जो मजे से दूर वो मजदूर है..
सहारनपुर की विभावरी साहित्यिक संस्था व पछवादून उदगार सामाजिक साहित्यिक संस्था के संयुक्त तत्वावधान में देवराज काला की काव्य रचना दोहों की बारात का विमोचन किया गया।
By Edited By: Published: Sun, 24 Jun 2018 10:01 PM (IST)Updated: Mon, 25 Jun 2018 05:19 PM (IST)
संवाद सहयोगी, विकासनगर: रविवार को ब्लाक सभागार में सहारनपुर की विभावरी साहित्यिक संस्था व पछवादून उदगार सामाजिक साहित्यिक संस्था के संयुक्त तत्वावधान में देवराज काला की काव्य रचना दोहों की बारात का विमोचन किया गया। विमोचन के बाद कवियों ने अपनी रचानाओं का पाठ करते हुए समाज के विभिन्न पहलुओं को छुआ। सहारनपुर के गीतकार डॉ. विजेंद्र पाल शर्मा ने बेटियों के ससुराल चले जाने पर माता-पिता की मनोदशा का मार्मिक वर्णन किया। कहा बेटियां चली गई ससुराल, उनके संग थे राजा-रानी, उनके बिन कंगाल..। डॉ. आरपी सारस्वत ने राष्ट्र प्रेम को जागरूक करते हुए कहा कि अन्न खाते देश का औ पाक की जयकार. हो धिक्कार, है धिक्कार.। हरिराम पथिक ने मजदूर का दर्द बयां करते हुए कहा जो मजे से दूर वो मजदूर है, सच कहूं तो वह धरा का नूर है..। शिवमोहन ¨सह ने वर्षा ऋतु के आगमन का वर्णन करते हुए कहा कि मेघ आएंगे हमरी तलैया के तीर..। मजाहिर खान ने जगीरा धीरे धीरे बोल, मजीरा धीरे धीरे बोल. गाकर मंत्रमुग्ध कर दिया। गजल गायक सिकंदर हयात ने हम आवारा बादल ठहरे, रंगों की बरसातों में.. तुम आसक्त हुए हो जब से इस दुनिया की बातों में .. शिवराज सरहदी ने अर्थ शास्त्रों के खंडित हो गए, जब से जुगाड़ी पंडित हो गए, एक मां के सदके सारी कायनात, लाल जिसके महिमा मंडित हो गए.. पुष्पेंद्र त्यागी ने रंजिशें कोई न थी, तल्खियां कोई नहीं, तरकशों के दौर फिर क्यूं चले, कैसे चले सुनाई। इसके साथ ही महेंद्र ¨सह निर्भीक ने अपनी हास्य रचना सांड की टक्कर व हमारी यूपी पुलिस महान पढ़कर ठहाके लगाने पर मजबूर कर दिया। काव्य गोष्ठी के समापन पर साहित्यकार देवराज काला को विभावरी के साहित्य गौरव सम्मान से नवाजा गया। इस दौरान उर्मिला गौतम, सुधा भारद्वाज, विजय लक्ष्मी काला, सुधा सरहदी, देव सारंग, अतुल शर्मा, कशिश नगीनवी आदि मौजूद रहे।
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