जब नुकसान नहीं कर रहे तो बंदरों का बंध्याकरण क्यों
प्रदेश में बंदरों के लगातार बढ़ रहे उत्पात से किसानों से लेकर आमजन तक परेशान हैं। वहीं सरकार ने सदन में इस बात से इनकार किया है कि पर्वतीय क्षेत्र में बंदरों के बढ़ते आतंक और खेती के नुकसान के कारण किसान कृषि कार्य छोड़ रहे हैं।
राज्य ब्यूरो, देहरादून: प्रदेश में बंदरों के लगातार बढ़ रहे उत्पात से किसानों से लेकर आमजन तक परेशान हैं। वहीं, सरकार ने सदन में इस बात से इनकार किया है कि पर्वतीय क्षेत्र में बंदरों के बढ़ते आतंक और खेती के नुकसान के कारण किसान कृषि कार्य छोड़ रहे हैं। सरकार के इस जवाब पर सत्ता पक्ष के विधायकों ने ही सवाल किया कि जब बंदर नुकसान नहीं पहुंचा रहे हैं तो उनका बंध्याकरण क्यों किया जा रहा है।
गुरुवार को विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दूसरे दिन विधायक विनोद कंडारी ने बंदरों द्वारा खेती व किसानी को पहुंचाए जा रहे नुकसान का मसला उठाया। इसका जवाब देते हुए वन मंत्री हरक सिंह रावत ने कहा कि एक अनुमान के मुताबिक प्रदेश में तकरीबन डेढ़ लाख बंदर हैं। बंदरों की समस्या से निपटने के लिए तीन बंदरबाड़े बनाए गए हैं। इनमें बंदरों का बंध्याकरण किया जा रहा है। अभी तक 7093 बंदरों का बंध्याकरण किया जा चुका है। अब एनजीटी ने कहा है कि बंदरों को लंबे समय तक बाड़े में नहीं रख सकते। इसे देखते हुए अब अल्मोड़ा और चमोली में दो सौ से लेकर ढाई सौ एकड़ के बंदरबाड़े बनाए जा रहे हैं, ताकि उन्हें प्राकृतिक आवास मिल सके। इन स्थानों पर फलदार वृक्ष लगाए जाएंगे, ताकि इन्हें भोजन मिल सके। उन्होंने यह भी बताया कि जंगली जानवरों के इलाज को 27 चिकित्सकों के पद भी स्वीकृत किए गए हैं।
अब धोखे में नहीं आ रहे बंदर
वन मंत्री ने कहा कि अब बंदर चालाक हो गए हैं। एक बार बंदर बाड़े में फंसने के बाद दोबारा धोखा नहीं खा रहे हैं। इस पर कांग्रेस विधायक काजी निजामुद्दीन ने चुटकी लेते हुए कहा कि एक बार तो धोखा आप भी खा चुके हैं।