कब बनेंगी नई जेलें, सूबे में 11 जेलों में हैं 5800 सौ कैदी
उत्तराखंड की 11 जेलों में 3420 कैदियों को रखने की क्षमता है। आलम यह है कि इनमें 5800 सौ कैदी रखे हए हैं। जेलों में क्षमता से अधिक कैदी का मसला सदन में भी उठ चुका है।
देहरादून, विकास गुसाईं। उत्तराखंड राज्य में कैदियों की बढ़ती संख्या को देखते हुए छह नई जेल बनाने की तैयारी की गई थी। तीन साल पहले इसका खाका खींचा गया। सरकारी मशीनरी की सुस्त रफ्तार के कारण इनमें से केवल दो पर ही काम शुरू हो पाया। उत्तराखंड राज्य में इस समय जेलों की स्थिति बहुत बेहतर नहीं है। प्रदेश की 11 जेलों में 3420 कैदियों को रखने की क्षमता है। आलम यह है कि इनमें 5800 सौ कैदी रखे हए हैं। जेलों में क्षमता से अधिक कैदी का मसला सदन में भी उठ चुका है। सरकार ने यहां चंपावत, पिथौरागढ़, रुद्रप्रयाग, बागेश्वर, उधमसिंह नगर और उत्तरकाशी में जेल बनाने की घोषणा की। इनके लिए जमीन भी तलाश ली गई। सीमित बजट होने के कारण केवल चंपावत व पिथौरागढ़ में ही जेल बनाने को मंजूरी मिल पाई है। इसके कारण कैदियों को बैरकों में पांव पसारने तक की पूरी जगह नहीं मिल पा रही है।
कब बनेगी आउटसोर्स एजेंसी
प्रदेश के प्रशिक्षित युवा सरकार के लचर रवैये से सरकारी दफ्तरों में अपनी सेवाएं नहीं दे पा रहे हैं। कारण यह कि तीन वषों से सरकार इनके लिए एक आउटसोर्स एजेंसी का चयन नहीं कर पाई। दरअसल, अभी तक उपनल ही तकनीकी व कुशल कर्मचारियों को उपलब्ध कराने की एकमात्र आउटसोसिर्ंग एजेंसी थी। इसके अलावा प्रांतीय रक्षक दल और होमगार्ड के जरिये भी आउटसोसिर्ंग से नियुक्तियां होती हैं, लेकिन ये चतुर्थ श्रेणी पदों के लिए ही मानव संसाधन उपलब्ध कराते हैं। वर्ष 2016 में आउटसोसिर्ंग का काम उपनल से लेकर युवा कल्याण विभाग को देने की बात उठी थी, लेकिन मंत्रिमंडल में इस पर निर्णय नहीं हो पाया। इसके बाद निर्णय लिया गया कि उपनल के जरिये केवल पूर्व सैनिकों को ही नियुक्ति प्रदान की जाएगी। शेष के लिए अलग एजेंसी का चयन किया जाएगा। इसके लिए वर्ष 2016 में ही बाकायदा युवा कल्याण विभाग से प्रस्ताव तैयार कराया गया।
गांवों में आधुनिक जुताई
गांवों से लगातार हो रहे पलायन के बीच यहां खेती करना एक बड़ी चुनौती बन रहा है। कारण गांव में लोगों की संख्या कम होने के कारण जानवर नहीं पाले जा रहे हैं। इस कारण यहां खेतों की जुताई के लिए बेहद सीमित संख्या में बैल हैं। इनकी समस्या को देखते हुए प्रदेश सरकार ने सुदूरवर्ती ग्रामीण क्षेत्रों तक पावर ट्रेलर मशीनें पहुंचाने का निर्णय लिया। इसके लिए बाकायदा ग्रामीणों की सब्सिडी देने तक का निर्णय लिया गया। प्रदर्शनियों के माध्यम से यह दर्शाया गया कि इससे ग्रामीण आसानी से खेतों की जुताई कर सकेंगे। बावजूद इसके यह योजना पूरी तरह धरातल पर नहीं उतर पाई है। कारण यह कि इन मशीनों के लिए डीजल की जरूरत पड़ती है। पहाड़ों में बेहद सीमित संख्या में डीजल पंप हैं। मशीन दुरुस्त करने के लिए भी लोग नहीं हैं। इस कारण यह योजना अब ठंडे बस्ते में जाती नजर आ रही है।
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ऑनलाइन टैक्सियों की नियमावली
प्रदेश में ओला व उबर समेत अन्य ऑनलाइन बुकिंग के जरिये चल रही टैक्सियों का संचालन बिना नियमावली के ही किया जा रहा है। प्रदेश में इस समय ऑनलाइन टैक्सी सर्विस की खासी मांग है। अन्य व्यावसायिक सेवाओं से सस्ती होने के कारण ग्राहक इन सेवाओं का इस्तेमाल भी कर रहे हैं। हालांकि विभाग इनके संचालन को अवैध भी ठहरा चुका है। सरकार के हस्तक्षेप और स्थानीय परमिट धारकों का हित देखते हुए नियमावली तैयार करने की कवायद शुरू की गई। इसमें ऑनलाइन सेवा प्रदाता कंपनियों के पंजीकरण से लेकर स्थानीय परमिट धारक वाहनों को भी इनके साथ संचालन करने की व्यवस्था की गई है। नियमावली का खाका तो बना लेकिन तकरीबन एक वर्ष से इसे मंजूरी नहीं मिल पाई है। इस कारण सरकार को राजस्व का घाटा हो रहा है।
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