आपदा की दृष्टि से बेहद संवेदनशील उत्तराखंड में आखिर कब लगेगा तीसरा डॉप्लर रडार
आपदा की दृष्टि से बेहद संवेदनशील उत्तराखंड में मौसम के सटीक पूर्वानुमान के मद्देनजर डॉप्लर राडार लगाने की मांग वर्षों से हो रही है।
देहरादून, विकास गुसाईं। आपदा की दृष्टि से बेहद संवेदनशील उत्तराखंड में मौसम के सटीक पूर्वानुमान के मद्देनजर डॉप्लर रडार लगाने की मांग वर्षों से हो रही है। वर्ष 2013 में आई आपदा के बाद प्रदेश में तीन स्थानों पर डॉप्लर रडार लगाने का निर्णय लिया गया। एक मुक्तेश्वर, दूसरा मसूरी और तीसरा गढ़वाल के ही अन्य स्थान पर लगना है। दरअसल, मुक्तेश्वर का डॉप्लर रडार पूरे कुमाऊं क्षेत्र को कवर कर रहा है। मसूरी के डॉप्लर राडार की रेंज में गंगोत्री, यमुनोत्री और केदारनाथ तक का क्षेत्र आ रहा है। बदरीनाथ धाम व चमोली के अन्य हिस्से इन दोनों रडार की जद में नहीं आ रहे हैं। तीसरे डॉप्लर रडार के लिए अभी तक जगह नहीं मिल पाई है। यह स्थिति तब है जब प्रदेश में लगातार भूस्खलन और बादल फटने की घटनाएं सामने आ रही हैं। इनसे मौसम का सटीक पूर्वानुमान तो मिलेगा ही, समय रहते एहतियाती कदम भी उठाए जा सकेंगे।
कब तक मिलेगा आखिर सुरक्षित ठौर
आपदा की दृष्टि से संवेदनशील उत्तराखंड में अभी भी 395 गांवों के लिए बरसात किसी खौफ से कम नहीं। बरसात आते ही लोगों के मन में आपदा की आशंका घिरने लगती है। पता नहीं कब क्या हो जाए। सरकार भी इन गांवों की स्थिति से अंजान नहीं है। यही कारण कि वर्ष 2011 में इन गांवों को अन्यत्र बसाने को पुनर्वास नीति बनाई गई। इस दौरान 421 गांव ऐसे चिह्नित किए गए, जो आपदा की दृष्टि से बेहद संवेदनशील माने गए। इनका जल्द विस्थापन करने की बात कही गई। आठ साल गुजरे, सरकारें आई और गई लेकिन इस दौरान केवल 26 गांवों के 634 लोगों का ही पुनर्वास हो पाया है। शेष गांवों के पुनर्वास के लिए अभी तक जमीन ही नहीं मिल पाई है। इस कारण पर्वतीय इलाकों के इन गांवों में आपदा का खतरा बरकरार है। उधर, आशंकित स्थानीय लोगों का इंतजार लगातार लंबा होता जा रहा है।
तीन साल गुजरे, जांच पूरी नहीं
भाजपा ने सत्ता में आते ही बड़ा घोटाला खोला, एनएच-74 जमीन घोटाला। इस मामले में आइएएस और पीसीएस अधिकारी तक संलिप्त पाए गए। भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस के नाम पर सत्ता में आई सरकार ने दोनों पर कार्रवाई भी की। नियमानुसार इन पर विभागीय जांच भी बिठाई गई। आइएएस अधिकारियों की जांच पूरी कर केंद्र को भेजी जा चुकी है, लेकिन आज तक संलिप्त आठ पीसीएस अधिकारियों की जांच पूरी नहीं हो पाई। दरअसल, ये सभी अधिकारी घोटाले के समय ऊधमसिंह नगर में एसडीएम से लेकर भूमि अध्याप्ति अधिकारी के पदों पर तैनात रहे। घोटाले में इनकी भूमिका सामने आने पर सरकार ने इन सभी को निलंबित कर दिया। मामले की जांच शासन के एक वरिष्ठ अधिकारी को सौंपी गई। इसकी सीमा निर्धारित नहीं थी। नतीजा यह कि तकरीबन तीन साल से यह जांच अभी चल ही रही है और निलंबित अधिकारी विभिन्न जिलों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
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हेली एंबुलेंस को लेकर बढ़ता इंतजार
प्रदेश में प्राकृतिक आपदा का सिलसिला जारी है। पिथौरागढ़ में प्रकृति अपना क्रूर रूप दिखा चुकी है। इसे रोकना इंसान के बस में भी नहीं है। आपदा के बाद तुरंत राहत देने को तमाम प्रयासों के बावजूद अभी भी कई ऐसी अच्छी योजनाएं हैं, जो परवान नहीं चढ़ पा रही है। इन्हीं योजनाओं में से एक है हेली एंबुलेंस योजना। प्रदेश में आपदा, दुर्घटना और गंभीर बीमारों को केंद्र में रखते हुए इस योजना का खाका खींचा गया। वर्ष 2016 में इस दिशा में कदम उठने शुरू हुए। 2017 में प्रदेश में आई नई सरकार ने भी इस योजना की गंभीरता को समझते हुए आगे बढ़ाया। बाकायदा इसके लिए 2018 में प्रस्ताव केंद्र को भेजा गया। इसके लिए आर्थिक मदद भी स्वीकृत हो गई। उम्मीद जताई गई कि जल्द यह योजना शुरू हो जाएगी। बावजूद इसके हेली एंबुलेंस सेवाओं के लिए किसी हवाई कंपनी से करार नहीं हो पाया है।
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