पलायन की तस्वीर: मर्ज पता चला, अब मरहम की तैयारी; पढ़िए पूरी खबर
उत्तराखंड को विरासत में मिले पलायन के दंश से अभी तक छुटकारा नहीं मिल पाया है। ऐसे में निरंतर खाली होते गांवों की तस्वीर न सिर्फ कचोटने वाली है।
देहरादून, केदार दत्त। उम्र के 19 साल कम नहीं होते। इतने वक्फे में तो किसी भी समस्या का निदान हो सकता है, मगर उत्तराखंड को विरासत में मिले पलायन के दंश से अभी तक छुटकारा नहीं मिल पाया है। ऐसे में निरंतर खाली होते गांवों की तस्वीर न सिर्फ कचोटने वाली है, बल्कि यह इस खूबसूरत राज्य पर दाग भी लगा रही है। हालांकि, लंबे इंतजार के बाद पलायन और इसके कारणों का पता चलने पर अब इसे थामने के मद्देनजर मरहम लगाने की दिशा में कदम बढ़ाए गए हैं। ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग की ओर से गांवों के लिए विभागवार तैयार की जा रही कार्ययोजना को धरातल पर उतारने के मद्देनजर इसे अंतिम रूप दिया जा रहा है तो रोजगार के अवसर सृजित करने की दिशा में न्याय पंचायत स्तर पर ग्रोथ सेंटर की अवधारणा को आकार देने के साथ ही अन्य कदमों का खाका खींच लिया गया है। सरकार के दावों पर यकीन करें तो इस वर्ष से यह मुहिम परवान चढऩे लगेगी।
राज्य गठन के बाद पलायन को थामने के लिए बातें तो खूब हुईं, मगर इसके समाधान को पहल नहीं हो पाई। लंबे इंतजार के बाद मौजूदा सरकार ने पलायन की गंभीरता को समझते हुए 2017 में ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग गठित किया। यह आयोग पिछले वर्ष मई में गांवों से हो रहे पलायन की तस्वीर और इसके कारणों पर रिपोर्ट सरकार को सौंप चुका है। यानी, मर्ज का पता चल चुका है और अब समाधान की दिशा में कदम उठाए जाने हैं। इसकी पहल भी शुरू कर दी गई है।
सरकार के निर्देश पर पलायन आयोग ने गांवों से पलायन थामने के मद्देनजर जिलेवार सर्वे करने के साथ ही विभागवार कार्ययोजना बनाने का सिलसिला शुरू कर दिया है। अभी तक सात विभागों की कार्ययोजना तैयार कर शासन को भेजी गई, जिन्हें अंतिम रूप दिया जा रहा है। मुख्य सचिव स्तर पर 25 से 27 नवंबर तक इन कार्ययोजनाओं को लेकर विभागों से विमर्श कर फाइनल रूप दिया जाएगा। फिर विभाग इन्हें धरातल पर उतारेंगे। इसके बाद अन्य विभागों की कार्ययोजनाओं को लेकर भी कसरत की जाएगी। इसके अलावा सरकार ने राज्य की 670 न्याय पंचायतों में ग्रोथ सेंटर स्थापित करने समेत अन्य उपायों की तरफ भी कदम बढ़ाए हैं, ताकि रोजगार के अवसर सृजित हो सकें। मूलभूत सुविधाओं के विकास पर भी फोकस किया गया है। इस मुहिम के सकारात्मक नतीजे रिवर्स पलायन के रूप में आने भी लगे हैं। आयोग की रिपोर्ट ही बताती है कि 850 गांवों में छिटपुट रूप से ही सही, मगर रिवर्स माइग्रेशन हुआ है। रिवर्स माइग्रेशन का यह क्रम धीरे-धीरे बढ़ रहा है।
पलायन की तस्वीर
- राज्य के गांवों से 36.2 फीसद की दर से हो रहा पलायन, जो राष्ट्रीय औसत 30.6 से है ज्यादा
- प्रदेशभर में गुजरे 10 वर्षों में 3946 ग्राम पंचायतों से 118981 लोगों ने किया पलायन
- 6338 ग्राम पंचायतों से 383626 लोगों का अस्थायी रूप से पलायन, पर गांवों से नाता बरकरार
- पलायन के कारण 565 गांवों में वर्ष 2011 के बाद 50 फीसद आबादी घटी है, जिनमें अंतर्राष्ट्रीय सीमा से सटे छह गांव भी शामिल हैं।
- चीन व नेपाल सीमा से लगे 14 गांवों समेत राज्य में 734 गांव 2011 के बाद हुए गैर आबाद
गांवों से पलायन कहां से कहां
- 19.46 फीसद लोगों ने नजदीकी कस्बों में
- 15.18 फीसद ने अपने जनपदों के मुख्यालय में
- 35.69 फीसद ने राज्य के अन्य जनपदों में
- 28.72 फीसद उत्तराखंड से बाहर
- 0.96 ने देश से बाहर किया पलायन
पलायन के कारण
पलायन आयोग की रिपोर्ट पर ही गौर करें तो प्रदेश के गांवों से 50.16 फीसद लोगों ने रोजगार, 15.21 फीसद ने शिक्षा, 8.83 फीसद ने चिकित्सा सुविधा, 5.61 फीसद ने वन्यजीवों से फसल क्षति, 5.44 फीसद ने कृषि पैदावार में कमी, 3.74 फीसद ने मूलभूत सुविधाओं के अभाव और 8.48 ने अन्य कारणों के चलते पलायन किया। पलायन करने वालों में 26 से 35 आयुवर्ग के 42 फीसद, 35 वर्ष से अधिक आयु के 29 फीसद और 25 वर्ष से कम आयु वर्ग के 28 फीसद लोग शामिल हैं।
1702 गांव हो चुके निर्जन
उप्र से अलग होने के बाद भी पलायन की रफ्तार थमने का नाम नहीं ले रही। यही कारण है कि गांव निरंतर खाली हो रहे हैं। वर्तमान में राज्य में 1702 गांव तो पूरी तरह निर्जन हो चुके हैं। वर्ष 2011 की जनगणना में निर्जन गांवों की संख्या 968 थी। 2011 के बाद भी यह सिलसिला थमा नहीं और 734 गांव वीरान हो गए, जिनमें अंतर्राष्ट्रीय सीमा से सटे 14 गांव भी शामिल हैं।
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एसएस नेगी (उपाध्यक्ष, ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग) का कहना है कि प्रदेश में गांवों से पलायन के पीछे मुख्य रूप से रोजगार, शिक्षा व स्वास्थ्य जैसे कारण उभरकर सामने आए है। ये क्षेत्र सरकार की प्राथमिकता के भी हैं। आयोग अब तक पांच रिपोर्ट देने के साथ ही सात विभागों की कार्ययोजना सौंप चुका है। कार्ययोजनाओं को शासन स्तर पर अंतिम रूप दिया जा रहा है। अन्य विभागों की कार्ययोजनाएं बन रही हैं। आयोग ने सरकार को सुझाव दिया है कि अगले पांच वर्ष तक ग्राम्य विकास पर फोकस किया जाए। सरकार इस दिशा में आगे बढ़ रही है और जल्द ही इसके सकारात्मक नतीजे दिखने लगेंगे।