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जल्दबाजी और रोमांच के चक्कर में जान जोखिम में डालना सही नहीं

क्षणिक रोमांच कब जीवन का अंत कर दे कहा नहीं जा सकता। यही बात युवाओं को समझनी होगी कि जल्दबाजी और रोमांच के चक्कर में जान जोखिम में डालना सही नहीं है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Fri, 31 Jan 2020 12:21 PM (IST)Updated: Fri, 31 Jan 2020 12:21 PM (IST)
जल्दबाजी और रोमांच के चक्कर में जान जोखिम में डालना सही नहीं
जल्दबाजी और रोमांच के चक्कर में जान जोखिम में डालना सही नहीं

देहरादून, विजय जोशी। युवावस्था में हर चीज को लेकर उत्साह होता है और युवामन जल्दी उत्तेजित भी हो जाता है। इसके बावजूद तसल्ली के साथ अपनी गतिविधियों के बारे में सोचना जरूरी है। अक्सर युवा उत्साह में कुछ ऐसा कर जाते हैं, जिससे उनकी जान पर भी बन आती है। बाइक राइडिंग को ही ले लीजिए। हवा से बात करने का जुनून हमेशा भारी पड़ता है। इसमें कभी कोई अपनी जान गवां देता है तो कभी हाथ-पैर तुड़वा बैठता है। दून या मसूरी की सड़कों पर तेज रफ्तार वाहनों के दुर्घटनाग्रस्त होने की खबरें तो जैसे आम हैं। अधिकांश दुर्घटनाएं तेज रफ्तार के कारण ही होती हैं। ऐसे में यह क्षणिक रोमांच कब जीवन का अंत कर दे, कहा नहीं जा सकता। यही बात युवाओं को समझनी होगी कि जल्दबाजी और रोमांच के चक्कर में जान जोखिम में डालना सही नहीं है। उनका भी सोचें, जो घर पर आपका इंतजार कर रहे हैं।

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टिफिन में ड्रग की डोज

दून में युवा किस कदर नशे के चंगुल में फंस चुके हैं, बताने की जरूरत नहीं है। लेकिन, युवाओं की आरामतलबी का आलम तो देखिए कि अब घर पर ही नशे की डोज ऑर्डर हो रही है। फूड डिलीवरी ब्वॉय को कुछ पैसे एक्स्ट्रा देने की ही तो बात है। फिर क्या जो डिमांड करो, वही नशा घर पर हाजिर है। डिलीवरी ब्वॉय को कहा कि शराब की दुकान से यह लेकर आओ और अपना ईनाम पाओ। चंद पैसों के चक्कर में डिलीवरी ब्वॉय भी बेझिझक ऑर्डर फॉलो कर देते हैं। युवाओं की नशाखोरी का आलम यह कि उन्हें अब घर बैठे खाना तो चाहिए, नशा भी घर पर ही मिल जाए तो बस। पिछले दिनों रेस्टोरेंट से खाना घर पहुंचाने वाली कंपनियों के डिलीवरी ब्वॉय के नशा भी पहुंचाने की बातें सामने आईं तो जांच के आदेश हुए। कंपनियों को चेतावनी दी गई कि अब पकड़ भी शुरू होगी।

टूट रही युवाओं की झिझक

मॉडर्न जमाना है, लोग भी आधुनिकता के रंग में रंग रहे हैं। ऐसे में युवा क्यों पीछे रहें। ऐसा ही कुछ फिल्मों को लेकर भी नजर आ रहा है। हॉलीवुड की बात तो छोडि़ए अब तो ङ्क्षहदी फिल्मों में भी काफी खुलापन आ गया है। फिल्मों के दृश्य हों या डायलॉग, काफी बोल्ड हो गए हैं। लेकिन, इनके साथ-साथ युवाओं की झिझक भी तो कम हो गई है। एक जमाने में फिल्म के दौरान किसी बोल्ड सीन के आने पर माता-पिता या बड़े-बुजुर्गों के साथ बैठे युवा बगलें झांकने लगते थे। अब मामला कुछ उलट है। ऐसे दृश्य तो आम बात हैं और गाली-गलौच वाले सीन पर तो परिवार के सभी लोग ठहाके लगाते नजर आते हैं। सिनेमाघरों में भी अब किसी भी श्रेणी की फिल्म देखने लोग परिवार के साथ पहुंच जाते हैं। आलम यह है कि बच्चे-बुजुर्ग एक साथ फिल्मों का मजा लेते सिनेमाघर में दिख जाते हैं।

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युवाओं को न भाए इंजीनियरिंग

इंजीनियरिंग का जुनून युवाओं में कम होने लगा है। कारण का तो अभी सटीक अंदाजा नहीं, पर संभव है कि कड़ी प्रतिस्पर्धा के चलते युवा अन्य विकल्प तलाशने लगे हैं। ऐसे में इंजीनियरिंग के लिए होने वाली प्रवेश परीक्षा में भी अभ्यर्थियों की संख्या लगातार घट रही है। यही नहीं इंजीनियरिंग की कोचिंग देने वाले संस्थान भी मंदी की मार झेल रहे हैं। उनके लिए छात्र ढूंढना चुनौती बन गया है। वहीं, युवाओं में प्रतिस्पर्धा की दौड़ से हटकर अन्य विकल्पों की तलाश करने का ट्रेंड बनने लगा है। यह तो होगा ही, जब बड़ी संख्या में इंजीनियरिंग करने वाले छात्र बेरोजगार या कम पैसे में नौकरी को मजबूर होंगे। दून समेत प्रदेश के अन्य जिलों में भी इंजीनियरिंग क्षेत्र में यही आलम है। एजुकेशन हब कहे जाने वाले दून में दर्जनों कोचिंग सेंटर इस बात को स्वीकार कर रहे हैं कि पिछले वर्षों में इंजीनियरिंग का क्रेज घटा है।

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