बांध विस्थापित: आसमान से टपके खजूर पर अटके
जागरण संवाददाता ऋषिकेश बांध के लिए अपनी पुश्तैनी विरासत गंवा चुके टिहरी के लोग दूर ऋ
जागरण संवाददाता, ऋषिकेश:
बांध के लिए अपनी पुश्तैनी विरासत गंवा चुके टिहरी के लोग दूर ऋषिकेश में विस्थापित तो हो गए, मगर बीस वर्ष बाद भी विस्थापितों की स्थिति आसमान से टपके और खजूर पर अटके जैसी है। हर बार चुनाव के समय विस्थापितों को भूमिधरी का अधिकार देने और राजस्व ग्राम बनाने के वादे नेताओं की ओर से किए जाते हैं। मगर, यह वादे पूरे नहीं होते। विधानसभा चुनाव में एक बार फिर नेता विस्थापितों के बीच वोट मांगने जाएंगे तो विस्थापितों के यह पुराने सवाल राजनीतिक दलों के लिए मुश्किल खड़ी करेंगे।
प्रदेश में आदर्श आचार संहिता लागू होने से पूर्व तक टिहरी बांध विस्थापितों को इस बात की पूरी उम्मीद थी कि उन्हें इस बार तो भूमिधरी का अधिकार मिल ही जाएगा, लेकिन नहीं मिला। प्रत्येक चुनाव में प्रमुख दल के प्रत्याशी टिहरी बांध विस्थापितों की समस्याओं के निस्तारण के बड़े-बड़े दावे करते आए हैं। पिछले दो दशक से टिहरी बांध निर्माण के कारण अपने मूल गांव से विस्थापित इन परिवारों को भूमिधरी का अधिकार नहीं मिल पाया है। पशुलोक-वीरभद्र मार्ग स्थित टिहरी विस्थापित कालोनी के विस्थापितों का कहना है कि उत्तराखंड बनने के बाद पहली सरकार कांग्रेस की बनी और उसके बाद भाजपा की। लेकिन विस्थापितों की समस्या का समाधान नहीं हो पाया। वर्ष 2000 में टिहरी से पशुलोक ऋषिकेश क्षेत्र में विस्थापित होने के बाद से राजस्व ग्राम और भूमिधरी का अधिकार पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। वर्ष 2020 में राजस्व ग्राम की अधिसूचना जारी हुई, लेकिन उसके बाद कार्रवाई आगे नहीं बढ़ी।
भूमिधरी का अधिकार न मिलने से केंद्र और प्रदेश सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ यहां के तीन हजार से अधिक परिवारों नहीं मिल रहा है। ग्रामसभा का गठन न होने से विस्थापित अपना प्रधान तक नहीं चुन पा रहे हैं। न ही इस क्षेत्र के नागरिकों को नगर निगम में शामिल किया जा सका है। स्थानीय जनप्रतिनिधि और सरकार के नुमाइंदों से भूमिधरी का अधिकार दिलाने की विस्थापित कई बार गुहार लगा चुके हैं, लेकिन सुनवाई नहीं हुई है।
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केंद्र सरकार की किसान सम्मान योजना समेत अन्य सरकारी योजनाओं के लाभ से लोग यहां वंचित हैं। जन्म और मृत्यु प्रमाण पत्र के लिए भी दूसरी ग्रामसभाओं पर निर्भर रहना पड़ता है। छात्राएं प्रदेश सरकार की गौरादेवी कन्या धन योजना से वंचित है।
- हरि सिंह भंडारी, अध्यक्ष समन्वय विकास समिति विस्थापित क्षेत्र पशुलोक
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विस्थापितों के पास भूमि तो है मगर, स्वामित्व न होने के कारण बैंक से ऋण नहीं मिलता। भूमिधरी का अधिकार न मिलने से नागरिकों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इस चुनाव में प्रत्याशियों से यह सवाल किया जाएगा कि हमारे मूलभूत अधिकारों का आखिर क्या हुआ।
- मनीष मैठाणी, सामाजिक कार्यकत्र्ता, विस्थापित क्षेत्र
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टिहरी से विस्थापन के बाद ऋषिकेश के पशुलोक व लक्कड़घाट क्षेत्र में बसाए गए विस्थापितों की किसी ने सुध नहीं ली। आज बीस वर्ष का समय गुजर जाने के बाद भी विस्थापितों को भुमिधरी का अधिकार और राजस्व ग्राम का दर्जा नहीं मिल पाया है, यह अपने आप में सरकारों की बड़ी उदासीनता है।
- जगदंबा रतूड़ी, पूर्व क्षेत्र पंचायत सदस्य
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विस्थापित क्षेत्र के नागरिकों को छोटे-मोटे प्रमाण पत्रों के लिए भी धक्के खाने पड़ रहे हैं। युवाओं को सबसे अधिक परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। मगर, इसे विस्थापितों के साथ सरकारों का भेदभाव ही कहा जाएगा कि इतने वर्षों के बाद भी आज तक समस्या का समाधान नहीं हो पाया।
आशीष रतूड़ी, स्थानीय निवासी