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ठंडे बस्ते में : उत्‍तराखंड की जेलों में जाने कब लगेंगे आधुनिक जैमर

उत्‍तराखंड में 11 जेल और दो उप जेल हैं। इन जेलों में तो नामी बदमाश बंद हैं। यह बात सामने आई है कि जेलों से गैंग चलाए जाते हैं। जेलों में जेमर तो लगे हैं सिर्फ थ्रीजी सिम के सिग्‍नल रोकने के लिए।

By Sunil NegiEdited By: Published: Fri, 15 Oct 2021 09:20 AM (IST)Updated: Fri, 15 Oct 2021 09:20 AM (IST)
ठंडे बस्ते में : उत्‍तराखंड की जेलों में जाने कब लगेंगे आधुनिक जैमर
प्रदेश की जेलों में अभी तक उच्चीकृत जैमर नहीं लग पाए हैं।

विकास गुसाईं, देहरादून। जेलों में कैदियों के बीच टकराव की खबरें एक बार फिर सुर्खियां बनीं। जांच के दौरान बैरकों से मोबाइल फोन भी बरामद हुए। यह स्थिति नहीं आती, यदि जेलों में आधुनिकतम जैमर लगे होते। दरअसल, प्रदेश में 11 जेल और दो उप जेल हैं। देहरादून, रुड़की, सितारगंज और पौड़ी जेलों में नामी बदमाश बंद हैं। जेलों से गैंग चलाने की बात कई दफा सामने आई है। जब घटनाओं में कमी नहीं आई, तो पड़ताल की गई। पता चला कि जेलों में जैमर तो लगे हैं लेकिन वे केवल थ्री जी सिम के सिग्नल ही रोक पा रहे हैं। फोर जी सिम वाले मोबाइल फोन के सिग्नल रोकने में नाकाम हैं। लिहाजा अभी भी अपराधी धड़ल्ले से मोबाइल फोन का प्रयोग कर रहे हैं। इससे जेल प्रशासन के सामने चुनौतियां आ खड़ी हुईं। इसके लिए नए उच्चीकृत जैमर लगाने पर बात हुई, लेकिन अफसोस अभी तक ऐसा नहीं हो पाया है।

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झील में डूबे शहर का दीदार

उत्तराखंड में पर्यटन की असीम संभावनाएं हैं। यहां प्रकृति का सौंदर्य जगह-जगह देखा जा सकता है। कुछ सालों पहले टिहरी की भिलंगना नदी में बांध बनाया गया, जिसमें पूरा शहर डूब गया। इस डूबे शहर को पर्यटकों के सामने लाने के लिए प्रदेश सरकार ने स्कूबा डाइविंग योजना शुरू करने का निर्णय लिया। कहा गया कि इसके जरिये झील में समा चुके टिहरी शहर, राज दरबार, घंटाघर, मंदिर आदि ऐतिहासिक स्थानों को दिखाया जाएगा। पर्यटकों को पानी के अंदर जाने का प्रशिक्षण देने की भी बात हुई। मई 2018 में टिहरी महोत्सव के दौरान इसकी शुरुआत हुई और इस दौरान पर्यटकों ने स्कूबा डाईविंग का आनंद भी लिया। इसके बाद कुछ स्थानीय व्यक्तियों ने भी इसमें हाथ आजमाना चाहा लेकिन खासी सफलता नहीं मिली। वहीं, सरकार ने शुरुआती घोषणा के बाद से ही झील में स्कूबा डाइविंग शुरू करने की दिशा में अभी तक कोई ठोस पहल नहीं की है।

फाइलों में ही फंसी रिंग रोड

राजधानी देहरादून में यातायात की समस्या के समाधान को रिंग रोड बनाने की योजना अभी तक मूर्त रूप नहीं ले पाई है। दरअसल, पर्यटन सीजन के दून में यातायात बहुत अधिक बाधित होता है। ऐसे में बाहर से आने वाले पर्यटकों को इस समस्या से दो-चार होना पड़ता है। इससे निजात दिलाने के लिए 10 साल पहले लोक निर्माण विभाग ने देहरादून में रिंग रोड बनाने का प्रस्ताव बनाया था। जब प्रयास परवान नहीं चढ़े तो यह जिम्मा एनएचएआइ को दिया गया। कहा गया कि शहर के चारों ओर फोर लेन सड़क बनाई जाएगी लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। वर्ष 2018 में लोनिवि ने 114 किमी लंबी रिंग रोड बनाने को डीपीआर तैयार की, मगर इसके बाद मामला शांत पड़ गया। बीते वर्ष जिला प्रशासन ने इस संबंध में बैठक भी की। इसके बाद कोरोना के चलते काम रुक गया और यह योजना अभी तक शुरू नहीं हो पाई है।

समाप्त हो गई पर्यटन उत्थान योजना

प्रदेश में पर्यटन को गति देने के लिए कई योजनाएं बनाई गईं। कुछ योजनाएं परवान चढ़ीं, तो कुछ फाइलों में गुम होकर रह गईं। फाइलों में कैद होने वाली ऐसी ही एक योजना है ग्रामीण पर्यटन उत्थान योजना। इस योजना के अंतर्गत गांवों में पर्यटन विकास के साधन विकसित किए जाने थे। शुरुआती चरण में 38 गांवों का चयन किया गया। कहा गया कि देशी-विदेशी पर्यटकों को ग्रामीण परिवेश से परिचित कराने के साथ ही स्थानीय व्यक्तियों को पर्यटन गतिविधियों के माध्यम से स्वरोजगार उपलब्ध कराया जाएगा। पर्यटकों को गांवों तक लाने से लेकर इनकी सूरत संवारने के काम में सरकार सहयोग करेगी। इससे स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा और पलायन भी थमेगा, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। मौजूदा सरकार इसके स्थान पर होम स्टे योजना ले कर आई। इस योजना से स्वरोजगार तो मिल रहा है लेकिन गांवों की सूरत संवारने को सरकार का सहयोग अभी भी अपेक्षित है।

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