राहत पहुंचाने वाला है। 

दून के डाक्टर ने किया था निर्भया का इलाज

16 दिसंबर 2012 की रात तकरीबन डेढ़ बजे जब निर्भया को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल पहुंचाया गया था, वहां सबसे पहले देहरादून के डॉ. विपुल कंडवाल ने निर्भया का इलाज किया था। डॉ. कंडवाल इस वक्त दून में खुद का अस्पताल चलाते हैं। उन दिनों वे सफदरजंग अस्पताल में कार्य कर रहे थे। 

उन्होंने बताया कि निर्भया की हालत देख वे अंदर से दहल गए थे। जिदंगी में पहले कभी ऐसा केस नहीं देखा था। कंडवाल कहते हैं, रात डेढ़ बजे का वक्त रहा होगा। मैं अस्पताल में नाइट ड्यूटी पर था। तभी रोज की तरह सायरन बजाती तेज रफ्तार एंबुलेंस अस्पताल की इमरजेंसी के बाहर आकर रुकी। तत्काल ही घायल को इमरजेंसी में इलाज के लिए पहुंचाया गया।  

(फोटोः डॉ. विपुल कंडवाल)  

मेरे सामने 21 साल की एक युवती थी। उसके शरीर से फटे कपड़े हटाए, जांच की तो दिल मानों थम सा गया। मन में सवाल बार-बार उठ रहा था कि कोई इतना क्रूर कैसे हो सकता है? वह बताते हैं कि मैंने खून रोकने के लिए प्रारंभिक सर्जरी शुरू की। खून नहीं रुक रहा था। क्योंकि रॉड से किए गए जख्म इतने गहरे थे कि उसे बड़ी सर्जरी की जरूरत थी। आंत भी गहरी कटी हुई थी। मुझे नहीं पता था कि ये युवती कौन है। 

इतने में पुलिस और मीडिया के कई वाहन भी अस्पताल पहुंचने लगे। वे पल मेरे लिए बहुत ही इमोशनल थे। उस रात ही नहीं दो-तीन हफ्तों तक हम दिन-रात निर्भया की स्थिति ठीक करने में जुटे रहे। उपचार के लिए विशेषज्ञ डाक्टरों का एक पैनल बनाया गया। इसमें मैं भी था। बाद में हालत बिगडऩे पर उसे हायर सेंटर रेफर किया गया, जहां से एयर एम्बुलेंस के जरिये सिंगापुर भी भेजा गया। 

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तमाम कोशिश के बावजूद निर्भया को बचाया नहीं जा सका। कई दिन तक मैं गुमसुम रहा। फिर अपने परिवार के बीच में सामान्य हो पाया। डॉ. कंडवाल का कहना है कि निर्भया को आखिरकार न्याय मिलने जा रहा है। निर्भया तो लौटकर नहीं आ सकती पर इस बात का संतोष है कि दोषियों को अपने किये की सजा मिलने जा रही है।

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